रोबोट एक मशीनी यंत्र होता है जो बनावट में मनुष्य सदृश्य होता है। आज चीन , जापान जैसे देशो ने रोबोट विकसित करने में काफी प्रगति की है पर आपको जानकर हर्ष व गर्व भी होगा की हमारे सनातन शाश्त्रो में रोबोट जैसे यंत्र का बहुतायत से उल्लेख मिलता है। विदेशी आक्रमण में हमारी काफी शास्त्रीय सम्पदा नष्ट हो गई अन्यथा ये सभी यंत्र भारत के ही अविष्कार होते।
आज भी भारतीय शास्त्रों में रोबोट सदृश्य यंत्र के संकेत मिल जाते है।राजा भोज रचित समरांगण सूत्रधार ग्रन्थ में स्त्री पुरुष प्रतिमा यंत्र (रोबट ) का उल्लेख मिलता है। राजा भोज के समय विश्वकर्मा मुनि का कोई ग्रन्थ रहा होगा जिससे उन्होंने इस विद्या का ज्ञान प्राप्त किया और उसका उल्लेख किया है। लेकिन यहा उस यंत्र निर्माण की विधि नही दी जिससे स्पष्ट है कि रोबट का उलेख उनसे पूर्व के किसी ग्रन्थ में अवश्य था। राजा भोज ने उसका संक्षिप्त महत्व प्रतिपादित कर दिया।
अनेको ग्रंथों में रोबट अर्थात यंत्र मानव का उल्लेख मिलता है -
” अथ दासादि परिजनवर्गेर्विना तत्कृत्याना सर्वेशा यथावन्निर्वहणाय कल्पितस्य स्त्रीपुरुषप्रतिमायन्त्र घटना " –
अर्थात घर पर सेवक और परिजन न हो तो कार्य सम्पादन हेतु स्त्री पुरुष प्रतिमा यंत्र (रोबट ) का उलेख करते है।
” दृगग्रीवातलहस्तप्रकोष्ठबाहूरुहस्तशाखादि।
सच्छिद्र वपुरखिल तत्सन्धिषु खंडशो घटयेत्।। - समरांगण सूत्रधार ३१/१०१
अर्थात ऐसे यंत्र मानव का निर्माण करे आँख ,गर्दन , तल-हस्त ,प्रकोष्ठ ,बाहु ,उरु , हस्त -शाखा अर्थात उंगलिया भी हो। इस प्रकार की देहयष्टि में यंत्र मानव को पूरे देहान्तर्गत आवश्यक छिद्रों एवं अंगो की संधियों और विभिन्न खंडो की भी घड़ाई करनी चाहिए।
” शिलिष्ट कीलकविधिना दारुमय सृष्टचर्मणा गुप्तं।
पुंसोsथवा युवत्या रूपं कृत्वातिरमणीयम्।।
रन्ध्रगते: प्रत्यंग विधिना नाराचसगते: सूत्रे: – समरांगण सूत्रधार ३१/१०२
अर्थात अंगो के संयोजन में प्रयुक्त कीले को बहुत ही चिकनाई वाला बनाये और सविधि लगाये ,यह रचना काष्ठमय होगी किन्तु उस पर चमडा मढ़ कर नर नारी मय रूप दिया जायेगा। यह रूप अतीव रमणीय करना चाहिए। इस काया निर्माण के बाद उसके उसके रन्धो में जाने वाली शलाकाओ को सूत्रत: संयोजित किया जाना चाहिए।
” ग्रीवाचलनप्रसरणविकुज्चनादीनि विदधाति।
करग्रहणाताम्बुलप्रदानजलसेचनप्रणामादि।। – समरांगण सूत्रधार ३१/१०३
अर्थात ऐसे विधान पूर्वक बनाया गया यंत्र मानव ग्रीवा को चलाता है ,हाथो को फैलता समेटता है अर्थात ऐसे विचित्र कौतुहल करता है यही नही वो ताम्बुल की मनुहार करता देता है , जल की सिचाई करता है और नमस्कार भी करता है।
” आदर्शप्रतिलोकनवीणावाद्यादि च करोति।
एवमन्यद्पि चेद्दशमेतत कर्म विस्मयविधायि विधत्ते।।
जृम्भितेन विधिना निजबुद्धे: कृष्टमुक्तगुणचक्रवशेन -समरांगण सूत्रधार ३१/१०४ -१०५
अर्थात वह यंत्र मानव आने वालो को शीशा दिखाता है ,वीणा आदि वाद्य बजाता है। ये सारे ही कार्य यंत्र ही पूरे करता है। इस प्रकार पूर्व में कहे हुए गुणों के वशीभूत होकर चक्रीय विधि के अनुसार संचालक की बुद्धि के अनुसार प्रदर्शन करने लगता है।
यांत्रिक दरबान का उलेख –
” अनभिमतजनप्रवेशनिरोधनाय द्वारदेशे स्थापनीय द्वारपालयंत्र –
गृहार्थ द्वारपाल का वर्णन –
” पुंसो दारुजमुर्ध्व रूपं कृत्वा निकेतनद्वारि।
तत्करयोजित दंड निरुणद्धि प्रविशता वर्म्त।। समरांगण सूत्रधार ३१ /१०६
लकड़ी के बनाये यंत्र मानव के हाथ में एक दंड रखे उसे घर के बाहर खड़ा करे ताकि यह अनाधिकार चेष्टा कर घर में घुसने वालो को रोकेगा।
खड्गहस्तमथ मुद्ररहस्त कुंतहस्तमथवा यदि तत् स्यात।
तन्निहन्ति विशतो निशि चौरान द्वारि संवृतमुख प्रसभेन।। समरांगण सूत्रधार ३१/१०७
यदि उक्त काष्ठ रचित यंत्र मानव के हाथ में तलवार ,मुद्गर ,भाला प्रदान कर देंवे तो वह रात्रि में प्रवेश करने वाले चोरो और अपना मुख छुपा कर आने वाले घुसपेठियो को मार सकता है।
इस तरह रोबोट का उल्लेख महाभारत और कालिदास रचित रघुवंश की मल्लिनाथ की टीका में भी उपलब्ध है।
इन तथ्यों से ये प्रमाणित होता है की कही न कही आज के निर्मित रोबोट भारतीय ज्ञान विज्ञान के ही सूत्रों पर आधारित है जिनका प्रयोग करके आधुनिक वैज्ञानिक आज मनुष्य सदृश्य रोबोट यंत्र का निर्माण करने में सक्षम हुए।
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