Author & Writer : Hari Maurya
इस विवाद को दूर करने के लिए हमने हिन्दू ,बौद्ध ,एवं जैन धर्म ग्रंथो का विस्तृत अध्ययन किया है और तमाम तथ्य इस बात को स्पष्ट करते है मौर्य सूर्यवंश से सम्बंधित क्षत्रिय थे।
कोसल जनपद नरेश प्रसेंजित के पुत्र विदूदभ ने अपमान का बदला लेने की मंशा से शाक्य गणराज्य पर हमला करके शाक्यों का नरसंहार किया, बहुत से शाक्य क्षत्रिय जान बचाकर सफलतापूर्वक पलायन कर गए। वे सब एक पीपल के वृक्षों के बहुतायत वाले स्थान पर अपना गणराज्य स्थापित करते हैं, जिसे पिपिलीवन गणराज्य के रूप में जाना गया। पिपिलीवन गणराज्य के शाक्यों को मोर पालतू पक्षी के रूप में रखने के कारण इन शाक्यों को मोरिया नाम से प्रसिद्धि मिली और इस गणराज्य के नगर को मोरियानगर कहा जाता है।
बौध्य ग्रन्थ उत्तरविहार अट्टकथा पढ़े :
मोरिय नगरे चन्दवडूनो खत्तिया राजा नाम रज्ज करोति मोरिव नगरे नाम पिप्पलिवावनिया गामो अहोसि तेन तस्स नगरस्स सामिनो साकिया च तेसं पुत्त पुत्ता सकल जम्बूद्वीपे मोरिया नाम ति पाकटा जाता। ततो पभुति तेसं वंसो मोरियवंसो ति वुच्चति, तेन वृत्त मोरियानं खत्तियानं वंसजातं ति । चन्द वड्ढनो राजस्स मोरियरञ्ञो सा अहू अग्ग महेसी धम्ममोरिया पुत्ता तस्सासि चन्द्रगुप्तो 'ति ॥ आदिच्चा नाम गोतेन साकिया नाम जातिया । मोरियानं खात्तियानं वंसजातं सिरिधरं चन्द्रगुप्तो 'ति पञ्ञात विण्डुगुप्तो ति भातुका ततो ॥
(उत्तरविहार अट्टकथा : प्रथम भाग पृष्ठ सांख्य 1 )
अर्थात- मौर्य नगर में चन्द्र वर्द्धन राजा नाम के क्षत्रिय राज्य कर रहे थे। मौर्य नगर में पिप्पलिवन नामक एक गाँव था। तब उस नगर गाँव समीप शाक्यों के पुत्र पं- पौत्र सकल जम्बुद्वीप में मौर्य (मोरिय) नाम से प्रसिद्ध हुए। तत्पश्चात उनके वंश का नाम मौर्य वंश (मोरिय) पड़ा। मौर्य राजा चन्द्र वर्द्धन कि महारानी धम्ममोरिया बनी। उन दोनों से उपन्न पुत्र चन्द्रगुप्त नाम से जगत में विख्यात हुए आदित्य गोत्र (सूर्यवंश) शाक्य जाति में जन्मे मौर्य वंश के क्षत्रियों में श्रीमान चन्द्रगुप्त राजा हुये तथा उनके भाई विण्डुगुप्त प्रज्ञा सम्पन्न हुवे।
Note - ध्यान रखे विण्डुगुप्त और विष्णुगुप्त दोनो अलग अलग पात्र है ।
हिन्दू ग्रंथ के अनुसार अनुसार चंद्रगुप्त के पूर्वज शाक्य कुल से निकले सूर्यवंशी क्षत्रिय थे और शाक्य इश्वाकुवंश से निकला जिसमे भगवान राम अवतरित हुए थे।
सूर्यवंश में भगवान बुद्ध पैदा हुऐ :-
वस्त्रपाणेः शुद्धोदनः शुद्धोदनाद्बुधः । बुधादादित्यवंशो निवर्तते ॥ १५ सूर्यवंशभवा ये ते प्राधान्येन प्रकीर्तिताः । यैरियं पृथिवी भुक्ता धर्मतः क्षत्रियैः पुरा ॥ १६ सूर्यस्य वंशः कथितो मया मुने समुद्गता यत्र नरेश्वराः पुरा ।
