त्रेतायुग में जब भगवान श्री राम को वनवास हुआ तो वे मुनि वेष धारण कर अयोध्या से वन गमन को चले। भगवान के वन गमन का प्रथम दिवस तमसा नदी के तट पर बिता फिर आगे शृंगवेरपुर से गंगाजी को पार किया। भगवान राम सीधे भी दंडकारण्य जा सकते थे किन्तु उन्होंने शृंगवेरपुर से ही गंगाजी को पार किया ,इसके पीछे एक रोचक कथा है।
भगवान श्री राम के वन गमन से उनके कुल देवता सूर्य देव अत्यंत दुखी हुए। सूर्य देव जानते थे कि वन प्रवास में भगवान श्री राम को अनेक विपत्तिओं का सामना करना पड़ेगा। अतः सूर्य देव ने अपने शिष्य हनुमान जी को भगवान श्री राम की सहायता करने का आदेश दिया।
हनुमान जी ने सूर्य देव से ही शिक्षा दीक्षा ली थी। अपने गुरु का आदेश मानकर हनुमान जी संगम के किनारे भगवान श्री राम के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे। हनुमान जी किसी स्त्री को अपमानित नहीं करते , और चुकी गंगा, यमुना एवं सरस्वती तीनो नदियां हैं , वे सोच में पड़ गए। अंततः हनुमान जी संगम के पावन तट पर ही भगवान की प्रतीक्षा करने लगे।
अब अगर भगवान श्री राम सीधे गंगाजी को पार करते तो प्रतीक्षा करते हनुमान जी की प्रतीक्षा अत्यंत लम्बी हो जाती। इसलिए भक्त वत्सल भगवान श्री राम ने अपना मार्ग बदल लिया और शृंगवेरपुर होकर गंगाजी को पार किया।
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