सनातन संस्कृति में दशनामी परंपरा का विशेष स्थान है जिसका संबंध आदि शंकराचार्य से है। आदि शंकराचार्य को जगतगुरु माना जाता है जिन्होंने सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए दो बार भारतवर्ष का भ्रमण किया था। आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म के प्रचार और संरक्षण हेतु देश के चारों दिशाओं में चार मठ की स्थापना की थी जिनके नाम - ज्योतिर्मठ, श्रंगेरिमाथ, शारदामठ तथा गोवर्धन हैं।
आदि शंकराचार्य का दार्शनिक सिद्धांत अद्वैतवाद है और पुरे देश में सनातन धर्म का प्रचार करके उन्होंने समाज को संगठित किया। इसी क्रम में आदि शंकराचार्य ने जिन चार मठों की स्थापना की थी वे 10 क्षेत्रों में विभक्त थे जिनमे प्रत्येक का एक मठाधीस होता था।
इन मठों के व्यवस्थित कार्यान्वयन हेतु इन मठों में शंकराचार्य, महंत, आचार्य और महामंडलेश्वर आदि पद होते हैं। इन्ही पीठों से सम्बन्ध रखने वाले दशनामी संप्रदाय के नाम से जाने जाते हैं। यह संप्रदाय सनातन धर्म की रक्षा को प्रतिबद्ध है।
दशनामी परम्परा में प्रत्येक संप्रदाय स्थान विशेष और वेद से संबंध रखता है। दशनाम परंपरा के विभिन्न पीठ इस प्रकार हैं -
तीर्थाश्रमवनारण्यगिरिसागरपर्वताः।
सरस्वती पुरी चैव भारती च दशक्रमात्॥
तीर्थ , आश्रम , सरस्वती , भारती , वन , अरण्य , पर्वत , सागर , गिरि , पुरी
1. तीर्थ – जो संन्यासी तीर्थ करके समाज को संस्कारित करते हैं वैसे सन्यासी "तीर्थ" कहे जाते हैं।
2. आश्रम – जो सन्यासी संन्यास आश्रम में पूर्णतया समर्पित हैं , वैसे सन्यासी "आश्रम" कहे जाते हैं।
3. वन – जो सुन्दर , एकाकी, निर्जन वन में भौतिक बंधन से अलग होकर वास करते हैं , वैसे सन्यासी "वन" कहे जाते हैं।
4. गिरी – जो संन्यासी वन में वास करने वाले हो एवं भगवत गीता के अध्ययन में लगे हो , वैसे गंभीर, निश्चल सन्यासी "गिरी" कहे जाते हैं।
5. भारती – जो संन्यासी विद्यावान तथा बुद्धिमान हो , जो दुःख कष्ट से घबराते नहीं वैसे संन्यासी "भारती" कहे जाते हैं।
6. सागर – जो संन्यासी ज्ञान प्राप्ति के इच्छुक हो वैसे संन्यासी "सागर" कहे जाते हैं।
7. पर्वत – जो संन्यासी पहाडों की गुफा में रहकर ज्ञान प्राप्त के इच्छुक हो वैसे सन्यासी "पर्वत" कहे जाते हैं।
8. सरस्वती – जो संन्यासी सदैव स्वर के ज्ञान तथा विवेचना में लगे हो और अज्ञानता को दूर करने को प्रयासरत हो वैसे संन्यासी "सरस्वती" कहे जाते हैं ।
9. अरण्य – अरण्य सन्यासी के ऋषि कश्यप हैं जिनका सम्बन्ध जगन्नाथ पुरी स्थित गोवर्धन पीठ से है।
10. पुरी – पूरी संप्रदाय से जुड़े सन्यासी समाज को उपदेश दिया करते हैं , वैसे सन्यासी "पूरी" कहे जाते हैं जिनका सम्बन्ध भी जगन्नाथ पुरी स्थित गोवर्धन पीठ से है।
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