भारत के अद्भुत आविष्कार

Author : Acharya Pranesh   Updated: February 17, 2020   2 Minutes Read   26,930

हिन्दू शास्त्रों में विश्वकर्मा को समस्त सर्जन कलाओं का अग्रज माना जाता है। भारत के इंजिनियर तथा कारीगर आज भी प्रत्येक शुभ कार्य को आरम्भ करने से पूर्व सर्व प्रथम विश्वकर्मा की ही पूजा करते हैं। देवी देवताओं के अस्त्र शस्त्रों के निर्माण का श्रेय भी विश्वकर्मा को ही प्राप्त है। विश्व के अन्य देशों में तकनीक और आविष्कार का उदय अकस्मात् हुआ। उस के विपरीत भारत में तकनीक और अविष्कार लगातार कोशिशों और अनुभवों के आधार पर हुये हैं।

विश्वकर्मा ने भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, रामायण का शिव-धनुष, तथा अर्जुन का गाण्डिव धनुष बनाये थे। विश्वकर्मा ने ही इन्द्रप्रस्थ के आश्चर्य जनक भवन, इन्द्र की राजधानी अमरावती, तथा कुबेर का पुष्पक-विमान बनाया था, जिसे रावण ने बाद में कुबेर से छीन लिया था। पुष्पक विमान सात मंजिला आज के पाँच सितारा होटल जैसा था और मन की गति से चलता था। वह अमेरिका के ऐयर फोर्स वन विमान से भी कहीं अधिक आधुनिक था। 

आज कल टच-स्क्रीन तकनीक की सहायता से हम मन वाँच्छित आँकडे शीघ्र ही प्राप्त कर सकते हैं, सटैल्थ बम-वर्षक विमान भी बन चुके हैं तीन मंजिला जुम्बो जेट भी उडान भरते हैं, परन्तु पुष्पक विमान जैसी तकनीक अभी तक विकसित नहीं हुई है।

कुछ ऐसे अविष्कार जिसने आधुनिक सभ्यता की नींव रखी -

पहिये का अविष्कार

पहिये का अविष्कार मानव विज्ञान के इतिहास में अभूतपूर्व उपलब्द्धी थी जिस के बल पर मानव ने गति को दिशा परिवर्तन और तीव्रता प्रदान की है। पता नहीं क्यों पहिये के अविष्कार का श्रेय इराक को दिया जाता है जहाँ रेतीले मैदान हैं, जबकि सर्वप्रथम हम पौराणिक चित्रों में सुदर्शन चक्र के माध्यम से ही पहिये का साक्षाताकार करते हैं।

रामायण महाभारत काल से पहले ही पहिये का चमत्कारी आविष्कार भारत में हो चुका था और रथों में पहियों का प्रयोग किया जाता था। जब कि इराक के लोग उन्नीसवीं सदी तक रेगिस्तान में ऊँटों की सवारी करते हैं और योरूपीय साँटाकलाज़ को भी बिना पहिये की गाडी सलैज पर ही आता जाता दिखाया जाता है।

पहिये की तकनीक के सहारे ही याँत्रिक मशीनों और उपकरणों में शक्ति को निरन्तरता, गति तथा दिशा प्रदान की जाती है। आधुनिक विज्ञान की प्रगति में पहिये का महत्व सर्वाधिक है। विश्व की सब से प्राचीन सभ्यता सिन्धु घाटी के अवशेषों से प्राप्त (ईसा से 3000-1500 वर्ष पूर्व की बनी) खिलोना हाथ गाडी भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रमाणित करती है कि विश्व में पहिये का निर्माण इराक में नहीं बल्कि भारत में ही हुआ था।

चरखा चक्र

चरखा चक्र निस्संदेह भारत की अन्य देन है। इस के आविष्कार से वस्त्रों के उत्पादन का खर्चा कम हुआ तथा कालान्तर चरखा चक्र के साथ पेटी जोड कर शक्ति वितरण की तकनीक भी आई। यह अविष्कार अत्यन्त प्रभावशाली था क्यों कि इस प्रयोग से भारत ने युरोप को निरन्तर चाल का विचार दिया जिस के कारण आज के युग में यांत्रिक (मेकेनिकल) प्रगति सम्भव हुयी है। इस खोज का श्रेय महान विद्वान् भास्कराचार्य को जाता है। भारत से यह तकनीक अरबों के माध्यम से युरोप पहुँची थी और आज समस्त विश्व में वैज्ञिानिक प्रगति का माध्यम बनी है।

राजाभोज के समय की ‘समरांगणा सूत्रधारा’ (1100 ईस्वी) में कई याँत्रिक खोजो का वर्णन है जैसे कि चक्री (पुल्ली), लिवर, ब्रिज, छज्जे (केन्टीलिवर) आदि। कालान्तर में अरब वासियों ने उन्हें सीखा और अरबी फारसी भाषाओं के माध्यम से डा विंसी के मैकेनिक आलेखों दूारा युरोपवासियों ने उन्हीं तकनीकों को प्रचारित किया। कदाचित यूरुोप वासियों ने यह अनुमान भी लगा लिया कि यह सभी अविष्कार अरबों ने किये।

