लश्कर-ए-मीडिया वालों जरा देखो, कि जब भारत पूरी तरह से वैदिक(सनातन धर्म) राष्ट्र था यानि तुम्हारे शब्दों में “साम्प्रदायिक” था. . तब वो कैसा था।
भारत सदैव विश्व गुरु रहा है | भारत दो शब्दों से मिलकर बना है 'भा' और 'रत' , 'भा' का अर्थ होता है ज्ञान और 'रत' का अर्थ होता है लीन रहना अर्थात जो ज्ञान में लीन रहने वाला है। भारत सदैव ज्ञान में लीन रहा है और विश्व गुरु बनने के पीछे भी यही कारण है। गुरु का अर्थ होता है देने वाला और भारत ने समस्त विश्व को बहुत कुछ दिया है , छोटी या बड़ी , दैनिक जीवन से जुडी , ज्ञान विज्ञान से जुडी , जीवन लगभग हर क्षेत्र से जुडी चीजे इसमें शामिल है।
समस्त विश्व सनातन देनों का सदैव ही ऋणी रहेगा।
भारत ने विश्व को सबसे समृद्ध भाषा संस्कृत दी है। संस्कृत एक ऐसी भाषा है जिसके व्याकरण में कोई भी अपवाद नहीं है। जो रचना महर्षि पाणिनि ने व्याकरण बनाते समय की तब से अब तक संस्कृत में कोई भी सुधार की आवश्यकता नहीं हुयी।
इस बात को समझने के लिए अगर आज संस्कृत को इस कंप्यूटर युग में देखा जाये तो संस्कृत का अल्गोरिथम सभी भाषाओँ में श्रेष्ठ है इसलिए कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए संस्कृत सबसे उपयुक्त भाषा है। संस्कृत ब्राह्मी लिपि में लिखी जाती है। संस्कृत के बाद हिंदी भाषा का उद्भव हुआ जो कि देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। विश्व की जितनी भी मूल भाषा है जैसे फ्रेंच, स्पेनिश, डच, आदि (अंग्रेजी को छोड़कर क्योंकि अंग्रेजी मूल भाषा नहीं है) भाषा के विशेषज्ञ मानते है कि संस्कृत से ही उन सभी भाषाओँ का उद्धभव हुआ है।
अब लिपि की बात हो रही है तो स्पष्ट है कि विश्व को लिखना भी भारत ने ही सिखाया। जब कुछ लिखा जाता है तो उसके लिए कागज , धातु पत्र , दीवार आदि पर लिखा जाता है पर कागज पर लिखना सबसे सरल होता है। अतः अब जब लिखने कि बात हो रही है तो, यह जानकर गर्व होगा कि कागज का अविष्कार भी भारत में ही हुआ , यह बात चीनी यात्री ह्वेनसांग की भारत यात्रा 629-644 के दस्तावेजों से प्रमाणित होती है। मुंज और सल के पौधों को मिलाकर उसका उपयोग कागज बनाने के लिए किया जाता था। चीनियों ने यह कला भारत से सीख कर विश्व को दी है।
विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो भारत विज्ञान के क्षेत्र में भी सबसे अग्रणी रहा है। स्वास्थ्य को सही रखने हेतु आचार्य चरक ने 'चरक संहिता' की रचना की। उसमे आयुर्वेद से सभी बिमारियों का उपचार करने का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। रसोई में काम आने वाले मसालों (फारसी शब्द ) अर्थात औषधियों का उपयोग किस मात्रा में करने से कौन सा रोग दूर होता है सब बताया गया है। महर्षि वाग्भट्ट ने बताया कि जीवन शैली कैसे होनी चाहिए, कितनी मात्रा में जल लेना चाहिए, कैसे जल पीना चाहिए इत्यादि का विस्तार पूर्वक विवरण अष्टांगसंग्रह और अष्टांगहृदयसंहिता में दिया है। उदाहरनार्थ महर्षि वाग्भट ने बताया कि भोजन बनाते समय सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श आवश्यक है और हमारे गावों में भोजन ऐसे ही पकाया जाता है, यही दृष्टिकोण जापानियों ने अरबों रुपये खर्च कर के आज के आधुनिक युग में कुछ वर्ष पूर्व बताया कि खुले में भोजन बनाने से हमे सम्पूर्ण पौष्टिक तत्व मिलते है।
