सनातन संस्कृति में पुरातन काल से ही सिर पर शिखा (चोटी ) रखने का प्रावधान रहा है। शिखा रखना क्या बस एक परम्परा है, क्या शिखा रखना सनातन संस्कृति का प्रतिक मात्र है ? शिखा रखना बस एक प्रतिक न होकर मस्तिष्क के सर्वांगीण विकाश के लिए आवश्यक भी है जिसे हम शायद नहीं जानते। सिर पर शिखा ब्राह्मणों, संतो , वैष्णवों की पहचान तो है ही पर ये पूर्णतः वैज्ञानिक भी है।
शिखा रखने के वैज्ञानिक कारन :
1 - सर्वप्रमुख वैज्ञानिक कारण यह है कि शिखा वाला भाग, जिसके नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, कपाल तन्त्र के अन्य खुली जगहोँ (मुण्डन के समय यह स्थिति उत्पन्न होती है) की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है। जिसके खुली होने के कारण वातावरण से उष्मा व अन्यब्रह्माण्डिय विद्युत-चुम्बकी य तरंगोँ का मस्तिष्क से आदान प्रदान बड़ी ही सरलता से हो जाता है। और इस प्रकार शिखा न होने की स्थिति में स्थानीय वातावरण के साथ साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है।
शरीर विज्ञान के माने तो मस्तिष्क को सुचारु, सर्वाधिक क्रियाशिल और यथोचित उपयोग के लिए इसके ताप को नियंन्त्रित रहना अनिवार्य होता है। जो शिखा न होने की स्थिति मे एकदम असम्भव है क्योँकि शिखा (लगभग गोखुर के बराबर) इसताप को आसानी से सन्तुलित कर जाती है और उष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से उष्मा के स्वतः आदान प्रदान को रोक देती है।
आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज इन सब वैज्ञानिक कारणोँ से भलिभाँति परिचित है।ऐसे ही कई उदाहरण हैँ जिनके आगे पाश्चात्य वैज्ञानिक भी घुटने टेक चुके हैँ।
2 - जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं। शिखा रखने से मनुष्य लौकिक तथा पारलौकिक समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त करता है। शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक - ठीक कर सकता है। शिखा रखने से सभी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं। शिखा रखने से मनुष्य की नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है। शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है।आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज इन सब वैज्ञानिक कारणोँ से भलिभाँति परिचित थे।ऐसे ही कई उदाहरण हैँ जिनके आगे पाश्चात्य वैज्ञानिक भी घुटने टेक चुके हैँ।
3 - यजुर्वेद में शिखा को इन्द्र्योनी कहा गया हे ।ब्रह्मरन्ध्र ज्ञान, क्रिया और इच्छा इन तीनों शक्तियों की त्रिवेणी है। मस्तक के अन्य भागों की अपेक्षा ब्रह्मंध्र को अधिक ठंडापन स्पर्श करता है। इसलिए उतने भाग में केश होना बहुत आवश्यक है। बाहर ठंडी हवा होने पर भी यही केश राशि ब्रह्मरंध्र में पर्याप्त ऊष्णता बनाए रखती है।ब्रह्मरन्ध्र की ऊष्णता और पीनियल ग्लेंड्स की संवेदनशीलता को बनाए रखने हेतु शिखा कि रचना की गई।
वेदिक अनुष्ठानादी में ऊर्जा उतासर्जित ना हो और व्यर्थ न जाये इसलिए भी शिखा बंधन किया जाता है ।
शिखा बंधन केवल सनातन धर्म तक ही सिमित नहीं है बल्कि कोई भी शिखा बंधन कर सकता है और इसका समुचित लाभ अवश्य होगा।
शिखा को बाँधने का मन्त्र है :-
चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे।।
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