प्राचीन भारत में सनातन संस्कृति सिर्फ धर्म ही नहीं ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में भी निपुण थे। फिर चाहे वो चिकित्सा शाश्त्र हो या रसायन शाश्त्र हो या फिर आयुध शाश्त्र। सनातन ग्रंथो में आयुध शाश्त्र के विषय में भी अनेको प्रमाण वर्णित है जिनसे पता चलता है की तब के वैज्ञानिक अनेको प्रकार के अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण थे।
प्राचीन काल में कई प्रकार के शश्त्रो का विवरण मिलता है जिनमे कुछ प्रमुख इस प्रकार है :
अस्त्र :-
अस्त्र उसे कहते हैं, जिसे मन्त्रों के द्वारा दूरी से फेंकते हैं। वे अग्नि, गैस और विद्युत तथा यान्त्रिक उपायों से चलते हैं। दैवी अस्त्र वे आयुध हैं जो मन्त्रों से चलाये जाते हैं। प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मन्त्र-तन्त्र के द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र भी कहते हैं।
इन बाणों के कुछ प्रमुख रूप इस प्रकार हैं:
"आग्नेय"
यह एक प्रकार का विस्फोटक बाण है। यह जल के समान अग्नि बरसाकर सब कुछ भस्मीभूत कर देता है। इसका प्रतिकार पर्जन्य है।
पर्जन्य: यह आग्नेय का प्रतिकार बाण है। यह जल बरसाकर अग्नि को शांत कर देता है।
"वायव्य"
इस बाण प्रयोग से भयंकर तूफान आता है और चारो ओर अन्धकार छा जाता है।
"पन्नग"
इस बाण के प्रयोग से सर्प पैदा होते हैं जो अपने शत्रु पर विष का प्रभाव सालने में सक्षम होता है। इसके प्रतिकार स्वरूप गरुड़ बाण छोड़ा जाता है।
"गरुड़"
इस बाण के चलते ही गरुड़ उत्पन्न होते है, जो पन्नग अस्त्र द्वारा चलाये गए सर्पों को खा जाते हैं।
"महाअस्त्र" : इस श्रेणी में मुख्यतः तीन दिव्यास्त्र आते है।
"ब्रह्मास्त्र"
ये परमपिता ब्रम्हा जी का अस्त्र माना जाता है। यह अचूक व विकराल अस्त्र है। शत्रु का नाश करके ही छोड़ता है। इसका प्रतिकार दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही संभव हो सकता है, अन्यथा नहीं। प्राचीन काल के अस्त्रों में ये सर्वाधिक प्रसिद्द अस्त्र है ।
"वैष्णव अस्त्र"
ये भगवान विष्णु का अस्त्र है। इस अस्त्र का कोई प्रतिकार ही नहीं है। यह बाण चलाने पर अखिल विश्व में कोई अन्य शक्ति इसका मुक़ाबला नहीं कर सकती।
इसका केवल एक ही प्रतिकार है और वह यह है कि शत्रु अस्त्र छोड़कर नम्रतापूर्वक अपने आप को समर्पित कर दे। कहीं भी हो, यह बाण वहाँ जाकर ही भेद करता है। इस बाण के सामने झुक जाने पर यह अपना प्रभाव नहीं करता।
"पाशुपत"
ये देवो के देव महादेव भगवान शिव का अचूक अस्त्र है। इससे विश्व का नाश हो जाता हैं यह बाण महाभारतकाल में केवल भीष्म पितामह एवं अर्जुन के पास था। इस अस्त्र का संधान केवल दुष्टों पर किया जा सकता है अन्यथा ये पलट कर चलने वाले को ही समाप्त कर देता है।
विमान (हवाई जहाज) की कल्पना और बनाने की विधि भी सनातन ने ही दी, गणित विज्ञान, महल निर्माण, वास्तु शाश्त्र कला सब कुछ सनातन संस्कृति की ही विरासत है।
सनातन ने सारे विश्व को अस्त्र शस्त्र का ज्ञान दिया , उनके निर्माण की विधि बताई पर साथ ही ये शर्त भी रही की उनका प्रयोग सिर्फ और सिर्फ मानव कल्याण तथा धर्म की रक्षा हेतु किया जाये।
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