आयुर्वेद में सभी बिमारियों का पूर्णतया उपचार किया जाता है। मगर आज की चिकित्सा विज्ञान 'एलोपैथी' और 'आयुर्वेद' का यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि एलोपैथी में सिर्फ बीमारी से लड़ा जाता है न की पूर्णतया इलाज किया जाता है।
चिकित्सा विज्ञानं की सबसे मुश्किल शाखा शल्य चिकित्सा ( सर्जरी) होती है , वह भी भारत की ही देन है। आचार्य सुश्रुत ने 'सुश्रुत संहिता ' में शल्य चिकित्सा की विधि का वर्णन विस्तारपूर्वक किया है। आचार्य सुश्रुत ने 125 उपकरणों का उल्लेख सुश्रुत संहिता में किया है जिनसे शल्य चिकित्सा की जाती थी और आज भी उन 125 उपकरणों का प्रयोग हो रहा है। शल्य चिकित्सा का एक और मुश्किल भाग है प्लास्टिक शल्य चिकित्सा और आपको जानकर गर्व होगा की वह भी भारत की देन है। एक उदाहरन से यह बात बताना चाहूँगा " 1770 ई० में कर्नाटक का राजा हैदर अली था। अंग्रेजो ने कर्नाटक को अपने अंतर्गत मिलाने के लिए हैदर अली पर खूब आक्रमण किये परन्तु हर बार अंग्रेजों को मुह की खानी पड़ी थी। 1775 ई० में प्रो० कूट भारत में अधिकारी बनकर आया था। उसने भी हैदर अली पर आक्रमण किया पर हैदर अली ने उसे पराजित कर उसकी नाक काट दी थी। वह कटी नाक लेकर वापस आ रहा था तो बेलगाम के एक वैद्य ने उसकी दशा पर दया कर के उसकी नाक प्लास्टिक सर्जरी से जोड़ दी थी। इस घटना का विवरण प्रो० कूट ने ब्रिटिश सभा में किया था , तब ब्रिटिश दल भारत के उस वैद्य के पास आया और इस चिकित्सा पद्धति में पूछा।उन वैद्य महाशय ने बताया कि यह कार्य मैं क्या कोई भी वैद्य कर सकता है। " तब प्रो० कूट ने यह विद्या पूना में सीख कर इंग्लैंड में सीखाई। इन सारे प्रसंगो का उल्लेख प्रो० कूट ने अपनी डायरी में किया।
ऐसे ही टीकाकरण की शुरुआत भी भारत में ही हुयी। डॉ. ओलिव ने अपनी डायरी में लिखा है कि "जहाँ विश्व में लोग चेचक से मर रहे है, वहीँ यहाँ भारत में चेचक नगण्य के बराबर है और यहाँ इसके लिए टीकाकरण किया जाता है। " यह घटना 1710 की कलकत्ता की है यह तो सिर्फ कुछ ही उदाहरन है जो ये बताते है कि भारत कितना समृद्ध था और यह ज्ञान भारत में पिछले लाखों वर्षों से चला आ रहा है। इन सब तथ्यों का पता विदेशी यात्रिओं के विवरण से मिलता है।
अब थोडा तकनीक की और देखे तो पता चलेगा की विश्व को लोहा (इस्पात या स्टील) बनाना भारत ने सिखाया। 1795 में एक अंग्रेज अधिकारी ने सर्वेक्षण किया और अपनी यात्रा विवरण में लिखा है कि " भारत में इस्पात का काम कम से कम पिछले 1500 वर्षों से हो रहा है। " उसके अनुसार " पश्चिमी , पूर्वी, दक्षिणी भारत में 15,000 छोटे बड़े कारखाने चल रहे है और हर कारखाने मे रोजाना 500 कि०ग्रा० इस्पात बनाया जाता है। भारत में किसी भी कारखाने की भट्टी में लागत का खर्च 15 रुपये आता है। एक भट्टी से एक टन इस्पात बनाया जाता है और इस्पात बनाने का खर्च 80 रुपये आता है। इस इस्पात से बना सरिया यूरोप के बाजार में बिकता है और इस इस्पात की सबसे बड़ी विशेषता है कि उस पर कभी जंग नहीं लगता है। " इस तथ्य का सबसे बड़ा उदाहरन दिल्ली के महरोली में स्थित ध्रुव स्तम्भ है जो 1500 वर्ष पूर्व (लगभग) बना था और आज तक उस पर जंग नहीं लगा है।
