शिखा (चोटी) क्यू बांधे

Author : Acharya Pranesh   Updated: March 21, 2020   2 Minutes Read   40,190

कोई बहुत ज्यादा पुरानी बात नहीं है बल्कि आज से लगभग पचास - साठ पहले तक भारत में सभी हिन्दू प्रायः शिखा रखते थे। शिखा रखना एक सनातन परंपरा होने के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अनिवार्य है। शिखा रखने के पीछे एक बहुत गूढ़ विज्ञान छुपा हुआ है। 

मानव शरीर में सिर के पीछे के अंदरूनी भाग को संस्कृत में मेरुशीर्ष और अंग्रेजी में "Medulla Oblongata" कहते हैं। यह शरीर का सबसे अधिक संवेदनशील भाग है। मेरुदंड की सब शिराएँ यहीं आकर मस्तिष्क से जुडती हैं। आधुनिक विज्ञान में भी इस भाग का कोई ऑपरेशन नहीं किया जा सकता। शरीर में ब्रह्मांडीय ऊर्जा ( Cosmic Energy ) का प्रवेश यही से होता है|

भ्रू-मध्य में आज्ञा चक्र इसी का प्रतिबिम्ब है। योगियों को नाद की ध्वनि भी यहीं सुनाई देती है। शरीर का यह भाग ग्राहक यंत्र (Receiver) का काम करता है। शिखा वास्तव में ही Receiving Antenna का कार्य करती है। ध्यान के पश्चात् आरम्भ में योनी मुद्रा में कूटस्थ ज्योति के दर्शन होते हैं। वह ज्योति यहीं से प्रवेश करती है और आज्ञा चक्र में नीले और स्वर्णिम आवरण के मध्य श्वेत पंचकोणीय नक्षत्र के रूप में दिखाई देती है। योगी लोग इसी ज्योति का ध्यान करते हैं और इस पञ्चकोणीय नक्षत्र का भेदन करते हैं। यह नक्षत्र ही पंचमुखी महादेव है। 

मेरुदंड व मस्तिष्क ( Cerebrospinal canal ) के अन्य चक्रों (मेरुदंड में मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत और विशुद्धि, व मस्तिष्क में कूटस्थ, और सहस्त्रार व ज्येष्ठा, वामा और रौद्री ग्रंथियों व श्री बिंदु को ऊर्जा यहीं से वितरित होती है। शिखा धारण करने से यह भाग अधिक संवेदनशील हो जाता है। भारत में जो लोग शिखा रखते थे वे मेधावी होते थे।

संध्या विधि में संध्या से पूर्व गायत्री मन्त्र के साथ शिखा बंधन का विधान है।  इसके पीछे एक संकल्प और प्रार्थना है। किसी भी साधना से पूर्व शिखा बंधन गायत्री मन्त्र के साथ होता है, यह एक हिन्दू परम्परा है। 

सनातन विज्ञान जो इंसान के लिये सुविधाएं जुटाने का ही नहीं, बल्कि उसे शक्तिमान बनाने का कार्य करता है। ऐसा परम विज्ञान जो व्यक्ति को प्रकृति के ऊपर नियंत्रण करना सिखाता है। ऐसा विज्ञान जो प्रकृति को अपने अधीन बनाकर मनचाहा प्रयोग ले सकता है। इस अद्भुत विज्ञान की प्रयोगशाला भी बड़ी विलक्षण होती है। 

आधुनिक संसार में एक से बढ़कर एक आधुनिकतम मशीनों से सम्पंन प्रयोगशालायें दुनिया में बहुत सी हैं, किन्तु ऐसी शायद ही कोई हो जिसमें कोई यंत्र ही नहीं यहां तक कि खुद प्रयोगशाला भी आंखों से नजर नहीं आती बल्कि अदृश्य ही है। इसके अदृश्य होने का कारण है - इसका निराकार स्वरूप। असल में यह प्रयोगशाला इंसान के मन- मस्तिष्क में अंदर होती है।

