हिन्दू धर्म में हर पूजा पाठ , यज्ञ में हवन करने का प्रावधान है। मूलतः हवन एक संस्कृत शब्द है जो उस प्रक्रिया को परिभाषित करता है जिसमें अग्नि को हवन सामग्री अर्पित की जाती है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में हवन की क्रिया का विस्तृत विवरण उपलब्ध है।
हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऋषि मुनियों के द्वारा किया जानेवाला यज्ञ व हवन की पूरी जानकारी उपलब्ध है।
अलग अलग अनुष्ठान व प्रयोजन में अलग हवन सामग्री से हवन का प्रावधान है। हवन का उल्लेख सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि बौद्ध और जैन धर्मों में भी मिलता है। अनेक संस्कारों में बौद्ध तथा जैन धर्म गुरुओं द्वारा भी हवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी तथा हवन करने की पूर्ण विधि बताई गई है।
हवन सामग्री को पिरामिड के आकर वाले हवन कुंड में अर्पित किया जाता है। यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो शोधों के पश्चात वैज्ञानिक भी इसे स्वीकार करते हैं कि हवन सामग्री के हवन कुंड में जलने से जो गैस निकलती है वो वातावरण को शुद्ध करती है तथा वातावरण में मौजूद जीवाणुओं का नाश करती है।
वस्तुतः हवन सामग्री विशेष प्रकार की वनस्पतिओं का मिश्रण होती है जिसमें प्रचुर मात्रा में औषधीय गुण होते हैं। विशिष्ट प्रयोजन के लिए अलग हवन सामग्री का प्रयोग किया जाता है।
जैसे नवरात्री पूजा में उपयोग में आनेवाली हवन सामग्री नवग्रह शांति पूजा में प्रयोग होनेवाली हवन सामग्री से अलग होती है।
इसे यदि विज्ञान की कसौटी पे कसे तो स्पष्ट होता है कि नवरात्री के समय वायुमंडल में विशेष प्रकार के जीवाणु पाए जाते हैं। नवरात्री में हवन के लिए जिन दुर्लभ जड़ी बुटिओं का उपयोग किया जाता है वे इन जीवाणुओं को नष्ट करने में विशेष रूप से प्रभावी सिद्ध होते हैं।
हवन कुंड में समिधा को पिरामिड के आकार में सजाया जाता है जो हवन के प्रभाव को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस आकार में हवन सामग्री के जलने से जो रासायनिक क्रिया होती है वो एक विशेष प्रकार के गैस का मिश्रण बनाती है जो विशेष प्रभावी सिद्ध हुई है।
भारत में प्राचीन काल से ही घर घर में दैनिक पूजा में हवन करने का संस्कार रहा है जो आज के भौतिकवादी युग में धूमिल होने लगा है।
आधुनिक वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि प्रतिदिन आधे घंटे भी हवन के मध्य रहा जाये तो अनेक रोगों से दूर रहा जा सकता है।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए हम सभी को घर में नियमित हवन करने की आदत बनानी चाहिए।
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