खगोल विज्ञान के क्षेत्र में गुरुत्वाकर्षण से सम्बन्धित सभी नियम वराहमिहिर और आर्यभट ने न्यूटन से 4000 वर्ष पूर्व ही प्रतिपादित कर दिए थे। सूर्य से पृथ्वी के बीच की दूरी , शनि के उपग्रहों की संख्या , आदि सभी गणना उतनी सटीक है जो आज का आधुनिक विज्ञान मानता है। आर्यभट ने सबसे पहले ब्लैक होल थ्योरी दी। स्पष्ट है कि ये सभी गणना बिना किसी टेलिस्कोप के सम्भव नहीं है अर्थात टेलिस्कोप का आविष्कार भी भारत में ही हुआ था। आर्यभट ने बहुत सारे रहस्य खगोल विज्ञानं के बारे में बताये थे जिनमे पृथ्वी के घूर्णन का समय , दिन रात और वार या यूँ कहें दिन की संख्या बताई थी हम कह सकते है कि कलेंडर भी भारत की ही देन है।
अब जब बात आर्यभट्ट की हो रही है तो यह तो सर्व विदित है कि शुन्य का आविष्कार भारत ने किया। विश्व को गणना करना भारत ने सिखाया। महर्षि भास्कर द्वितीय ने एक ग्रन्थ 'लीलावती' की रचना की जीसमे उन्होंने अवकलन के सूत्रों का वर्णन किया है। समाकलन गणित की रचना महर्षि माधवाचार्य ने की है। गणित की बहुत ही सरल शाखा है त्रिकोणमिति उसकी रचना बोधायन ने की थी और किसी भी निर्माण कार्य के लिए त्रिकोणमिति का ज्ञान होना आवश्यक है। बीज गणित की रचना भी महर्षि भरद्वाज ने की थी। बीज गणित समस्त गणित का छोटा रूप है। वैदिक गणित एक ऐसी देन है जिसके द्वारा किसी भी गणना को कम से कम समय में किया जा सकता है।
रसायन शास्त्र में भारत के नागार्जुन का नाम अग्रणी है। नागार्जुन राख से सोना बनाने की विधि जानते थे। भारत ने ही पारा बनाने की विधि का वर्णन विश्व को दिया है। सबसे पहले बर्फ बनाने की विधि चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के द्वारा खोजी गयी। वे बहुत बडे रसायन शास्त्री थे। शुष्क सेल का आविष्कार भी भारत में महर्षि अगस्त्य ने किया। अगस्त्य संहिता में शुष्क सेल बनाने की विधि का पूर्ण विवरण है। डायरेक्ट करंट ( दिष्ट धारा) की जानकारी महर्षि अगस्त्य ने ही दी थी। रसरत्न समुच्चय में जस्ता बनाने की विधि का उल्लेख मिलता है।
अर्थशास्त्र में सबसे बड़ा ग्रन्थ " अर्थशास्त्र" आचार्य चाणक्य के द्वरा दिया गया है जो कि ईसा से 400 वर्ष पूर्व दिया जा चूका है। विश्व को सिक्का बनाना भारत ने सिखाया इसका प्रमाण मोहनजोदड़ो और हड्ड्प्पा से प्राप्त अवशेषों से मिलता है। भारत से कई वर्षों से मसालों का निर्यात किया जाता रहा है। भारत के इस्पात का विवरण पहले ही हो चूका है जो यूरोप के बाजारों में बहुत ही ऊँचे दामों पर बेचा जाता था।
