जूना अखाड़ा का इतिहास

Author : Neeraj Avinash   Updated: December 09, 2020   2 Minutes Read   43,410

जूना अखाड़ा का नाम तो प्रायः हम सभी ने सुना ही होगा पर जूना अखाड़ा को समझने के लिए पहले एक बार अखाड़ा को समझना आवश्यक है। मुख्यतः अखाड़ा शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है।

1. व्यायामशाला जहां पहलवान कुश्ती सीखते हैं।

2. साधू सन्यासियों का वह समूह जो शस्त्र धारण करता हो। ऐसे सन्यासी धर्म रक्षक माने जाते हैं।

हिन्दू संत धारा के अखाड़े के बारे में जानें

हिन्दू ग्रंथो में आदि शंकराचार्य को दशनामी परम्परा का जनक माना जाता है। आदि शंकराचार्य को जगतगुरु माना जाता है जिन्होंने सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए दो बार भारतवर्ष का भ्रमण किया था। आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म के प्रचार और संरक्षण हेतु अपना जीवन समर्पित किया और देश के चारों दिशाओं में चार मठ की स्थापना की थी जिनके नाम - ज्योतिर्मठ, श्रंगेरिमाथ, शारदामठ तथा गोवर्धन हैं।

इन मठों से ही आगे चलकर 10 अन्य समूह बने जो दशनामी सम्प्रदाय के नाम से जाने जाते हैं।

दशनामी परंपरा के बारे में जानें

तीर्थाश्रमवनारण्यगिरिसागरपर्वताः।

सरस्वती पुरी चैव भारती च दशक्रमात्‌॥

तीर्थ , आश्रम , सरस्वती , भारती , वन , अरण्य , पर्वत , सागर , गिरि , पुरी

हिन्दू संत समाज में मुख्यतः 13 अखाड़े हैं जिनसे जुड़े सन्यासी समय समय पर अपने ज्ञान ,साधना के द्वारा समाज को सही दिशा दिखाने का कार्य करते हैं।

इन अखाड़ों में जूना अखाड़ा एक प्रमुख अखाड़ा है जिससे लगभग 5 लाख साधु सन्यासी जुड़े हैं।

जूना अखाड़ा का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। माना जाता है कि 8 वीं शताब्दी में भैरव अखाड़े की शुरुआत हुई थी , जिससे जुड़े सन्यासी शस्त्र धारण करते थे। जब जब देश व धर्म पर संकट आया , इन शस्त्रधारी सन्यासियों ने युद्ध में सक्रीय भूमिका निभाई और अपने जीवन का बलिदान भी दिया।

मुग़ल काल में भैरव अखाड़ा के सन्यासियों ने अत्याचारी शाशकों से सक्रीय युद्ध किया। ऐसे ही एक युद्ध में सन्यासियों ने जूनागढ़ के निजाम के साथ भी भीषण युद्ध किया जिसमे निजाम बुरी तरह पराजित हुआ। पराजय की स्तिथि में जूनागढ़ के निजाम ने संधि का प्रस्ताव रखा और भैरव अखाड़ा के सन्यासियों को रात्रि भोज पर आमंत्रित किया।

निजाम ने धोके से षड्यंत्रपूर्वक सन्यासियों के भोजन में विष मिला दिया। अखाड़े के जिन सन्यासियों ने विषयुक्त भोजन ग्रहण किया वे विष के प्रभाव से बलिदान हो गए और जिन सन्यासियों ने भोजन ग्रहण नहीं था वे बच गए।

अखाड़े के नियमानुसार पुजारी ,कोठारी सहित कुछ अन्य कार्यों में लगे सन्यासी सबके भोजन के पश्चात् ही भोजन करते थे , केवल वही लोग बचे रहे।

इस प्रकार जो सन्यासी बच गए वे वहां से बचकर निकल गए और अन्य अखाड़ों में पहुंचे। कुछ ही समय में अन्य अखाड़ों तक भी भैरव अखाड़े के साथ हुए इस षड्यंत्र की खबर पहुंच गई।

गुजराती भाषा में जूना का अर्थ पुराना होता है और जो सन्यासी जूनागढ़ के निजाम के षड्यंत्र से बच गए थे उन्हें जूना अखाड़ा के सन्यासी कहा जाने लगा। इस तरह भैरव अखाड़े का नाम जूना अखाड़ा पड़ा।

हर अखाड़े के अपने इष्ट देवता होते हैं , जूना अखाड़ा के इष्ट भगवान दत्तात्रेय माने जाते हैं। नागा साधू भी जूना अखाड़ा से ही सम्बंधित माने जाते हैं।

वर्तमान में जूना अखाड़ा देश के बड़े अखाड़ों में एक है जिसमे लगभग 5 लाख सक्रीय सन्यासी हैं।


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