सुप्रीम सांइस - विश्व की प्राचीनतम संस्कृति जो कि वैदिक संस्कृति के नाम से विश्य विख्यात है। अध्यात्म के परम विज्ञान पर टिकी यह विश्व की दुर्लभ संस्कृति है। इसी की एक महत्वपूर्ण मान्यता के तहत परम्परा है कि प्रत्येक स्त्री तथा पुरुष को अपने सिर पर चोटी यानि कि बालों का समूह अनिवार्य रूप से रखना चाहिये।

सिर पर चोटी रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि , इस कार्य को हिन्दुत्व की पहचान तक माना गया है। योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च किया गया तो, चोटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए।

चमत्कारी रिसीवर- असल में जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोटी रखने की परंपरा है, वहा पर सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्रा नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्रा नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से तो बचाती ही है, साथ में ब्रह्माण्ड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को ग्रहण भी करती है। 

योगशास्त्र में इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों की चर्चा होती है। इनमें सुषुम्ना ज्ञान और क्रियाशीलता की नाड़ी है। यह मेरुदंड (स्पाईनल कॉड) से होकर मस्तिष्क तक पहुंचती है। इस नाड़ी के मस्तिष्क में मिलने के स्थान पर शिखा बांधी जाती है। शिखा बंधन मस्तिष्क की ऊर्जा तरंगों की रक्षा कर आत्मशक्ति बढ़ाता है।

अध्ययन के लिए आवश्यक है - एकाग्रता, नियमितता और पवित्रता। शिखा बंधन हमें इनके प्रति सजग रखता है और अपने जीवन के लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। शिखा के माध्यम से वह अपनी बुद्धि को रचनात्मकता के लिए ही उपयोग करता है ।

सनातन धर्म का छोटे से छोटा सिध्दांत , छोटी-से-छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण वैज्ञानिक और कल्याणकारी हैं। छोटी सी शिखा अर्थात् चोटी भी कल्याण , विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती हैं। शिखा का त्याग करना मानो अपने कल्याण का त्याग करना हैं। जैसे घङी के छोटे पुर्जे की जगह बडा पुर्जा काम नहीं कर सकता क्योंकि भले वह छोटा हैं परन्तु उसकी अपनी महत्ता हैं, ऐसे ही शिखा की भी अपनी महत्ता हैं।

‘हरिवंश पुराण’ में एक कथा आती हैं। हैहय व तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहू का राज्य छीन लिया। राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वहाँ राजा की मृत्यु हो गयी। महर्षि और्व ने उसकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आये। वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजा सगर ने महर्षि और्व से शस्त्र और शास्त्र विद्या सीखीं। समय पाकर राजा सगर ने हैहयों को मार डाला और फिर शक, यवन, काम्बोज, पारद, आदि राजाओं को भी मारने का निश्चय किया। ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गये। महर्षि वसिष्ठ ने कुछ शर्तों पर उन्हें अभयदान दे दिया। और सगर को आज्ञा दी कि वे उनको न मारे। राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं छोङ सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे। अत: उन्होंने उन राजाओं का सिर शिखासहित मुँडवाकर उनकों छोङ दिया।

प्राचीन काल में किसी की शिखा काट देना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था। बङे दुख की बात हैं कि आज हिन्दु लोग अपने हाथों से अपनी शिखा काट रहे है। यह गुलामी की पहचान हैं। शिखा हिन्दुत्व की पहचान हैं। यह आपके धर्म और संस्कृति की रक्षक हैं। शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिये पर शिखा नहीं कटवायी।

शिखा को बाँधने का मन्त्र है :-

चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे।। 


Disclaimer! Views expressed here are of the Author's own view. Gayajidham doesn't take responsibility of the views expressed.

We continue to improve, Share your views what you think and what you like to read. Let us know which will help us to improve. Send us an email at support@gayajidham.com


Get the best of Gayajidham Newsletter delivered to your inbox

Send me the Gayajidham newsletter. I agree to receive the newsletter from Gayajidham, and understand that I can easily unsubscribe at any time.

x
We use cookies to enhance your experience. By continuing to visit you agree to use of cookies. I agree with Cookies