सभ्यता संस्कृति और संस्कार

Author : Acharya Pranesh   Updated: May 03, 2020   2 Minutes Read   28,440

सूर्य का उदय हमेशा से पूरब दिशा में ही होता है और सूर्य का अस्त पश्चिम दिशा में, यह सर्वविदित है, किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। जब सूर्योदय होता है तो सूर्य उसके साथ तेज, बल, ऊर्जा और प्रकाश का संचार करते है, हमे जागृत करते है अज्ञान दूर करते है अपने प्रकाश से ,लेकिन जब सूर्यास्त होता है तो तेज , बल ,ऊर्जा और प्रकाश नष्ट हो जाता है। 

आप रात के अँधेरे में अपना मनोरंजन कर सकते है लेकिन उस मनोरंजन से क्या पाएंगे, बस उतना ही पाएंगे की जितना एक रोता हुवा बच्चा खिलौना पाकर खुश होता है और वही पश्चातय सभ्यता में विद्यमान है। 

सूर्य की गर्मी का अलग ही महत्व है और चन्द्रमा की शीतलता का अलग ही महत्व है , लेकिन अगर आप इनमे से किसी एक के साथ जिंदगी बिता रहे है तो आपका जीवन नीरस हो सकता है , सूर्य का तेज आपको कार्य करने के लिए प्रेणना देता है वही चन्द्रमा की शीतलता आपको आराम करने की प्रेणना देता है। 

दिन हमे कार्य के लिए चाहिए तो रात्रि मनोरंजन के लिए। दिन में वो कार्य नहीं कर सकते जो रात में करते है और जो रात में करते है वो दिन में नहीं कर सकते। अगर आप अपना जीवन चक्र उलटा करते है तो आपको मानसिक और स्वास्थय की हानि होगी जो युवा आज के समय पाश्चात्य सभ्यता के तरफ इनका मन सम्मोहित हो रहा है बेचारे उन्हें देख कर मुझे दया आती है, क्योकि वो जा तो रहे है यहा से शांति पाने, भौतिक शांति जो शारीरिक और मानशिक दोनों के लिए नुकसान दायक है। ठीक वैसे ही जैसे की ज्यादा खाना खाने से या तो पेट फट जायेगा नहीं तो उल्टी ही होगा और जब उल्टी होगा तो ये निश्चित है वो दुर्गन्ध ही पैदा करेगा सुगंध नहीं। 

हमारे यहा एक कहावत कहा जाता है की दूर का ढोल सुहावन लगता है आज का युवा अपनी सभ्यता, संस्कृति, संस्कार भूल चूका है और इसका मूल कारण उसके माता-पिता है , क्योकि उसके माता पिता को पश्चात्य सभ्यता या यु कहे मैकाले बाबा का शिक्षा संस्कार अभी तक उनके डीएनए में कूट कूट भर दिया गया हो (जो काम बल प्रयोग कर करवाया जाता है उसे छोड़ना बड़ा मुश्किल होता है और यही किया गया हमारे साथ और वही अभी तक हो भी रहा है ) 

अभी तक हमारे समाज में मैकाले का जिन्न नहीं उतरा है और यह कब तक चढ़ा रहेगा बताना मुश्किल है क्योकि अभी कुछ नाले साफ नहीं हुए है। आज के युवा को सफलता तो चाहिए पर उसे तपस्या नहीं करनी, यानि की मेहनत नहीं करना , उसे चाहिए जैसे की रेस्ट्रोरेंट में आप ऑर्डर करते है आपके दाये-बाये २-४ वेटर लगा दिए जाते है और आपको राजा महाराजा वाली फिलिंग आती है। 

हमारा युवा वर्ग उसी का आदि हो चूका है सारा काम बैठे बैठे होता रहे और उसे मेहनत नहीं करना पड़े । इन सबके पीछे मूल कारण अज्ञान रूपी अंधकार है। 

हमे प्रयास करना होगा ज्ञान के प्रकाश को अपने जीवन में उतारने का तभी एक स्वश्थ और समृद्ध भारत का निर्माण संभव है। 


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