बिहार का गया शहर चारों ओर छोटी बड़ी कई पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इनमे हर पहाड़ी का अपना समृद्ध पौराणिक इतिहास रहा है। गया की मुख्य पहाड़ियों में रामशिला , प्रेतशिला और ब्रह्मयोनि ज्यादा महत्व की हैं। वस्तुतः ब्रम्हयोनि पहाड़ी की महत्ता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि ब्रह्मयोनि पहाड़ी के बिना गया का इतिहास अधूरा है।
पहाड़ी की चोटी पर ब्रह्मयोनि और मैत्रेयनि नाम की दो अति प्राचीन गुफाएं स्थित हैं। इन गुफाओं के साथ ही पहाड़ी पर अष्टभुजा देवी का एक मंदिर भी स्थित है।
ब्रह्मयोनि पहाड़ी की चोटी पर पहुंचने के लिए 424 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
रामायण काल में भी ब्रह्मयोनि का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि गया के किनारे से प्रवाहित होने वाली फल्गु नदी पहले ब्रह्मयोनि पहाड़ी के ऊपर से प्रवाहित होती थी। परन्तु सीता माता के श्राप के प्रभाव से फल्गु विलुप्त हो गई और आज भी फल्गु में दो हाथ की खुदाई करने के बाद ही पानी मिलता है।
रामायण काल में सीता माता ने दशरथ जी का पिण्ड दान गया के सीता कुण्ड में किया था। पिण्ड दान के लिए सीता माता ने फल्गु नदी, गाय, अक्षयवट वटवृक्ष , ब्रम्हयोनि पर्वत और केतकी के फूल को साक्षी बनाया था।
भगवान राम को पिण्ड दान प्रमाणित करने के लिए सीता माता ने फल्गु, गाय, वटवृक्ष , ब्रम्हयोनि पर्वत और केतकी के फूल को भगवान के सम्मुख किया। भगवान के डर से सभी मुकर गए जिससे कुपित होकर सीता माता ने ब्रम्हयोनि पर्वत को बिना वृक्ष का पर्वत होने का श्राप दे दिया था।
पर्यटन की दृष्टि से भी ब्रम्हयोनि पहाड़ी गया आनेवाले पर्यटकों के बीच आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। देश विदेश से गया आनेवाले पर्यटक ब्रम्हयोनि पहाड़ी जरूर आते हैं जिसकी चोटी से गया शहर का अत्यंत मनोरम दृश्य नजर आता है।
प्रायः स्थानीय सैलानी परिवार व मित्रों संग यहां पिकनिक मनाने भी आया करते हैं।
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