Ancient Indian Science and Technology

Author : Acharya Pranesh   Updated: January 08, 2020   2 Minutes Read   43,120

हम केवल भारतीय ज्ञान-विज्ञान और तकनीक के बारे में चर्चा करेंगे ,क्योंकि इसके बिना विश्व का ज्ञान अधूरा है | यहाँ हम केवल खाली पुलाव ही नहीं बनाएंगे बल्कि हम उसका तथ्य और प्रायोगिक प्रमाण भी देंगे | प्राचीन भारत के  विज्ञान तथा तकनीक को जानने के लिये पुरातात्विक  और प्राचीन शास्त्रों का सहारा लेना पड़ेगा । प्राचीन भारतीय शास्त्र ज्ञान अत्यधिक विशाल एवं विविधता से भरा पड़ा है। जिसममें  धर्म, दर्शन, भाषा, व्याकरण इत्यादि  के अलावा गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, रसायन, धातुकर्म, सैन्य विज्ञान आदि भी  विषय  हैं।

विज्ञान तथा तकनिकी  में प्राचीन भारत के कुछ भागीदारी इस प्रकार हैं :-

  • गणित - वैदिक शास्त्र में  शून्य का ज्ञान , बीजगणित तथा कलन-पद्धति, वर्गमूल, घनमूल आदि के ज्ञान  से भरा हुआ है।
     
  • खगोलविज्ञान - ऋग्वेद (2000 ईसापूर्व) में खगोलविज्ञान का उल्लेख मिलता है ।
  • भौतिकी - 600  ईसापूर्व के भारतीय दार्शनिक ने परमाणु एवं आपेक्षिकता के सिद्धान्तका स्पष्ट उल्लेख किया है।
  • रसायन विज्ञान - इत्र काआसवन, गन्दहयुक्त द्रव, वर्ण एवं रंजकों (dyes and pigments) का निर्माण, शर्करा का निर्माण
  • आयुर्विज्ञान एवं शल्यकर्म - लगभग ८०० ईसापूर्व भारत में चिकित्सा एवं शल्यकर्म पर पहला ग्रन्थ का निर्माण हुआ था।
  • ललित कला - वेदों का पाठ किया जाता था जो सस्वर एवं शुद्ध होना आवश्यक था। इसके फलस्वरूप वैदिक काल में ही ध्वनि एवं ध्वनिकीका सूक्ष्म अध्ययन आरम्भ हुआ।
  • यांत्रिक एवं उत्पादन प्रौद्योगिकी - ग्रीक इतिहासकारों ने लिखा है कि चौथी शताब्दी ईसापूर्व में भारत में कुछधातुओंका प्रगलन (स्मेल्टिंग) की जाती थी।
  • सिविल इंजीनियरी एवं वास्तुशास्त्र - मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा से प्राप्त नगरीय सभयता उस समय में उन्नत सिविल इंजीनियरी एवं आर्किटेक्चर के अस्तित्व कको प्रमाणित करती है।
     
  • जलयान-निर्माण एवं नौवहन (Shipbuilding & navigation) - संस्कृत एवं पालि ग्रन्थों में सामुद्रिक क्रियाकलापों के अनेक उल्लेख मिलते हैं।
  • खेल (Sports & games) - शतरंज, लुडो, साँप-सीढ़ी एवं ताश के खेलों का जन्म प्राचीन भारत में ही हुआ।
     
  • प्राचीन भारत के प्रमुख शास्त्र

प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों ने अपने पुरुषार्थ, ज्ञान और अनुसंधान की मदद से कई शास्त्रों की रचना की और उसे उत्कृष्ट  भी किया। इनमें से कुछ प्रमुख शास्त्र इस प्रकार  है:-

 

आयुर्वेदशास्त्र

आयुर्वेद शास्त्र का विकास उत्तरवैदिक काल में हुआ। इस विषय पर अनेक स्वतंत्र ग्रंथों की रचना हुई। भारतीय परंपरा के अनुसार आयुर्वेद की रचना सबसे पहले ब्रह्मा ने की। ब्रह्मा ने प्रजापति को, प्रजापति ने अश्विनी कुमार को और फिर अश्विनी कुमार ने इस विद्या को इन्द्र को प्रदेय  किया। इन्द्र के द्वारा  यह समस्त लोक में विस्तृत हुई। आयुर्वेद  चार उपवेद में से एक है।