धातु तथा खनिज

धातुओं तथा खनिजों के क्षेत्र में भारत में विशेष प्रगति हुयी थी। ईसा से तीन हज़ार वर्ष पूर्व सिन्धु घाटी क्षेत्र में स्वर्ण, चाँदी, तथा ताँबे की खदाने थीं। वैदिक काल में ताँबे, काँसे, तथा पीतल का प्रयोग घरेलू बर्तन बनाने, अस्त्र – शस्त्र तथा मूर्तियों के निर्माण में होता था। जहाँ अन्य देशों के माईथोलोजिकल देवी देवता पशुओं के सींगों वाले मुकट पहने चित्रित किये जाते हैं वहीं भारत के देवी देवता स्दैव सुवर्ण-रत्न जटित मुकट पहने होते हैं।

पतञ्जली ऋषि ने लोहशास्त्र ग्रन्थ में धातुओं के प्रयोग से कई प्रकार के रसायन, लवण, और लेप बनाने के निर्देश दिये हैं। धातुओं के निरीक्षण, सफाई तथा निकालने के बारे में भी निर्देश हैं। स्वर्ण तथा पलेटिनिम को पिघलाने के लिये ‘अकुआ रेगिना’ तरह का घोल नाइटरिक एसिड तथा हाइड्रोक्लोरिक एसिड के मिश्रण से तैय्यार किया जाता था। तथा इस का श्रेय भी पातञ्जली ऋषि को जाता है।

सनातन ग्रन्थ मनु समृति के अनेक श्लोकों में भी धातुओं को शुद्ध करने के बारे में विशेष उल्लेख मिलता है -

अपामग्नेश्च संयोगाद्धेमं रौप्यं च निर्वभो।

तत्मात्तयोः स्वयोन्यैव निर्णेको गुणवत्तरः ।।

ताम्रायः कांस्यरैत्यानां त्रपुणः सीसकस्य च।

शौचं यथार्हं कर्तव्यं क्षारोम्लोदकवारिभिः ।। (मनु स्मृति5- 113-114)

अग्नि और जल के संयोग से सोना और चाँदी बनाये जाते हैं, इसलिये दोनो की शुद्धि अपने उत्पादक जल और अग्नि से ही श्रेष्ठ होती है। ताँबा, लोहा, काँसा, पीतल, राँगा और शीशा, इन की यथायोग्य क्षार, खटाई और जल से शुद्धि करनी चाहिए।

रसायन शास्त्र तथा धातु शास्त्र

भारत में रसायन शास्त्र की उपलब्द्धियाँ चिकित्सा, धातुविज्ञान तथा निर्माण के क्षेत्र से प्राप्त हुयीं। कौटिल्य रचित अर्थशास्त्र में बाँधों तथा पुलों का वर्णन है जिन में झूलापुल (सस्पैन्शन ब्रिज) का भी वर्णन है।

कृषि का विकास भी ईसा से 4500 वर्ष पूर्व सिन्धु घाटी में हुआ था। सिंचाई तथा जल संग्रह की उत्तम व्यवस्था के अवशेष गिरनार (ईसा से 3000 वर्ष पूर्व) में देखे जा सकते हैं।

भूतल पर बने स्नानागार, जिन में भट्टियों में सेंके गये पक्की मिट्टी के पाईप नलियों के तौर पर प्रयोग किये गये थे तथा 7-10 फुट चौडी और धरती से दो फुट अन्दर नालियाँ बनी थीं। हडप्पा सभ्यता के लोग तांम्बे, पीतल, काँसे की धातुओं का प्रयोग करना जानते थे। वहाँ से प्राप्त तलवारें ताँम्बे की बनी हुयी थीं।

गुप्त काल से ही रोम वासी भारत को उद्यौगिक तथा सैनिक महाशक्ति के रूप में देखते थे। रसायनों का प्रयोग रंगाई, टेनिंग, साबुन निर्माण, सीमेन्ट निर्माण, तथा दर्पण निर्माण आदि के क्षेत्रों में अधिक होता था।

दूसरी शताब्दी में नागार्जुन नें पारा धातु के बारे में मौलिक ग्रन्थ लिखा था। छटी शताब्दी से ही भारतीय रसायन प्रयाग से केलसीनेशन, डिस्टिलेशन, स्बलीमेशन, स्टीमिंग, फिक्सेशन, तथा बिना गर्मी के हल्के इस्पात निर्माण के क्षेत्र में भारतीयों की उपलब्धी यूरोपवासियों से कहीं अधिक थी। 

भारत में प्राचीन काल से ही कई प्रकार के खनिज लवण, चूर्ण और रसायन तैयार किये जाते थे जिनका विवरण अभिलेखों एवं अवशेषों में मिलता है।

यह हमारी इच्छा पर निर्भर है कि हम चाहें तो इन्हें आस्था माने या खोया हुआ इतिहास, लेकिन इस में कोई शक नहीं कि उन सम्भव होने वाले सभी आविष्कारों की कल्पना तो हम भारत वासियों ने ही की थी, और ये भी उतना ही सत्य है की कहानियों को भी एक आधार की आवश्यकता होती है ।

आगे के पोस्ट में भारत के विभिन्न स्थानों में प्राप्त होने वाले धातुओं व् खनिजों के विषय में जानेंगे।


Disclaimer! Views expressed here are of the Author's own view. Gayajidham doesn't take responsibility of the views expressed.

We continue to improve, Share your views what you think and what you like to read. Let us know which will help us to improve. Send us an email at support@gayajidham.com


Get the best of Gayajidham Newsletter delivered to your inbox

Send me the Gayajidham newsletter. I agree to receive the newsletter from Gayajidham, and understand that I can easily unsubscribe at any time.

x
We use cookies to enhance your experience. By continuing to visit you agree to use of cookies. I agree with Cookies