भारत की धरती प्राचीन काल से ही दर्शन और अध्यात्म की धरती रही है। भारत की धरती पर कई दर्शन परम्पराओं का उत्थान हुआ। विश्व की प्राचीनतम दर्शन में एक बौद्ध और जैन भी भारत में ही विकसित हुए। बौद्ध और जैन के अतिरिक्त भी कई प्राचीन दर्शन का उदय और विकास भारत की धरती पर हुआ है। आजीविक दर्शन भी उनमे से एक प्राचीन दर्शन है।
ऐसा माना जाता है कि तथागत बुद्ध से पहले आजीविक दर्शन का उदय हुआ था और बुद्ध से पहले आजीविक भारतवर्ष की अत्यंत लोकप्रिय और प्रचलित दर्शन परम्परा थी। बुद्ध के समय भी आजीविक के अनेक अनुयायी थे।
इतिहास कारो का मानना है कि कोसला के राजा प्रसेनजित भी आजीविक थे और उन्होंने भी अपने जीवन काल में आजीविक सम्प्रदाय का भरपूर प्रचार प्रसार किया।
आजीविक दर्शन एक नास्तिक वादी दर्शन परम्परा थी जिसकी स्थापना मखाली गोसाला ने की थी। आजीविक दर्शन की मूल विचारधारा नियतिवाद पर आधारित थी। आजीविक के अनुयायी ईश्वर , पुनर्जन्म इत्यादि में विश्वास नहीं करते थे। उनके मत में सब कुछ पहले से निर्धारित है जो नियति के अधीन है जिनपे मनुष्य का किसी प्रकार का कोई भी नियंत्रण नहीं है।
आजीविक दर्शन ईश्वर को तो नहीं मानते पर आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते है। आजीविक दर्शन में आत्मा को एक धागे की गेंद के समान माना गया है जिसमे जब तक धागे गुंथे हुए है तब तक आत्मा की जीवन यात्रा जन्म और मृत्यु के रूप में होती रहती है। जैसे जीवन में सुख और दुःख आते है वैसे ही आत्मा भी जन्म लेती है और मृत्यु को भी प्राप्त होती है।
आजीविक दर्शन में जब धागे की गेंद पूरी तरह खुल जाती है तब आत्मा निर्वाण को प्राप्त होती है जिसे सनातन दर्शन में मोक्ष कहा जाता है।
आजीविक दर्शन मौर्य काल में अपने चरम पर था और मौर्य राजवंश के दूसरे सम्राट बिन्दुसार भी आजीविक मत के अनुयायी थे। यही नहीं बिन्दुसार के पुत्र अशोक भी अपने जीवन काल के ज्यादातर समय आजीविक ही थे। अपने जीवन के उत्तरार्ध में अशोक ने बौद्ध मत अपना लिया था।
अशोक ने बराबर की गुफाओं में 4 गुफाओं को आजीविक सम्प्रदाय के भिक्षुओं को दे दिया था।
समय के साथ आजीविक सम्प्रदाय विलुप्त हो गई। आज आजीविक सम्प्रदाय के बारे में बहुत अधिक ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है और बहुत सारे आजीविक ग्रंथ नष्ट कर दिए गए। आजीविक ग्रंथो को किसने नष्ट किया इस पर इतिहासकार एक मत नहीं है।
ज्यादातर इतिहासकार इतना अवश्य मानते है कि बौद्ध और जैन दर्शन दोनों की ही आजीविक दर्शन से घोर प्रतिद्वंद्विता थी। इस प्रतिद्वंद्विता का कारण आजीविक दर्शन की बढ़ती लोकप्रियता थी।
आजीविक दर्शन का संभवतः एकमात्र अवशेष बिहार के गया जिले में स्थित बराबर की गुफाएं हैं।
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