मौर्यवंश के पतन का कारण

Author : Gayaji Dham   Updated: June 12, 2020   2 Minutes Read   49,290

Author & Publisher - Hari Maurya

मौर्यवंश के पतन के कारण क्या थे , ये एक ऐसा विषय है जिसपर सारे इतिहासकार एक मत नहीं है। विभिन्न इतिहासकारों ने अनेक शोध किये है जो अभी भी जारी है। सभी इतिहासकार एक बात पर एकमत है और ये जानने का पूरा प्रयास कर रहे है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो एक समृद्ध और सशक्त साम्राज्य जिसके परचम सुदूर मध्य एशिया तक फैले थे , वो एकदम से बिखर गया और आज इतिहास के पन्नो में अपना गौरव ढूंढने के लिए प्रयासरत है।

मौर्यवंश के पतन के कुछ कारण जो प्रायः बताये जाते है

1- अयोग्य और निर्बल उत्तराधिकारी

2- शासन का अतिकेन्द्रीकरण

3- आर्थिक संकट

4- अशोक की धम्म निति

वस्तुतः ये आधा सच है न कि पूरा सच। पूरा सच बोलने से ज्यादातर इतिहासकार घबराते है और पूरा सच कभी नहीं बताते। आइये आज हम इस महत्वपूर्ण विषय को जानने का प्रयास करते है।

मौर्यवंश की स्थापना सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने की, उसके बाद चन्द्रगुप्त के पुत्र बिन्दुसार ने शाशन किया, तत्पश्चात अशोक ने। लेकिन यहाँ एक प्रश्न उठता है कि अशोक के बाद मौर्यवंश के जितने भी शाशक हुए वे सम्पूर्ण भारत पे शाशन नहीं कर पाए बल्कि मौर्य साम्राज्य सम्पूर्ण भारत से सिमटकर केवल मगध तक सिमित होकर रह गया था। इससे एक बात सिद्ध होती है की मौर्यवंश के पतन का आरम्भ कही न कही अशोक से ही शुरू हो गया था।

बौद्ध धर्म की सिंघली अनुश्रुतियों के आधार पर ये पता चलता है की बिन्दुसार की 16 पत्नियां व् 101 संतान थी , जिसमे सबसे बड़े बेटे सुशीम और सबसे छोटे का नाम तिष्य था। इस प्रकार बिन्दुसार के बाद मौर्य वंश के उत्तराधिकारी सुशीम थे पर ऐसा हो नहीं पाया और सुशीम के स्थान पर अशोक राजा बन गए।

ऐसा कहा जाता है की सत्ता संघर्ष में अशोक ने राज गद्दी पाने के लिए अपने भाइयो को पराजित कर दिया और उनके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है।

बौध्र् ग्रन्द्थ महावंश और दीपवंश के अनुसार सम्राट अशोक ने अपने 99 भाइयो की हत्या के बाद मगध की सत्ता हासिल की थी। इस सत्ता संघर्ष में तिष्य ने अशोक का साथ दिया था।

पटना में आज भी वो कुआँ है जिसके बारे में ऐसा कहा जाता है की सुशीम और अन्य भाइयो व् उनके समर्थको के शव उसी कुए में डाले गए थे।

अब हम मौर्यवंश का पतन कैसे हुआ इस विषय पर चर्चा करते है। 

1) अयोग्य व निर्बल उत्तराधिकारी - सत्ता संघर्ष में पहले ही अशोक अपने भाइयों को पराजित कर चुका था और उसके परिवार में कोई भाई या सगे संबंधी जीवित नही बचे थे। ऐसे में  शाशन चलाने के लिए उसे ऐसे लोगो को अपने मंत्री परिषद् में रखना पड़ा जो मौर्यवंशी नहीं थे।

परिणामस्वरूप अशोक की मृत्यु के पश्चात वे विद्रोह करके स्वतंत्र हो गए। इसके अलावा अशोक ने बौद्ध मत को अपना लिया था और दिग्विजय निति का त्याग करके धम्म निति अनुसरण करने लग गए थे। जिसके पररणाम स्वरुप बाद के मौर्यवंशी शासकों ने कभी भी अपने राज्य का विस्तार करने का प्रयास नहीं किया।

राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि कश्मीर में जालौक ने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था। तारानाथ के विवरण से पता चलता है की गांधार भी स्वतंत्र हो गया था। ऐसे एक नहीं कई रियासत स्वतंत्र घोसित हो गए थे जैसे विदर्भ ,उज्जैन इत्यादि और मौर्य साम्राज्य केवल मगध तक सिमट चूका था।

बाद के मौर्य शासकों में कोई भी इतना सक्षम नहीं था जो समस्त प्रांतो को एकछत्र शासन-व्यवस्था के रूप संगठित कर पाता। विभाजन की इस अवस्था में यवनो के आक्रमण का सामना संगठित रूप में ही संभव था जो नहीं हो पाया।

2) सत्ता का अति केंद्रीकरण - मौर्य प्रशासन में सभी महत्वपूर्ण कार्य राजा के नियंत्रण में होते थे। उसे वरिष्ठ पदाधिकारियों की नियुक्ति का सर्वोच्च अधिकार प्राप्त था। ऐसे में अशोक की मृत्यु के बाद उस उसके निर्बल उत्तराधिकारियों के काल में केंद्रीय नियंत्रण सही ढंग से कार्य नहीं कर पाया। परिणामस्वरूप समस्त राजकीय व्यवस्था चरमरा गई।

3) आर्थिक संकट - अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद 84000 स्तूप बनवाकर राजकोष खाली कर दिया। इन स्तूपों को बनवाने और उनके रखरखाव के लिए प्रजा पर अनावश्यक कर बढ़ा दिया गया। ऐसे में सामान्य प्रजा पर कर का बोझ बहुत ज्यादा बढ़ गया और प्रजा बेबस और लाचार हो गई।

4) अशोक की धम्म नीति - अशोक के अहिंसक नीतियों के कारण मौर्य वंश का साम्राज्य खंडित हो गया और उसे रोकने के लिए वह कुछ भी नहीं कर पाए। उदाहरण के तौर पर आप कश्मीर के सामंत जालौक को ले सकते हैं जिसने अशोक के बौद्ध बनने के कारण कश्मीर को एक अलग स्वतंत्र देश घोषित कर दिया क्योंकि वह शैव सम्प्रदाय ( जो केवल शिव को आदि अनंत परमेश्वर मानते हो ) का अनुयायी था और उसे बौद्ध धर्म बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

यह बात भी बिल्कुल सही है कि अगर आचार्य चाणक्य की जगह कोई अन्य बौद्ध भिक्षु चंद्रगुप्त का गुरु होता तो वह उनको अहिंसा का मार्ग बताता और मौर्य वंश की कभी स्थापना ही नहीं हो पाती।

बृहद्रथ की मृत्यु - निर्बल , कमजोर और बौद्ध अनुयायी होने के कारण ही मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ की मृत्यु हुई। जब बृहद्रथ का शासन काल था तब यवन भारत पर आक्रमण करने वाले थे। परंतु बृहद्रथ इस बात से एकदम बेफिक्र थे। 

जब बृहद्रथ को उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने सेना के परेड में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया था तब वह यवन नृत्यांगनाओं का नृत्य देख रहे थे। उस दिन उन्हें सैनिकों की परेड में भी जाना था और उसके द्वारा नियुक्त सेनापति पुष्यमित्र शुंग के कई बार संदेश भेजने पर भी वह नहीं आए और सेना धूप में अपने राजा की प्रतीक्षा करती रह गई।

फिर नृत्य समाप्त होने पर वे सेना की अगुवाई के लिए आए और वहां पहुंचकर पुष्यमित्र शुंग से इस बात पर क्रोधित हुए कि उन्होंने इतने छोटे से काम के लिए उन्हें परेशान क्यों किया। बृहद्रथ का यह कार्य सेना और सैनिको का मनोबल गिराने वाली घटना थी। यह सुनकर पुष्यमित्र शुंग को क्रोध आया और उन्होंने बृहद्रथ के ऊपर तलवार से वार किया और उनकी हत्या कर दी।

इसके बाद उन्होंने शुंग वंश की स्थापना की और यवन आक्रमणकारियों को भी हराया और भारत के बाहर खदेड़ भगाया।

प्रसिद्ध इतिहासकार राधा कुमुद मुखर्जी का कथन वस्तुतः सत्य है कि यदि अशोक अपने पिता और पितामह की रक्त तथा लौह की नीति का अनुसरण करता तो कभी भी मौर्य साम्राज्य का पतन नहीं होता।

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