( नरसिंह पुराण : अध्याय 21 : श्लोक 15, 16)
अर्थात् - वस्त्रपाणि से शुद्धोदन और शुद्धोदन से बुध (बुद्ध) की उत्पत्ति हुई बुद्ध से सूर्यवंश समाप्त हो जाता है । सूर्यवंश में उत्पन्न हुए जो क्षत्रिय हैं, उनमें से मुख्य-मुख्य लोगों का यहाँ वर्णन किया गया है, जिन्होंने पूर्वकाल में इस पृथ्वी का धर्मपूर्वक पालन किया है। मुने! यह मैंने सूर्यवंश का वर्णन किया है, जिसमें प्राचीन काल में अनेकानेक नरेश हो गये हैं।
बुद्ध के वंशज चन्द्रगुप्त मौर्य हुऐ :-
शक्यासिहादुद्धसिंहः पितुरर्द्ध कृतं पदम् ॥
चन्द्रगुप्तस्तस्य सुतः पौरसाधिपतेः सुताम्।
सुलूवस्य तथोद्वह्य यावनीबौद्धतत्परः।।
षष्ठिवर्ष कृतं राज्यं बिन्दुसारस्ततोऽभवत्।
पितृस्तुल्यं कृतं राज्यमशोकस्तनयोऽभवत् ।।
(भविष्य पुराण - प्रतिसर्ग पर्व 1: अध्याय 6, श्लोक 43,44)
अर्थात् - शाक्य सिंह के वंशज भगवान बुद्ध हुए, जिसने अपने पिता के आधे समय तक राज्य किया। भगवान बुद्ध के वंशज चन्द्रगुप्त हुए, जिसने पोरसाधिपति सेलुकस की पुत्री उस यवनी के साथ पाणिग्रहण करके उसने बौद्ध पत्नी समेत साठ वर्ष तक राज्य किया चन्द्रगुप्त के वंशज बिन्दुसार हुआ अपने पिता के काल तक राज्य किया। बिन्दुसार के वंशज अशोक हुए।
खो पिप्पलिवनिया [पिप्फलिवनिया (स्या० )] मोरिया- “भगवा किर कुसिनारायं परिनिब्बुतो 'ति अथ खो पिप्पलिवनिया मोरिया कोसिनारकानं मल्लानं दूतं पाहेसुं- “भगवापि खत्तियो मयम्पि खत्तिया, मयम्पि अरहाम भगवतो सरीरानं भागं, मयम्पि भगवतो सरीरानं धूपञ्च महञ्च करिस्सामा "ति "नत्थि भगवतो सरीरानं भागो, विभत्तानि भगवतो सरीरानि । इतो अङ्गारं हरथा" ति ते ततो अङ्गारं हरिंसु [ आहरिंसु (स्या० क० ) ]
(तिपितक : दीघनिकाय: महापरिनिर्वाण सुत्र)
अर्थात - पिप्पलीवन के मौर्यो ने सुना कि कुशीनार में बुद्ध की मृत्यु हो गई है तब उन्होंने दूतों को यह कहते हुए भेजा: "बुद्ध शाक्य छत्रिय वर्ण के थे और हम भी शाक्य क्षत्रिय हैं " कृपया हमें भी भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष प्रदान करें। बुद्ध के शिष्यों ने उत्तर दिया: "धन्य बुद्ध के पवित्र अवशेषों के और कण नहीं बचे हैं," आप आग की राख ले।
सक्यपुत्तेहि मापिते मोरियनगरे नरिन्दकुलसम्भवो। चन्दगुत्तकुमारो चाणक्कद्विज पतिसमुस्सहितो पाटलिपुट्टे राजा अहोसि।
(महाबोधिवंश - द्वितीयसंगतिकथा - पृष्ठ 98)
अर्थात - मोरियनगर में शाक्य मातापिता से राजाओ के कुल में जन्मा चन्द्रगुप्त चाणक्य द्विज के साथ मिलकर पाटलिपुत्र का राजा बना।
