जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है अक्षय का अर्थ होता है जिसका कभी क्षय न हो। सनातन हिन्दू ग्रंथो में विश्व भर में चार ऐसे वट वृक्षों का उल्लेख मिलता है जो विशेष महत्त्व के है। इन वट वृक्षों को अक्षय माना गया है।
ये चार वट वृक्ष है - प्रयागराज का अक्षयवट, वृन्दावन का वंशीवट, उज्जैन का सिद्धवट, और गया का अक्षयवट जिसे गयावट भी कहा जाता है।
मुगल काल में इन वटवृक्षों को नष्ट करने के कई असफल प्रयास हुए परन्तु ये आज भी ज्यों के त्यों स्थापित हैं ।
मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर सिद्धवट स्थित है। सिद्धवट को शक्तिभेद तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। सनातन धर्म ग्रंथो में सिद्धवट की विशेष महिमा बताई गई है।
सिद्धवट तीन प्रकार की सिद्धि करने के लिए प्रसिद्ध है। यहां संतति, संपत्ति और सद्गति की सिद्धि के लिए पूजन का विशेष महत्त्व है।
स्कन्द पुराण में सिद्धवट का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि इस वटवृक्ष को माता पार्वती ने लगाया था। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या किया था। माना जाता है कि माता ने इसी वटवृक्ष के नीचे तपस्या की थी।
माता की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और माता की मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद दिया। भगवान शिव ने वटवृक्ष को भी वरदान दिया कि जो भी इस वटवृक्ष को दूध अर्पित करेगा , वो शिव कृपा का अधिकारी होगा और साथ ही उसके पितरों को मोक्ष प्राप्त होगा।
स्कन्द पुराण की एक कथा के अनुसार ये भी माना जाता है कि तारकासुर का वध करने के लिए शिव - पार्वती पुत्र कार्तिकेय ने सिद्धवट में ही तप किया था। भगवान कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति हैं जिन्होंने तारकासुर का वध करके तीनों लोकों को उसके भय और आतंक से मुक्त किया।
सिद्धवट सिद्धि प्राप्त करने के इक्षुक साधकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। स्कन्द पुराण में सिद्धवट को कल्पवृक्ष भी माना गया है जहां भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है।
सिद्धवट कालसर्प दोष निवारण के लिए भी प्रसिद्ध है। यदि व्यक्ति की जन्म कुंडली में कालसर्प दोष बन रहा हो तो सिद्धवट में कालसर्प दोष निवारण अनुष्ठान करने से इस दोष से शीघ्र मुक्ति मिल जाती है।
We continue to improve, Share your views what you think and what you like to read. Let us know which will help us to improve. Send us an email at support@gayajidham.com
Send me the Gayajidham newsletter. I agree to receive the newsletter from Gayajidham, and understand that I can easily unsubscribe at any time.