आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा प्रणाली है जिसमें प्रकृति में नैसर्गिक रूप से उपलब्ध तत्वों का उपयोग चिकित्सा में किया जाता है। प्रकृति में अनगिनत ऐसे पदार्थ हैं जिनमें औषधीय गुण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
ऐसा ही एक प्राकृतिक पदार्थ गौमूत्र है जिसे आयुर्वेद में संजीवनी की संज्ञा दी गई है। अपने अद्भुत औषधीय गुणों के कारण ही गौमूत्र को अमृत तुल्य माना गया है।
गौमूत्र में मुख्यतः यूरिआ ,यूरिक एसिड , पोटैशियम, मैग्नीशियम , फॉस्फेट, अमोनिया, केरोटिन, स्वर्ण क्षार आदि अनेक औषधीय तत्व पाए जाते हैं। इसका नियमित सेवन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है , कोशिकाओं के पुनर्निर्माण में सहायक होता है तथा नवीन ऊर्जा का संचार करता है।
आयुर्वेद में रोग का कारण शरीर में वात ,कफ तथा पित्त के असंतुलन को माना गया है। गौमूत्र शरीर के इस असंतुलन को दूर करता है और परिणाम स्वरुप शरीर निरोग होता है।
गौमूत्र का उपयोग वैसे तो नियमित किया जा सकता है किन्तु कुछ रोगों में गौमूत्र का सेवन श्रेष्ठ प्रभावी होता है। गौमूत्र का नियमित सेवन शरीर में रासायनिक क्रियाओं को नियंत्रित करने में भी सहायक माना गया है। आसान शब्दों में गौमूत्र के उपयोग को कीटनाशक (एंटी सेप्टिक ) की तरह भी माना जा सकता है।
गौमूत्र को एक प्राकृतिक टॉनिक भी माना जा सकता है जो औषधिओं के प्रभाव को बढ़ाता है।
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