आधुनिक विज्ञान की भाषा में जैसा की हम जानते है कि सूर्य को नंगी आँखों से देख पाना असंभव है। चिकित्सा शाश्त्र के बड़े बड़े नेत्र विशेषज्ञों का भी यही मानना है की मनुष्य की आंखे सूर्य के सामान्य ताप को भी सह पाने में सक्षम नहीं है , और एकटक देर तक सूर्य को देखकर शोध कर पाना बिलकुल ही असंभव है।
दूरबीन के अविष्कार के बाद खगोल वैज्ञानिको ने खगोलीय पिंडो का अध्ययन प्रारम्भ किया। खगोलीय अध्ययन में सूर्य ने वैज्ञानिको को हमेशा ही आकर्षित किया है जो जीवन के लिए ऊर्जा का अक्षय श्रोत है। दूरबीन से सूर्य के अध्ययन के क्रम में वैज्ञानिको ने सूर्य से सम्बंधित काफी जानकारी इकठ्ठी की है। जैसे की सूर्य के प्रकाश में सात रंगो का होना , सूर्य के धब्बे , धरती से ऊपर के अन्य मंडलो की दुरी इत्यादि।
पर इन सबसे बड़ा आश्चर्य का विषय ये है कि सनातन शाश्त्र और ग्रंथ जिनकी रचना ऋषि मुनियों ने हज़ारो वर्षो पूर्व ही कर दी थी , उनमे सूर्य से सम्बंधित काफी जानकारी उपलब्ध है। वो भी तब जबकि आज की तरह उन्नत दूरबीन भी उपलब्ध नहीं थे।
वेद के एक प्रकरण जिसमे ' सप्ताश्व ' सूत्र का उल्लेख मिलता है जो अपने आप में ही स्पष्ट करता है कि तब के ऋषि मुनियों को सूर्य के प्रकाश में सात रंगो के होने की पूर्ण विस्तृत जानकारी थी। इसके अतिरिक्त सूर्य से समबन्धित अन्य विस्तृत ज्ञान भी उन्हें प्राप्त था।
इतना ही नहीं उन्हें आकाश के अन्य खगोलीय पिंडो और तथ्यों के बारे में भी विस्तृत जानकारी थी। वैदिक ज्योतिष के ग्रन्थों में अनेक सूत्र मिलते है जिनसे धरती से ऊपर के अन्य मंडलो की दूरी की भी जानकारी मिलती है।
भूमेर्बहिर्द्वादशयोजनानि भूवायुरत्राम्बुदविद्युदाद्यम् ।
तदूर्ध्वगो यः प्रवहः स नित्यं प्रत्यग्गतिस्तस्य तु मध्यसंस्था ॥
इस सूत्र का भावार्थ - मेघ , विद्युत् और वायु आदि भूमि से बारह योजन की दुरी पर हैं ।
वाल्मीकि रामायण में एक प्रसंग आता है जहा भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण जी से कहते है
ह्रस्वो रूक्षोऽप्रशस्तश्च परिवेशस्तु लोहितः ।
आदित्ये विमले नीलं लक्ष्म लक्ष्मण दृश्यते ॥
( वा ० रा ० युद्ध ० २३।९ )
भावार्थ - देखो विमल आदित्य में छोटा सा काला धब्बा दिखाई देता है ।
वाल्मीकि रामायण के इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि उन्होंने सूर्य के धब्बों को भी देख लिया था तभी तो इस श्लोक के माध्यम से उन धब्बो को वर्णित किया गया है।
अब प्रश्न उठता है कि आखिर वो ऐसा कौन सा उपकरण या विज्ञान था जो उन्होंने सूर्य के धब्बों को भी नंगी आँखों से ही देख लिया था जबकि एक सामान्य मानव एक पल भी सूर्य को नहीं देख पाता।
इन तथ्यों से स्पष्ट है कि उस सनातन युग में तब का विज्ञान आज के आधुनिक विज्ञान से कही अधिक श्रेष्ठ और उन्नत रहा होगा। ये अलग बात है कि बाद के समय में या तो वो विज्ञान लुप्त कर दिया गया या फिर कालांतर की मानव सभ्यता उस अनुपम ज्ञान - विज्ञान की अमूल्य विरासत को सहेज नहीं पायी।
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