भौतिकी के क्षेत्र में भारत का योगदान अद्वितीय है। भारतीय विद्वानों ने शताब्दी पूर्व अनेक ऐसे अविष्कार सभ्यता को दिए जिसने मानव जीवन को सुगम बना दिया। चक्र का अविष्कार भी ऐसी ही एक अनुपम जीवनोपयोगी अविष्कार है जिसके बिना यातायात की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
वर्तमान के आधुनिक युग में भी चक्र का विकल्प नहीं ढूंढा जा सका है। चाहे भू यातायात के साधन हो अथवा बड़े बड़े समुद्री जहाज अथवा आकाश मार्ग के वायुयान , किसी न किसी रूप में चक्र का उपयोग करते ही हैं।
भारत के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में सुन्दर वृत्त के आकर वाले सूर्य को चक्र से उपमित किया गया है। सूर्य को गति का श्रेष्ठ कारक भी माना गया है।
सप्त युज्जन्ति रथमेकचक्रम् अश्वो वहति सप्तनामा।
( ऋग्वेद )
भावार्थ : एक अश्व सूर्य के एक चक्र वाले रथ को जो रश्मि रूपी सात लगामों से बंधा है, उसे वहन करता है।
ऋग्वेद के इस श्लोक में सूर्य की सात किरणों को सात लगाम कहकर निरूपित किया गया है। विज्ञान भी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि सूर्य के प्रकाश में सात रश्मि अर्थात सात किरणों का संयोग होता है।
इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि भारत के ऋषि - महर्षियों को सूर्य के प्रकाश की सात किरणों के बारे में पूर्ण ज्ञान था। सिर्फ यही नहीं उन्हें वृताकार चक्र का भी ज्ञान था जो गति का श्रेष्ठ साधन है।
ये श्लोक ये संकेत भी देता है कि महर्षियों के पास घर्षण का भी ज्ञान था जिसे चक्र के प्रयोग से कम किया जा सकता है। वस्तुतः इसी घर्षण व प्रतिरोध को कम करने के सूत्र पर यातायात के आधुनिक साधन भी का निर्माण हुआ है। तीव्र गति प्रदान करने के लिए यातायात के साधन पर पड़ने वाले घर्षण व प्रतिरोध को कम करने की दिशा में ही ध्यान केंद्रित किया जाता है।
यह एक तथ्य है कि गति का यह उपकरण वृताकार चक्र का विकल्प आज के आधुनिक युग में भी नहीं ढूंढा जा सका है। कार हो या रेलगाड़ी या वायुयान हो , चक्र का उपयोग आज भी होता है और अन्य कोई विकल्प चक्र का स्थान ग्रहण नहीं कर पाया है।
प्राचीनतम होते हुए भी चक्र का ज्ञान आधुनिक विज्ञान को भारतीय ज्ञान - विज्ञान की अनुपम देन है जिसके लिए विश्व भारतीय विद्वानों का सदैव आभारी रहेगा।
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