कुछ विज्ञ के कथनानुसार यह ऋग्वेद का उपवेद है तो कुछ का मानना है कि यह ‘अथर्ववेद’ का उपवेद है। 

आयुर्वेद की मुख्य तीन परम्पराएं हैं- 

भारद्वाज, धनवन्तरि और काश्यप। आयुर्वेद विज्ञान के आठ अंग हैं- 

  1. शल्य
  2.  शालाक्य
  3.  कायचिकित्सा
  4. भूतविधा
  5.  कौमारमृत्य
  6.  अगदतन्त्रा 
  7. रसायन 
  8.  वाजीकरण।
                  चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, काश्यप संहिता इसके प्रमुख ग्रंथ हैं जिन पर बाद में अनेक विद्वानों द्वारा व्याख्याएं लिखी गईं।

आयुर्वेद के सबसे प्रभावशाली  ग्रन्थ चरकसंहिता है, इसके बारे में ऐसा माना जाता है कि मूलतः यह ग्रन्थ आत्रेय पुनर्वसु के शिष्य अग्निवेश ने लिखा था। चरक ऋषि ने इस ग्रन्थ को संस्कृत में परिवर्तित  किया। इस कारण इसका नाम चरक संहिता पड़ा । 

रसायनशास्त्र

रसायनशास्त्र का प्रारंभ  वैदिक युग से  गया है। रसायनशास्त्र के अंतर्गत नाना प्रकार  के खनिजों का शोध-अध्ययन कार्य  किया जाता था। वैदिक काल तक अनेक खनिजों की खोज हो चुकी थी तथा उनका दैनिक जीवन में  प्रयोग भी होने लगा था। परंतु इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा कार्य  नागार्जुन  ने किया। उनका काल लगभग 50 ई.पू. - 120 ई. था। उन्होंने एक नई खोज की जिसमें पारे के प्रयोग से तांबा इत्यादि धातुओं को सोने में बदला जा सकता था।

रसायनशास्त्र के कुछ प्रसिद्ध ग्रंथों में एक है रसरत्नाकर। इसके रचयिता नागार्जुन थे। इसके कुल आठ अध्याय थे परंतु चार ही हमें प्राप्त होते हैं। इसमें मुख्य रूप से  धातुओं के शोधन, मारण, शुद्ध पारद प्राप्ति तथा भस्म बनाने की विधि  का सम्पूर्ण  वर्णन है।

प्रसिद्ध रसायनशास्त्री श्री गोविन्द भगवतपाद जो शंकराचार्य के गुरु थे, द्वारा रचित ‘रसहृदयतन्त्र’ ग्रंथ भी काफी लोकप्रिय है। इसके अलावा रसेन्द्रचूड़ामणि, रसप्रकासुधाकर रसार्णव, रससार आदि ग्रन्थ भी रसायनशास्त्र के ग्रन्थों में ही गिने जाते हैं।

 

ज्योतिषशास्त्र

ज्योतिष वैदिक शास्त्र  का महत्वपूर्ण  ज्ञान है। इसमे हम सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, नक्षत्र, तारा,  ऋतु, मास इत्यादि  की स्थितियों पर संजीदा अध्ययन किया गया है। इस विषय में हमें ‘वेदांग ज्योतिष’ नामक ग्रंथ प्राप्त होता है। इसके रचना का समय 1200 ई. पू. माना गया है।आर्यभट्ट ज्योतिष गणित के सबसे बड़े विद्वान के रूप में माने जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार इनका जन्म 476 ई. में पटना (कुसुमपुर) में हुआ था। मात्र 23 वर्ष की उम्र में इन्होंने ‘आर्यभट्टीय’नामक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में पूरे 121 श्लोक हैं। इसे चार खण्डों में बांटा गया है- गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलपाद।

वराहमिहिर के उल्लेख के बिना तो भारतीय ज्योतिष ज्ञान की चर्चा अधूरी है। इनका समय काल  छठी शताब्दी ई. के आरम्भ का है। इके  चार प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की-पंचसिद्धान्तिका, वृहज्जातक, वृहदयात्रातथावृहत्संहिताजो ज्योतिष को समझने में मदद करती हैं।