स्पष्ट है कि भारत में कितना ज्ञान था और यह ज्ञान पूरे भारत में शिक्षण व्यवस्था से दिया जाता था। सन 1868 में ब्रिटेन में पहला विद्यालय एक कानून के तहत खुला था जबकि उस समय भारत में लगभग 7 लाख 18 हजार 568 गुरुकुल चला करते थे और उन गुरुकुलों में सिर्फ एक आचार्य होते थे और हर गुरुकुल में विद्यार्थियों की संख्या हजारों में हुआ करती थी। कक्षा नायक ही अपने साथी विद्यार्थियों को सिखाया करता था। यह शिक्षण व्यवस्था भी भारत ने ही दी। प्रो० कूट ने अपनी डायरी में लिखा कि जिस आचार्य से उसने प्लास्टिक सर्जरी सीखी थी, सीखाने वाला आचार्य वो जाती से नाई था अर्थात स्पष्ट है कि जातिगत शिक्षण व्यवस्था तब भारत में नहीं थी। आज भी ब्रिटेन में भारत की कक्षा नायक वाली शिक्षण व्यवस्था चलती है। जिस समय ह्वेनसांग भारत आया था तब उसने अपने विवरण में लिखा है कि कलकत्ता में 20,000 विद्यार्थी अपनी शिक्षा पूर्ण कर अपने देश लौटने की तैयारी कर रहे है अर्थात भारत से ही समस्त ज्ञान विश्व में फैला है। कृषि क्षेत्र में खेती करने के तरीके , पहला अविष्कार पहिया , उपयुक्त फसल प्राप्त करने के तरीके भारत ने ही दिए थे। कुछ अन्य अविष्कार जैसे हवाई जहाज भारत में हुए। 1895 में विश्व का सबसे पहला विमान मुंबई की चौपाटी पर शिवकर बापूजी तलपडे ने उड़ाया था। विमान शास्त्र ( महर्षि भारद्वाज द्वारा रचित) के अनुसार विमान बनाने के 500 सिद्धांत है और हर सिद्धांत से 32अलग अलग तरह के विमान बनाये जा सकते है। 1895 में जो विमान उड़ा वह 1500 फीट उपर उड़ाया गया था और वह भी बिना चालक के उड़ाया गया था , उस विमान को सुरक्षित तरीके से उतारा भी गया था। इस विमान को उड़ते हुए राजकोट के राजा अशोक गायकवाड , मुंबई हाई कोर्ट के जज गोपाल रानाडे , और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने देखा था। हमारी लापरवाही के कारण यह अविष्कार (1903) राईट बंधू के नाम दर्ज हो गया। उन्होंने जो विमान बनाया वह 120 फीट उपर उड़कर नीचे गिर गया था। बारूद का आविष्कार भी भारत में हुआ। भारत में बारूद का उपयोग 6वी शताब्दी में पटाखे बनाने के लिए किया जाता था। अंग्रेजों ने बारूद बनाना भारत में सीखा और उसका उपयोग हथियार बनाने के लिए किया।
अध्यात्म के क्षेत्र में भारत का लोहा आज भी समग्र विश्व मानता है। आज भी यह स्पष्ट है कि अध्यात्म में हम से आगे कोई नहीं है।
अतः यह स्पष्ट हो चूका है कि भारत ने विश्व को हर क्षेत्र बहुत कुछ दिया है और हर क्षेत्र में भारत का योगदान है। भारत इसीलिए विश्व गुरु कहलाने लायक था और भारत को विश्व गुरु कहा भी गया है।
अब हमे यह मिथक पालने की कोई आवश्यकता नही कि भारत का विश्व के प्रति कोई योगदान नहीं है। जो यह मिथक पाले हुए है उन्हें सत्य से अवगत कराना हमारा कर्तव्य है। अति महत्वपूर्ण कार्य ये भी है कि जो भी अविष्कार भारत वासियों ने किये है उनको भारतवासियों के नाम पर दर्ज करवाना है जो अविष्कार किसी और के नाम से दर्ज है उन्हें सही करवाया जाए और सभी तथ्य सबके सामने लाये जाये और ।
जो हमारे ग्रंथों को नष्ट किया गया या लूटा गया, उन्हें वापस लाया जाये या फिर उनमे तोड़ मरोड़ के तथ्यों के साथ जो छेड़खानी हुई है, उन्हें सुधारा जाये।
विश्व को समर्पित भारतवर्ष की देनों के लिए समस्त भारतवासी को गर्वित होना चाहिए।
जय भारत श्रेष्ठ भारत
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