सनातन धर्म के अद्भुत धर्मग्रन्थ श्री रामचरितमानस की रचना संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने अवधि भाषा में की थी। पूरी रामकथा विभिन्न दोहो और चौपाइयों में कही गई। इनमें कुछ छंद और सोरठा भी हैं जो इस महाकाव्य में जड़े मोती समान प्रतीत होते हैं।
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥17॥
श्रीराम वन्दना - प्रथम सोपान (बालकाण्ड)
भावार्थ -
मैं पवनकुमार श्री हनुमानजी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में धनुष-बाण धारण किए श्री रामजी निवास करते हैं।
सोरठा एक मात्रिक छंद है जो दोहा का ठीक विपरीत होता है। सोरठा के विषम चरणों में 11 मात्राएँ होती हैं जबकि सम चरणों में 13 मात्राएँ होती हैं।
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