वर्ण शब्द "वृञ" धातु से बनता है जिसका मतलब है चयन या वरण करना है ।
महर्षि मनु कहते हैं-
=>शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च।
- (मनुस्मृति-10/65)
अर्थात- कर्म के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र ब्राह्मणत्व को। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न संतान भी अन्य वर्णों को प्राप्त हो जाया करती हैं।
=>शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषूर्मृदुवागनहंकृत: ।
ब्राह्मणद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्नुते
- (मनुस्मृति- 9/335)
अर्थात – शुद्ध-पवित्र, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, सदा ब्राह्मण आदि तीनों वर्णों की सेवा में संलग्न शूद्र भी उत्तम ब्रह्मजन्म के अतंर्गत दूसरे वर्ण को प्राप्त कर लेता है ।
* ब्रह्मजन्म से अभिप्राय शिक्षित होने से है। शिक्षित होने को दूसरा जन्म भी कहा गया है ।
प्राचीन इतिहास में वर्ण परिवर्तन के उदाहरण :--
(1) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे । परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की । ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है ।
(2) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे । जुआरी और हीन चरित्र भी थे । परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये । ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया ।
(ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)
(3) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए।
(4) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । (विष्णु पुराण ४.१.१४)
अगर उत्तर रामायण की मिलावटी कथा के अनुसार शूद्रों के लिए तपस्या करना मना होता तो पृषध ये कैसे कर पाए?
(5) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए । पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया । (विष्णु पुराण ४.१.१३)
(6) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया । (विष्णु पुराण ४.२.२)
(7) आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए । (विष्णु पुराण ४.२.२)
(9) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए ।
(10) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने ।
(11) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए । (विष्णु पुराण ४.३.५)
(12) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया । (विष्णु पुराण४.८.१)
(14) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने ।(महाभारत, अनु0 3.19)
(15) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना ।
(16) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ ।
(17) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे ।
(18) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया । विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया ।
(19) विदुर दासी पुत्र थे । तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया ।(महाभारत, आदिपर्व100 -101, 135-137)
(20) वत्स शूद्र कुल में उत्पन्न होकर भी ऋषि बने । (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)
(21) कान्यकुज के राजा विश्वरथ राज्य को त्याग कर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने और फिर ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया और ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके अनेक पुत्रों में से कुछ क्षत्रिय ही रहे तो कुछ ब्राह्मण बन गये, जो आज कौशिक ब्राह्मण कहाते हैं। (वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड 51-56 अध्याय)
(22) चक्रवर्ती क्षत्रिय राजा मनु वैवस्वत का नाभानेदिष्ट नामक पुत्र ब्राह्मण बना (ऐतरेय ब्राह्मण 5.14)
(23) दीर्घतमा नामक ऋषि के कई पुत्र थे, उनमें से कुछ ब्राह्मण बने तो कुछ क्षत्रिय। उनके वंशजों को ‘वालेय ब्राह्मण’ और ‘वालेय क्षत्रिय’ कहा जाता है। (विष्णुपुराण 4.18 ; भागवत पुराण 9.20)
(24) पांचाल-राजा भर्याश्व का एक पुत्र मुद्गल राजा था, जो क्षत्रिय था। बाद में यह और इसके वंशज ब्राह्मण बन गये। इसके वंशज ब्राह्मण आज भी ‘मौद्गल ब्राह्मण’ कहलाते हैं (भागवतपुराण-9.21; वायु पुराण 99.198)
(25) वाल्मीकि निन कुल में उत्पन्न हुए, किन्तु वे ब्रह्मर्षि और महाकवि बने। (स्कंद पुराण, वै0 21)
(26) सत्यकाम जाबाल अज्ञात कुल का था। वह अपनी सत्यवादिता एवं प्रखर बुद्धि के कारण महान् और प्रसिद्ध ऋषि बना। ( पंचविश ब्राह्मण 8.6.1)
(27) मनुस्मृति के प्रवक्ता मनु स्वायंभुव के कुल में भी वर्ण-परिवर्तन हुए हैं। ब्राह्मण वर्णधारी महर्षि ब्रह्मा का पुत्र मनु स्वायंभुव स्वयं भी राजा बनने के कारण, ब्राह्मण से क्षत्रिय बना। मनुस्मृति के आद्यरचयिता इसी मनु स्वायंभुव के बड़े पुत्र राजा प्रियव्रत के दस पुत्र थे जो जन्म से क्षत्रिय थे। उनमें से सात क्षत्रिय राजा बने। तीन ने ब्राह्मण वर्ण को स्वीकार किया और तपस्वी बने। उनके नाम थे-महावीर, कवि और सवन (भागवतपुराण अ0 5)
(28) राजा प्रतीप के तीन पुत्र हुए-देवापि, शान्तनु और महारथी। इनमें से देवापि ब्राह्मण बन गया और शान्तनु तथा महारथी (बाल्हीक) क्षत्रिय राजा बने। (महाभारत, आदि0 94.61; विष्णु0 4.22.7; भागवत0 9.22.14-17)
आज भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में समान गोत्र मिलते हैं । इस से पता चलता है कि यह सब एक ही पूर्वज, एक ही कुल की संतान हैं । लेकिन कालांतर में वर्ण व्यवस्था गड़बड़ा गई और यह लोग अनेक जातियों में बंट गए ।
मुगल काल में हिन्दू ग्रंथों पुराणों आदि के साथ छेड़खानी की गई। अयोध्या, मथुरा, काशी और वाराणसी के पुरोहितों आदि को मुगलों के अनुसार धर्म को संचालित करना होता था, क्योंकि हिन्दुओं के धर्म के यही असली गढ़ थे।
बाद में अंग्रेजों ने भारत के इतिहास का सत्यानाश कर दिया। फिर अंग्रेज जिन लोगों के हाथों में सत्ता दे गए थे वे सभी मूर्ख वामपंथी और अंग्रेजों के पिट्ठू थे, जिन्होंने 30 से 40 साल में भारत को बर्बाद ही कर दिया।
मनु को जन्मना जाति – व्यवस्था का जनक मानना निराधार है । इसके विपरीत मनु मनुष्य की पहचान में जन्म या कुल की सख्त उपेक्षा करते हैं । मनु की वर्ण व्यवस्था पूरी तरह गुणवत्ता पर टिकी हुई है ।
प्रत्येक मनुष्य में चारों वर्ण हैं – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ।
मनु ने ऐसा प्रयत्न किया है कि प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान जो सबसे सशक्त वर्ण है – जैसे किसी में ब्राह्मणत्व ज्यादा है, किसी में क्षत्रियत्व, इत्यादि का विकास हो और यह विकास पूरे समाज के विकास में सहायक हो ।
अत: अपनी श्रेष्टता साबित करने के लिए कुल का नाम आगे धरना मनु के अनुसार अत्यंत मूर्खतापूर्ण कृत्य है । अपने कुल का नाम आगे रखने की बजाए व्यक्ति यह दिखा दे कि वह कितना शिक्षित है तो बेहतर होगा ।
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