मोरियान खत्तियान वसजात सिरीधर चन्दगुत्तोति पञ्ञात चणक्को ब्रह्मणा ततो ॥१६॥ नवामं घनान्दं तं घातेत्वा चणडकोधसा । सकल जम्बुद्वीपस्मि रज्जे समिभिसिच्ञ सो १७ ॥ सो चतुत्तिस वस्सानि राजा रज्जमकारयि तस्स पुत्तो बिन्दुसारो अट्ठवीसति कारयि ॥ २८
(महावंश : परिच्छेद 5:26-28)
अर्थात - मौर्यवंश नाम के क्षत्रियों में उत्पन्न श्री चंद्रगुप्त को चाणक्य नामक ब्राह्मण ने नवे घनानंद को चन्द्रगुप्त के हाथों मरवाकर संपूर्ण जम्मूदीप का राजा अभिषिक्त किया। 24 साल तक उन्होंने न्यायपूर्वक शासन किया। फिर उसके पुत्र का नाम बिन्दुसार था, वह अट्ठाईस साल तक शासन करता रहा।"
देवेन मे सह समागमः स्यात् राजाह । नापिनी अहं राजा क्षत्रियो मूर्धाभिषिक्तः कथं मया सार्धं समागमो भविष्यति सा कथयति देव नाहं नापिनी अपि ब्राह्मणस्याहं दुहिता ।
(अशोकावदान - अवदान 36 )
अर्थात - हे देव ! मैं आपसे समागम करना चाहती हूं ,इसपर बिंदुसार कहता है- तुम नाईन हो और मैं मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय हूँ, अतः तुम्हारे साथ हमारा समागम कैसे हो सकता है। वह कहती है - हे देव में नाईन नहीं हूं ब्राह्मण की पुत्री हूं
देव पलाण्डुं परिभुंक्ष्व स्वास्थ्यं भविष्यति राजाह ।
देवि, अहं क्षत्रियः कथं पलाण्डुं परिभक्षयामि
(दिव्यावदान - 27 कुणालवदानम् : 115)
अर्थात - हे देव पलाण्डुं खाले आप स्वस्थ हो जाएंगे, इस पर राजा अशोक ने पत्नी से कहा - देवी मैं क्षत्रिय हूं प्याज कैसे खा सकता हूं ?
शाक्य वंश था जो सूर्यवंशी क्षत्रिय थे।कौशल नरेश प्रसेनजित के पुत्र विभग्ग ने शाक्य क्षत्रियो पर हमला किया उसके बाद इनकी एक शाखा पिप्पलिवन में जाकर रहने लगी। वहां मोर पक्षी की अधिकता के कारण मोरिय कहलाने लगी। सम्राट अशोक के शिलालेख में लिखा है " मैं उसी जाति में पैदा हुआ हूं जिसमें स्वंय बुद्ध पैदा हुए "। बुद्ध की जाति की प्रामाणिकता हो चुकी है कि वो क्षत्रिय कुल में पैदा हुए थे ।
जैन ग्रन्थ कुमारपाल प्रबन्ध पृष्ट 59 में चित्रांगद मौर्य को रघुवंशी क्षत्रिय लिखा है :
" पुरा रघोवंशे चित्राङ्गदो राजाऽभिनवैः फलैः "
कुमारपाल प्रबन्ध में 36 क्षत्रिय वंशो की सूची में मौर्य वंश का भी नाम है । चित्तौड की स्थापना चित्रांगद मौर्य ने की थी।गुजरात के जैन कवि ने चित्रांगद मौर्य को रघुवंशी लिखा था और 7 वी सदी में मौर्यो ने पुरे भारत और मध्य एशिया तक पर राज किया।
इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ चंद्रगुप्त मौर्य को मयूरपूषक क्षत्रियों के कुल का बताता है जो उनके पिपिलिवन गणराज्य से होने के विषय में है :
