आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है जिसे जीवन का विज्ञान भी माना गया है। मूलतः आयुर्वेद एक संस्कृत शब्द है जो दो शब्दों आयुर तथा वेद के मेल से बना है। आयुर्व का अर्थ "आयु / जीवन " है जबकि वेद का अर्थ होता है "विज्ञान" , इसीलिए आयुर्वेद का पूर्ण अर्थ है "जीवन का विज्ञान" ।
आयुर्वेद सनातन दर्शन के पंच महाभूत के सिद्धांत पर आधारित है जिसमें माना जाता है कि पूरा ब्रह्माण्ड पांच तत्वों से मिलकर बना है जिसे पंच महाभूत कहते हैं। पंच महाभूत में पांच तत्व हैं - आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी ।
शरीर भी इन्ही पंच महाभूतों से मिलकर बना है। ये पंच महाभूत शरीर में ऊर्जा के स्रोत हैं जो शरीर को सुचारु रूप से चलाने के लिए उत्तरदायी हैं। प्रकृति ने शरीर में विद्यमान इन पंच महाभूतों के बीच उचित संतुलन बना रखा है।
शरीर के निरोग रहने के लिए इन पंच महाभूतों के मध्य संतुलन होना आवश्यक है। आयुर्वेद में रोग का कारण शरीर में वात ,कफ तथा पित्त के असंतुलन को माना गया है।
शरीर के निरोग रहने के लिए इनके बीच संतुलन रहना आवश्यक है। जब कभी शरीर में इनके मध्य असंतुलन होता है , शरीर में होनेवाली रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप शरीर में रोग के रूप में विकार आते हैं।
आयुर्वेद में इन तत्वों को 3 श्रेणी में रखा गया है - वात , पित्त तथा कफ
शरीर में असंतुलन की स्तिथि में जिस तत्व की प्रधानता होती है , उसकी प्रकृति के अनुरूप ही दोष / विकार उत्पन्न होते हैं।
वात दोष - वायु व आकाश तत्व का बढ़ जाना
पित्त दोष - अग्नि तत्व का बढ़ जाना
कफ दोष - पृथ्वी व जल तत्व का बढ़ जाना
दोष / विकार शरीर में होनेवाली रासायनिक क्रियाओं के अतिरिक्त व्यक्ति की शारीरिक संरचना , प्रवृत्ति, भोजन , रूचि, पाचन, मन और भावनाओं को भी प्रभावित करते हैं।
शरीर में जिस तत्व की प्रधानता होती है , व्यक्ति की प्रवृति भी उसी के अनुरूप होती है।
वात शरीर में वायु तथा आकाश तत्व को दर्शाता है। तीनों दोषों में वात दोष सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यदि वात दोष को लंबे समय तक नियंत्रित नहीं किया गया तो यह अन्य दोषों को भी बढ़ा देता है।
वात के लक्षण
पित्त शरीर में अग्नि तत्व का प्रतिनिधि है।
पित्त के लक्षण
कफ शरीर में जल तथा पृथ्वी तत्व को दर्शाता है। कफ का एक प्रमुख कार्य शरीर में वात को नियंत्रित करना है।
कफ के लक्षण
शरीर में तीन दोषों को यदि नियंत्रित रखा जाये तो लम्बे समय तक निरोग रहा जा सकता है। दोषों को नियंत्रण में रखना दीर्घ आयु भी प्रदान करता है।
दोषों को नियंत्रित रखने का सबसे सरल उपाय है अपने खान पान पे ध्यान रखना। शरीर में जो दोष बढ़ रहा हो उसको कम करने वाले आहार का सेवन करके घर बैठे ही रोग को दूर रखा जा सकता है।
ज्यादातर आयुर्वेदिक औषधियां भी दोषों को नियंत्रित करने के सिद्धांत पर ही कार्य करती हैं।
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