कहां राजा भोज , कहां गंगू तेली

Author : Neeraj Avinash   Updated: February 11, 2021   2 Minutes Read   28,130

कहां राजा भोज , कहां गंगू तेली - इस कहावत को हमने कभी न कभी अवश्य ही सुना होगा। इस कहावत का प्रयोग प्रायः दो असमान अथवा विपरीत व्यक्तियों की तुलना करने के लिए किया जाता है।

भले ही इसे हम कहावत मात्र जानते हो परन्तु ये कहावत वस्तुतः राजा भोज के सामर्थ्य और उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों का परिचायक है। इतना समृद्ध , अभियांत्रिकी में निपुण राजा भोज को इतिहास ने लगभग भुला सा ही दिया और कालांतर में राजा भोज का परिचय मात्र कहावत के माध्यम से ही संसार से कराया।

राजा भोज परमारवंशीय राजा थे जिनका राज्य वर्तमान के मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में था। उनकी राजधानी धारानगरी थी जिसे आज धार के नाम से जाना जाता है।

राजा भोज व चेदि राजा गांगेयदेव तथा कर्णाटक के चालुक्य राजा तैलप द्धितीय के मध्य अनेक युद्ध हुए और उन्ही गांगेयदेव को संक्षेप में गंगू तथा तैलप को तेली कहा जाने लगा।

भारतीय ज्ञान भंडार में राजा भोज का योगदान अनुपम है जिन्होंने अनेक ग्रंथों के माध्यम से विश्व को अभियांत्रिकी से सम्बंधित अनेक महत्वपूर्ण सूत्र दिए।

राजा भोज के कुछ प्रमुख ग्रन्थ हैं – वाग्देवीस्त्रोत, अवनिकूर्मशतम, राजमार्तण्ड (ज्योतिष), समरांगणसूत्रधार, सुभाषित प्रबंध, युक्तिकल्पतरु, चम्पूरामायण, नाममालिका, शाृंगारमंजरी कथा, सरस्वतीकण्ठाभरण (व्याकरण), शाृंगारप्रकाश, तत्वप्रकाश, शालिहोत्र, प्रश्नचूड़ामणि, राजमृगांक, राजमार्तण्डयोगसूत्रवृत्ति आदि।


प्रसिद्ध इतिहासकार श्री कृष्ण जुगनू जी ने राजाभोज रचित समरांगणसूत्रधार का अनुवाद किया है जिसमें लगभग 8 हज़ार श्लोक हैं। इस ग्रन्थ में जल विद्युत निर्माण के सम्बन्ध में अद्भुत जानकारी मिलती है।

इकत्तीसवें अध्याय में एक श्लोक मिलता है –

"धारा च जलभारश्च पयसो भ्रमणं तथा, यथोच्छ्रायो यथाधिक्यं यथा नीरंध्रतापि च।"

भावार्थ - बहती हुई जलधारा का भार तथा वेग का शक्ति उत्पादन हेतु विशेष यंत्र में उपयोग किया जाता है। जलधारा यंत्र को घुमाती है। यदि जलधारा अधिक ऊंचाई से गिरे तो उसका प्रभाव अधिक होता है एवं यंत्र उसके भार व वेग के अनुपात में धूमता है। इससे शक्ति उत्पन्न होती है।

सिर्फ शक्ति उत्पादन ही नहीं इस ग्रंथ में शक्ति को संग्रह करने के विषय में भी महत्वूर्ण सूत्र उल्लेखित हैं।

आधुनिक युग की जल विद्युत परियोजना में विज्ञान की जिस तकनीक का प्रयोग होता है वही तकनीक तो समरांगणसूत्रधार ग्रन्थ का ये सूत्र भी बताता है।

संभव हो पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने जल विद्युत उत्पादन की आधुनिक तकनीक विकसित करने में राजा भोज के समरांगणसूत्रधार ग्रन्थ को आधार बनाया होगा।


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