सती प्रथा का चलन

Author : Acharya Pranesh   Updated: January 21, 2020   2 Minutes Read   24,950

प्रायः सती प्रथा को भारत के सन्दर्भ में , भारत से जोड़ के देखा जाता है जो वस्तुतः वास्तविकता से परे है। ऐतिहासिक अभिलेखों में कही भी इस कुप्रथा का उल्लेख भारत के सन्दर्भ  में नहीं दीखता है । मौर्य तथा गुप्त वंश के काल में भी सती प्रथा का कही कोई उल्लेख नहीं मिलता।  Columbia Encyclopedia के अनुसार मृत पति के साथ उस की पत्नी को जलाने की कुप्रथा का उल्लेख भारत से बाहर के देशों में पाया जाता है। उन उल्लेखों के अनुसार थ्रेशियन, स्किथियन, सकेनडनेवियन, प्राचीन मिस्र, चीन, ओशियाना तथा अफ्रीका में ऐसे रिवाज हुआ करते थे।

सम्भवतः भारत में यह कुप्रथा कुशान वंश के समय विदेशों से आयी तथा मध्य काल में राजपूत वँशो तक सीमित रही। ऱाजपूत अकसर लम्बे समय तक युद्धों में व्यस्त रहते थे। विदेशी अक्रान्ता विजयी होने के पश्चात स्त्रियों के साथ जीवन पर्यन्त बलात्कार करते थे। इस दुर्दशा के विकल्प स्वरूप ‘जौहर’ की प्रथा राजपूत परिवारों में अपनायी गयी जो कि उस समय की सामाजिक और राजनैतिक आवश्यक्ता थी। 

पति के वीरगति पाने की सम्भावना के केवल विचार मात्र से ही वीरांगना  राजपूत स्त्रियां स्वेच्छा से अग्नि प्रवेश कर के अपने सतीत्व की रक्षा करने में अपना गौरव समझतीं थीं। जब महलों के प्राँगण में स्त्रियाँ जौहर की रस्म करतीं थी, तो उस के साथ ही रण भूमि पर शत्रुओं की विशाल सैना के सामने राजपूत केसरिया वस्त्र पहन कर ‘साका’ की रस्म अदा करते थे और धर्म तथा स्वाभिमान की रक्षा के लिए  युद्ध कर के शत्रु के सामने झुकने के बजाय अपनी आत्म बलि देते थे।

रानी पद्मनी का ‘जौहर’ भी सती होना नहीं था। वह जौहर था। रानी पद्मनी किसी धार्मिक कारण से अपनी सखियों के साथ चिता में नही बैठी थीं , अपितु अपने स्तीत्व और आदर्शों की रक्षा के कारण ऐसे साहसी कदम को उठाने के लिये उद्यत हुयी थीं। जौहर प्रथा को राजपूतों ने इस लिये सम्मानित करना आरम्भ किया था ताकि नव-विवाहित युवतियाँ प्रोत्साहित हो कर अग्नि में स्वेच्छा से प्रवेश कर सके और पति की मृत्यु पश्चात अपमान जनक जीवन जीने के बजाय स्वाभिमान से अपने स्तीत्व की रक्षा कर सकें। वास्तव में यह उन शूरवीर पत्नियों के लिये ऐसी गौरवमयी मिसाल है जिस की तुलना विश्व इतिहास में और कहीं नहीं मिलती।

सती कुप्रथा का ढोल केवल भारत और हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिये पी़टा जाता रहा है। भारत के कुछ प्राँतों में जहाँ ब्रिटिश शासन था वहाँ मृत व्यक्ति की पत्नी को पति के साथ जला कर जबरन  सम्पति हडपने के लिये विधवा स्त्री को सती के नाम से जलाने की कुप्रथा चल पड़ी थी जिस का हिन्दू धर्म से किसी भी प्रकार का कोई  सम्बन्ध नही था। 

लेकिन फिर भी यह हिन्दू समाज सुधारकों के लिये सांत्वना की बात है कि उस कुप्रथा को बन्द करने के लिये राजा राम मोहन राय जैसे हिन्दू समाज सुधारक आगे आये थे और इस कुप्रथा को बंद कराने की मुहिम चलाई। 

आज इस कुप्रथा का उल्लेख हि्न्दू विधवाओं के लिये केवल ऐक दुःखद स्मृति चिन्ह है। 

 


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