 

गणितशास्त्र

प्राचीन काल से ही भारत में गणितशास्त्र का विशेष महत्व रहा है। यह सभी जानते हैं कि शून्य एवं दशमलव की खोज भारत में ही हुई। यह भारत के द्वारा विश्व को दी गई अनमोल देन है। इस खोज ने गणितीय जटिलताओं को खत्म कर दिया। गणितशास्त्र को मुख्यत: तीन भागों में बांटा गया है। अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित।

वैदिक काल में अंकगणित अपने विकसित स्वरूप में स्थापित था। ‘यजुर्वेद’ में एक से लेकर 10 खरब तक की संख्याओं का उल्लेख मिलता है। इन अंकों को वर्णों में भी लिखा जा सकता था।

बीजगणित का साधारण अर्थ है, अज्ञात संख्या का ज्ञात संख्या के साथ समीकरण करके अज्ञात संख्या को जानना। अंग्रेजी में इसे ही अलजेब्रा कहा गया है। भारतीय बीजगणित के अविष्कार पर विवाद था। कुछ विद्वानों का मानना था इसके अविष्कार का श्रेय यूनानी विद्वान दिये फान्तस को है। परंतु अब यह साबित हो चुका है कि भारतीय बीजगणित का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ है और इसका श्रेय भारतीय विद्वानआर्यभट्ट (446 ई.) को जाता है।

रेखागणित का अविष्कार भी वैदिक युग में ही हो गया था। इस विद्या का प्राचीन नाम है- शुल्वविद्या या शुल्वविज्ञान। अनेक पुरातात्विक स्थलों की खुदाई में प्राप्त यज्ञशालाएं, वेदिकाएं, कुण्ड इत्यादि को देखने तथा इनके अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि इनका निर्माण रेखागणित के सिद्धांत पर किया गया है। ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, नवशती, गणिततिलक, बीजगणित, गणितसारसंग्रह, गणित कौमुदी इत्यादि गणित शास्त्र के प्रमुख ग्रन्थ हैं।

 

कामशास्त्र

भारतीय समाज में पुरुषार्थ का काफी महत्व है। पुरुषार्थ चार हैं-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। काम का इसमें तीसरा स्थान है। सर्वप्रथमनन्दीने 1000 अध्यायों का ‘कामशास्त्र’ लिखा जिसे बाभ्रव्य ने 150 अध्यायों में संक्षिप्त रूप में लिखा। कामशास्त्र से संबंधित सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है ‘कामसूत्र’जिसकी रचनावात्स्यायनने की थी। इस ग्रंथ में 36 अध्याय हैं जिसमें भारतीय जीवन पद्धति के बारे में बताया गया है। इसमें64 कलाओंका रोचक वर्णन है। इसके अलावा एक और प्रसिद्ध ग्रंथ है ‘कुहनीमत’ जो एक लघुकाव्य के रूप में है। कोक्कक पंडित द्वारा रचित रतिरहस्य को भी बेहद पसंद किया जाता है।

 

संगीतशास्त्र

भारतीय परंपरा में भगवान शिव को संगीत तथा नृत्य का प्रथम अचार्य कहा गया है। कहा जाता है के नारद ने भगवान शिव से ही संगीत का ज्ञान प्राप्त किया था। इस विषय पर अनेक ग्रंथ प्राप्त होते हैं जैसे नारदशिक्षा, रागनिरूपण, पंचमसारसंहिता, संगीतमकरन्द आदि।

संगीतशास्त्र के प्रसिद्ध आचार्यों में मुख्यत: उमामहेश्वर, भरत, नन्दी, वासुकि, नारद, व्यास आदि की गिनती होती है। भरत के नाटयशास्त्र के अनुसार गीत की उत्पत्ति जहां सामवेद से हुई है, वहीं यजुर्वेद ने अभिनय (नृत्य) का प्रारंभ किया।

 