पाडलिपुते नयरे चंदगुत्तो राया सो य मोरपोसगपुत्तो ति जे खत्तिया अभिजाणंति ।
(बृहत्कल्पसूत्र : उद्देश्य 1 : सूत्र 2489 )
अर्थात – मयूरपोशक चन्द्रगुप्त पाटलिपुत्र का राजा था और वह अभिजात (उच्चवंशीय) क्षत्रिय था।
1) पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान के सामन्तों में भीम मौर्य और सारण मौर्य मालंदराय मौर्य और मुकुन्दराय मौर्य का भी नाम आता है।मौर्य वंश का ऋषि गोत्र भी गौतम है।कर्नल टॉड मोरया या मौर्या को मोरी का विकृत रूप मानते थे जो वर्तमान में एक राजपूत वंश का नाम है।
2) "राजपूत शाखाओ का इतिहास " पेज 270 पर देवी सिंह मंडावा महत्वपूर्ण सूचना देते है। वे लिखते है कि विक्रमादित्य के समय शको ने भारत पर हमला किया तथा विक्रमादित्य न उन्हे भारत से बाहर खदेडा. विक्रमादित्य के वंशजो ने ई 550 तक मालवा पर शासन किया. इन्ही की एक शाखा ने 6 वी सदी मे गढवाल चला गया और वहा परमार वंश की स्थापना की।
अब सवाल उठता है कि विक्रमादित्य किस वंश से थे? कर्नल जेम्स टाड के अनुसार भारत के इतिहास मे दो विक्रमादित्य आते है। पहला मौर्यवंशी विक्रमादित्य जिन्होने विक्रम संवत की सुरुआत की। दूसरा गुप्त वंश का चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य जो एक उपाधि थी।
3) कर्नल जेम्स टॉड पेज 54 पर लिखते है कि मौर्य बाद मे परमार राजपूत कहलाये। अत: स्पष्ट हो जाता है कि परमार वंश मौर्य वंश की ही शाखा है। कर्नल टॉड मोरया या मौर्या को मोरी का विकृत रूप मानते थे जो वर्तमान में एक राजपूत वंश का नाम है।
चन्द्रगुप्त को शूद्र गुप्तकालीन किताब में कहा गया है जिसका नाम मुद्राराक्षस है और ये एक नाटक की किताब गुप्तकाल में विशाखदत्त द्वारा लिखी गयी है।
मुद्राराक्षस नामक संस्कृत नाटक चन्द्रगुप्त को "वृषल" और "कुलहीन" कहता है। 'वृषल' के दो अर्थ होते हैं- पहला, 'शूद्र का पुत्र' तथा दूसरा, "सर्वश्रेष्ठ राजा" । बाद के इतिहासकारों ने इसके पहले अर्थ को लेकर चन्द्रगुप्त को 'शूद्र' कह दिया।
मुद्राराक्षस के प्रमाण :
वृषलेन वृषेण राज्ञाम् "
"राजाओं मे वृष (श्रेष्ट) वृषल कहलाता है
" राजा :- आसनोंदुत्थाय । आर्य, चन्द्रगुप्तः प्रणमति "
चन्द्रगुप्त :- सिंहासन से उठ कर । आर्य चन्द्रगुप्त दण्डवत् करता है ।
इतिहासकार राधा कुमुद मुखर्जी का विचार है कि इसमें दूसरा अर्थ (सर्वश्रेष्ठ राजा) ही उपयुक्त है।
इन तथ्यों तथा उल्लेखों से संकेत मिलता है कि चंद्रगुप्त के पूर्वज एक क्षत्रिय वंश से आते थे।
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