बिहार के रोहतास जिले में कैमूर पर्वत की एक गुफा में माँ ताराचंडी का मंदिर स्थित है जो 51 शक्तिपीठों में एक है। सासाराम शहर से लगभग 5 किलोमीटर की दुरी पर स्थित मंदिर मनमोहक प्राकृतिक छटाओं के मध्य एक प्राचीन गुफा में स्थित है।
पौराणिक मान्यताओं के आधार पर माना जाता है कि माता सती का दाहिना नेत्र यहीं पर गिरा था, जो तारा शक्तिपीठ के नाम से विख्यात हुआ।
पौराणिक कथा के अनुसार माता सती अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर पायीं और यज्ञ कुण्ड में ही आत्मदाह कर लिया था। माता सती के आत्मदाह से भगवान शिव अत्यंत दुखी व कुपित हुए और शोक की अवस्था में देवी सती की मृत देह को लेकर ताण्डव करने लगे।
महादेव के ताण्डव से तीनो लोक भयातुर हो गए और अंततः सभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को खंडित कर दिया।
देवी सती के शरीर के खंडित अंग पृथ्वी पर 51 स्थानों पर गिरे। जिस जिस स्थान पर ये खंडित अंग गिरे वे शक्तिपीठ कहलाये।
मान्यता है कि इस जगह देवी सती की दाहिनी आंख गिरी थी।
इस मंदिर की स्थापना कब हुई इसका कोई ठोस प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है, किन्तु मंदिर परिसर स्थित शिलालेखों के आधार पर मंदिर 11 वीं शताब्दी का निर्मित माना जाता है।
मान्यता है कि इस पीठ का नामकरण तारापीठ महर्षि विश्वामित्र ने किया था। इसी पीठ में परशुराम जी ने सहस्त्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी। माना जाता है कि इसी शक्तिपीठ में दस महाविद्याओं में एक मां तारा बालिका रूप में प्रकट हुई थीं। माता ने इसी स्थान पर चण्ड का भी वध किया था और चण्डी कहलाने लगीं।
वर्ष भर भक्त जन अपनी मनोकामना लिए माता के दरबार में आते हैं और मनोकामना पूर्ति के बाद अखंड दीप जलाते हैं।
नवरात्र के दिनों में मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है और हज़ारों की संख्या में अखंड दीप जलाया जाता है। ये दृश्य मनमोहक होता है जब मंदिर परिसर में एक साथ असंख्य दीप प्रज्वलित होते हैं।
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