कौन है शिव ? क्या शिव कहानियों में चित्रित त्रिशूल व् डमरू धारण करने वाले है ? या फिर शिव कोई और हैं ? इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर दे पाना वस्तुतः असंभव है। क्युकी शिव शाश्वत है, सनातन है, सीमा से परे है। जिस विशाल खालीपन को हम और आप देखते व् अनुभव करते हैं वो शिव नहीं तो कौन। शिव ही शून्य है और शून्य भी शिव में ही निहित है। हमारी इंसानी बौद्धिक क्षमता सिमित है, हमारा ज्ञान सिमित है , हमारी दृष्टि सिमित है जो कही न कही रूप और आकर तक आकर ठहर जाती है। यही कारन है की हमारी सनातन संस्कृति में शिव के अलग-अलग रूपों की कल्पना की गई है।
गूढ़, समझ से परे ईश्वर, मंगलकारी शंभो, बहुत नादान भोले, वेदों, शास्त्रों और तंत्रों के महान गुरु और शिक्षक, दक्षिणमूर्ति, आसानी से माफ कर देने वाले आशुतोष, स्रष्टा के ही रक्त से रंगे भैरव, संपूर्ण रूप से स्थिर अचलेश्वर, सबसे जादुई नर्तक नटराज, आदि अनगिनत शिव । यानी जीवन के जितने पहलू हैं, उतने ही पहलू के शिव भी है।
आम तौर पर दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में, जिस लोग दैवी या ईश्वरीय मानते हैं, उसे अच्छा ही दर्शाया जाता है। लेकिन अगर आप शिव पुराण को ध्यान से पढ़ें, तो पाएंगे की आप शिव की पहचान अच्छे या बुरे के रूप में नहीं की जा सकती है । वह सब कुछ हैं – वह सबसे बदसूरत हैं, वह सबसे खूबसूरत भी हैं। वह सबसे अच्छे और सबसे बुरे हैं, वह सबसे अनुशासित भी हैं, उन्हें भांग के ठंडाई पीने वाला भी दर्शाया गया है, शिव विषधर है और विषपान करने वाले भी शिव ही है। उनकी पूजा देवता, दानव और दुनिया के हर तरह के प्राणी किसी न किसी रूप में करते हैं। अर्थात शिव अच्छे व् बुरे से परे अनंत सीमाहीन है।
हमारी तथाकथित आधुनिक सभ्यता ने अपनी सुविधा के लिए तथ्यों को नष्ट किया या उनमे बदलाव किया , मगर शिव का सार दरअसल यही है की शिव ही अदि है, और शिव ही अंत भी है।
शिव पुराण मानव प्रकृति को चेतना के चरम तक ले जाने का सर्वोच्च विज्ञान है, जिसे बहुत ही सुंदर कहानियों द्वारा चित्रित किया गया है। योग को एक विज्ञान के रूप में व्यक्त किया गया है, अगर आप गहन अर्थों में उस पर ध्यान दें, तो पाएंगे की योग और शिव एक दूसरे के पूरक है और उन्हें कदापि अलग नहीं किया जा सकता।
आजकल, वैज्ञानिक आधुनिक शिक्षा की प्रकृति पर बहुत शोध कर रहे हैं। एक तथ्य यह भी कहा जा रहा कि जब कोई बच्चा 20 साल की औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यावहारिक दुनिया में प्रवेश करता है, तो उसकी बुद्धि का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाता है, जिसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता। इसका सीधा सा अर्थ हुआ की 20 वर्षो की पढाई के बाद वह ज्ञानी मूर्ख में बदल जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शिक्षा का एक बेहतर तरीका है, उसे कहानियों या नाटक के रूप में चित्रित करना। इस दिशा में थोड़ी-बहुत कोशिश की गई है, मगर दुनिया में ज्यादातर शिक्षा काफी हद तक निषेधात्मक रही है। जानकारी का विशाल भंडार आपकी बुद्धि को दबा देता है, जब तक कि वह एक खास रूप में आपको न दिया जाए। कहानी के रूप में शिक्षा प्रदान करना बेहतरीन तरीका है । सनातन संस्कृति में शिक्षा देने के लिए कहानियों , नाटक व्य अन्य विधाओं का बहुत ही खूबसूरत तरीके से प्रयोग किया गया है ।
विज्ञान के सर्वोच्च आयामों को बहुत सरल कहानियों के रूप में विद्यार्थियों तक पहुंचाया जाता रहा है । और आपको जानकर हर्ष एवं गर्व की अनुभूति होगी की आज की आधुनिक शिक्षा पद्धति भी उसी सनातन आयाम को अपनाने का प्रयास कर रही है जिसे आज हम विद्यालयों में visual study के नाम से जानते है।
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