धर्मशास्त्र

प्राचीन काल में शासन व्यवस्था धर्म आधारित थी। प्रमुख धर्म मर्मज्ञों वैरवानस, अत्रि, उशना, कण्व, कश्यप, गार्ग्य, च्यवन, बृहस्पति, भारद्वाज आदि ने धर्म के विभिन्न सिद्धांतों एवं रूपों की विवेचना की है। पुरुषार्थ के चारों चरणों में इसका स्थान पहला है।

उत्तर काल में लिखे गये संग्रह ग्रंथों में तत्कालीन समय की सम्पूर्ण धार्मिक व्यवस्था का वर्णन मिलता है। स्मृतिग्रंथों में मनुस्मृति, याज्ञवल्कय स्मृति, पराशर स्मृति, नारदस्मृति, बृहस्पतिस्मृति में लोकजीवन के सभी पक्षों की धार्मिक दृष्टिकोण से व्याख्या की गई है तथा कुछ नियम भी प्रतिपादित किये गये हैं।

 

अर्थशास्त्र

चार पुरुषार्थो में अर्थ का दूसरा स्थान है।महाभारतमें वर्णित है कि ब्रह्मा ने अर्थशास्त्र पर एक लाख विभागों के एक ग्रंथ की रचना की। इसके बाद शिव (विशालाक्ष) ने दस हजार, इन्द्र ने पांच हजार, बृहस्पति ने तीन हजार, उशनस ने एक हजार विभागों में इसे संक्षिप्त किया।

अर्थशास्त्र के अंतर्गत केवल वित्त संबंधी चर्चा का ही उल्लेख नहीं किया गया है। वरन राजनीति, दण्डनीति और नैतिक उपदेशों का भी वृहद वर्णन मिलता है। अर्थशास्त्र का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ हैकौटिल्यकाअर्थशास्त्र। इसकी रचना चाणक्य ने की थी। चाणक्य का जीवन काल चतुर्थ शताब्दी के आस-पास माना जाता है।

कौटिल्य अर्थशास्त्र में धर्म, अर्थ, राजनीति, दण्डनीति आदि का विस्तृत उपदेश है। इसे 15 अधिकरणों में बांटा गया है। इसमें वेद, वेदांग, इतिहास, पुराण, धार्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, ज्योतिष आदि विद्याओं के साथ अनेक प्राचीन अर्थशास्त्रियों के मतों के साथ विषय को प्रतिपादित किया गया है। इसके अलावा अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ है कामन्दकीयनीतिसार, नीतिवाक्यामृत, लघुअर्थनीतिइत्यादि।

 

प्रौद्योगिकी ग्रन्थ

'भृगुशिल्पसंहिता' में १६ विज्ञान तथा ६४ प्रौद्योगिकियों का वर्णन है। इंजीनियरी प्रौद्योगिकियों के तीन 'खण्ड' होते थे। 'हिन्दी शिल्पशास्त्र' नामक ग्रन्थ मेंकृष्णाजी दामोदर वझेने ४०० प्रौद्योगिकी-विषयक ग्रन्थों की सूची दी है, जिसमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

विश्वमेदिनीकोश, शंखस्मृति, शिल्पदीपिका, वास्तुराजवल्लभ, भृगुसंहिता, मयमतम्, मानसार,  अपराजितपृच्छा, समरांगणसूत्रधार, कश्यपसंहिता, वृहतपराशरीय- कृषि, निसारः, शिगृ, सौरसूक्त, मनुष्यालयचंद्रिका, राजगृहनिर्माण, दुर्गविधान, वास्तुविद्या, युद्धजयार्णव।

प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित १८ प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में से 'कश्यपशिल्पम्' सर्वाधिक प्राचीन मानी जाती है।

प्राचीनखननएवं खनिकी से सम्बन्धित संस्क्रित ग्रन्थ हैं- 'रत्नपरीक्षा', लोहार्णणव, धातुकल्प, लोहप्रदीप, महावज्रभैरवतंत्र तथा पाषाणविचार।

'नारदशिल्पशास्त्रम' शिल्पशास्त्र का ग्रन्थ है।

 

अन्य शास्त्र

न्यायशास्त्र, योगशास्त्र, वास्तुशास्त्र, नाट्यशास्त्र, काव्यशास्त्र, अलंकारशास्त्र, नीतिशास्त्रआदि।


Author
PRANESH KUMAR RAI 
 


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