अक्षयवट प्रयागराज

Author : Gayaji Dham   Updated: February 22, 2021   2 Minutes Read   20,080

मुग़ल आक्रांताओं के शाशन काल में सनातन धर्म के पवित्र तीर्थों के नाम बदलने का सिलसिला लगातार चलता रहा और इसी क्रम में प्रयाग का नाम बदलकर मुगल बादशाह अकबर ने अल्लाहबाद कर दिया था। अल्लाहबाद का ही नाम कालांतर में बिगड़कर इलाहाबाद हो गया।

इसी प्रयाग में संगम तट पर हजारों वर्षों से अक्षयवट स्थित है। अक्षय का अर्थ होता है जिसका कभी क्षय न हो। सनातन हिन्दू ग्रंथो में विश्व भर में चार ऐसे वट वृक्षों का उल्लेख मिलता है जो विशेष महत्त्व के है। इन वट वृक्षों को अक्षय माना गया है।

ये चार वट वृक्ष है - प्रयागराज का अक्षयवट, वृन्दावन का वंशीवट, उज्जैन का सिद्धवट, और गया का अक्षयवट जिसे गयावट भी कहा जाता है।

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सिद्धवट  के बारे में पढ़े 

अक्षयवट का उल्लेख कई हिन्दू धर्म ग्रंथों में मिलता है। प्रयाग के अक्षयवट को मनोरथ वृक्ष भी कहा जाता है और मान्यता है कि यह वृक्ष मोक्ष प्रदान करने वाला है।

पुरातत्व शोधकर्ताओं ने इस वृक्ष की रासायनिक आयु लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक मानी है।

मुग़ल शाशन काल में इस वृक्ष को नष्ट करने के अनेक प्रयास हुए। कई बार इसे काट दिया गया पर अक्षयवट हर बार अनेक शाखाओं के साथ पुनर्जीवित हो गया। वृक्ष को नष्ट करने के असफल प्रयास में वृक्ष की जड़ों में तेजाब डाल कर नष्ट करने का प्रयास भी किया गया। लेकिन धार्मिक आस्था से जुड़ा अक्षयवट आज भी विराजमान है।

धार्मिक महत्त्व के अक्षयवट के विषय में मान्यता है कि इसी स्थान पर रामायण काल में माता सीता ने गंगा जी की प्रार्थना की थी। जैन धर्म के मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर जैन धर्म के पद्माचार्य ने अपनी उपासना पूरी की थी।

एक अन्य मान्यता है कि पृथ्वी के कल्याण के लिए इसी स्थान पर ब्रम्हा जी ने यज्ञ किया था। इस यज्ञ में ब्रम्हा जी पुरोहित बने , भगवान विष्णु यजमान बने जबकि भगवान शिव यज्ञ के देवता बने।

यज्ञ की पूर्णाहुति पर तीनों देवताओं ने पृथ्वी को पाप के बोझ से मुक्त करने हेतु अपनी शक्ति से एक वृक्ष को उत्पन्न किया। यही वटवृक्ष अक्षयवट के नाम से जाना जाता है।

इतिहासकार मानते हैं कि चीनी यात्री व्हेनत्सांग ने अपनी प्रयाग यात्रा के सन्दर्भ में प्रयाग स्थित एक देव मंदिर का उल्लेख किया जिसकी साज सज्जा  देखकर वह  आश्चर्यचकित रह गया। व्हेनत्सांग ने मंदिर में होने वाले चमत्कारों के विषय में भी विस्तार से वर्णन किया। मंदिर के बारे में कहा जाता था कि यहां एक पैसा चढ़ाना अन्य तीर्थ स्थानों में सहस्र स्वर्ण मुद्राएंं चढ़ाने जैसा है।

कई इतिहासकारों का मत है कि मोक्ष प्राप्ति की लालसा में कई लोग इस वृक्ष से नदी में कूदकर आत्मघात कर चुके हैं।


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