आज समाज के हर कोने में मिलावट की भरमार है। भारतीय सभ्यता व् संस्कृति को दूषित करने के लिए सनातन ग्रंथो में तो समय के साथ साथ हर युग में आक्रांताओं के द्वारा भर भर के मिलावट की गई है।
‘प्रक्षेप’ अथवा 'प्रक्षिप्त' एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ सामान्य भाषा में कहा जाये तो मिलावट से है। इसको विस्तृत रूप में इस प्रकार समझा जा सकता है। किसी के ग्रन्थ में किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा उसकी सहमति या स्वीकृति के बिना उसमे छेड़छाड़ या उसके मूल स्वरुप को बदल दिया जाये तो ऐसे विचारों को ' प्रक्षेप ' कहा जाता है ।
जैसा की हम सभी जानते है मनुस्मृति की रचना महर्षि मनु महाराज ने की थी। हर समाज के सम्यक संचालन के लिए कुछ नियम आवश्यक होते है , बिना नियम और विधान के समाज का उचित संचालन असंभव है। समाज के संचालन के लिए जो व्यवस्थाएं , नियम, कर्तव्य , दायित्व मनु महाराज ने बताया है , उन सबका संग्रह मनुस्मृति में है।
अर्थात मनुस्मृति मानव समाज का प्रथम संविधान है, न्याय व्यवस्था का शास्त्र है। वेदों में निहित कानून व्यवस्था अथवा न्याय व्यवस्था को कर्तव्य व्यवस्था भी कहा गया है। उसी के आधार पर मनु ने सरल भाषा में मनुस्मृति की रचना की ।
प्राचीन काल में मनुस्मृति को ‘मानव शास्त्र’ के नाम से भी जाना जाता था। वर्तमान में उपलब्ध मनुस्मृति महर्षि मनु द्वारा रचित मानव शास्त्र से सर्वथा भिन्न है। वर्तमान की मनुस्मृति में प्रक्षेपकों की भरमार है , इतना ही नहीं इसके कई श्लोक को इतना परिवर्तित किया है जिससे उसका मूल अर्थ ही बदल गया है।
मनुस्मृति में (प्रक्षेप) मिलावट के कई प्रमाण है जिनके बारे में आज की मनुस्मृति का मूल से तुलनात्मक अध्ययन करके पता चलता है।
1) चीन में प्राप्त पुरातात्विक प्रमाण - वर्ष 1932 में जापान ने बम विस्फोट द्वारा जब चीन की ऐतिहासिक दीवार को तोड़ा तो उसमें लोहे का एक ट्रक मिला जिसमें चीनी पुस्तकों की प्राचीन पाण्डुलिपियाँ भरी थीं । किसी तरह वे हस्तलेख प्रसिद्ध लेखक इतिहासकार सर ऑगुत्स फ्रित्स जॉर्ज को मिल गये । वह उन्हें लंदन ले गया और उनको ब्रिटिश म्यूजियम में रख दिया ।
उन हस्तलेखों को प्रो . एन्थनी ग्रेमे ( Prof . Anthony Graeme ) ने चीनी भाषा के विद्वानों से पढ़वाया । चीनी भाषा में लिखे गये उन हस्तलेखों में एक में यह लिखा है - 'मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है जो वैदिक संस्कृत में लिखा है और दस हजार वर्ष से अधिक पुराना है ।' इन चीनी ग्रंथ के अनुसार मनुस्मृति में 680 श्लोक थे परन्तु वर्तमान मनुस्मृति में 2685 श्लोक हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि वर्तमान मनुस्मृति में पाए जाने वाले बहुत से श्लोक मिलावटी हैं।
2) मनुस्मृति के प्रथम पाश्चात्य समीक्षक न्यायाधीश सर विलियम जोन्स उपलब्ध 2685 श्लोकों में से 2005 श्लोकों को प्रक्षिप्त घोषित करते हैं । उनके मतानुसार 680 श्लोक ही मूल मनुस्मृति में थे ।
3) महात्मा गांधी ने अपनी 'वर्णव्यवस्था' नामक पुस्तक में स्वीकार किया है कि वर्तमान मनुस्मृति में पाई जाने वाली आपत्तिजनक बातें बाद में की गयी मिलावटें हैं ।
4) भारत के पूर्व राष्ट्रपति और दार्शनिक विद्वान् डॉ० राधाकृष्णन , श्री रवींद्रनाथ टैगोर आदि भी मनुस्मृति में प्रक्षेपों के अस्तित्व को स्वीकार करते है।
5) मनुस्मृति भाष्यकार मेधातिथि ( 9 वीं शताब्दी ) की तुलना में कुल्लूक भट्ट ( 12 वीं शताब्दी ) के संस्करण में 680 श्लोक अधिक उपलब्ध हैं। वे तब तक मूल पाठ के साथ घुल मिल नहीं पाये थे, अतः उनको बृहत् कोष्ठक में दर्शाया गया है। इसी तरह कई अन्य टीकाओं में भी कुछ कुछ श्लोकों का अंतर है।
मनुस्मृति के कुछ मनु द्वारा रचित विशुद्ध श्लोक जिनमे मिलावट नहीं हुई है -
“शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च।”( मनुस्मृति-अध्याय १०/ श्लोक ६५)
भावार्थ - महर्षि मनु कहते हैं कि कर्म के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र ब्राह्मणत्व को। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न संतान भी अन्य वर्णों को प्राप्त हो जाया करती हैं। विद्या और योग्यता के अनुसार सभी वर्णों की संतानें अन्य वर्ण में जा सकती हैं।
इसी प्रकार नारियों के प्रति लिखा गया है -
यत्र नार्य्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रऽफलाः क्रियाः। मनुस्मृति 3/56
अर्थात - जिस समाज या परिवार में स्त्रियों का सम्मान होता है, वहां देवता अर्थात् दिव्यगुण और सुख़- समृद्धि निवास करते हैं और जहां इनका सम्मान नहीं होता, वहां अनादर करने वालों के सभी काम निष्फल हो जाते हैं।
मनुस्मृति में नारियों और शूद्रों से अन्याय के कुछ प्रक्षिप्त (मिलावटी)श्लोक-
मनुस्मृति -8.366. यदि कोई शूद्र किसी उच्च जाति की युवति से प्यार करता है, तो उसे मृत्यु-दंड मिलना चाहिए; परंतु यदि वह कोई समान वर्ग की कन्या से प्यार करता है, तो उसे कन्या से शादी करनी होगी, बशर्ते उस कन्या का पिता इसके लिए इच्छुक हो।
मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोक में स्त्रियों को ब्राह्मण, पुरोहितों की सहायता व उनकी सेवा ग्रहण करने से वर्जित करता है, जिससे वह यज्ञ कर्म न कर सकें।
मनुस्मृति -4.205 ब्राह्मण उस यज्ञकर्म में दिए गए भोजन को ग्रहण न करें, जो किसी स्त्री द्वारा किया गया हो।
मनुस्मृति -4.206 जो यज्ञ कर्म स्त्रियों द्वारा किए जाते हैं, वे अशुभ और देवताओं को अस्वीकार्य होते हैं। अतः उसमें भाग नहीं लेना चाहिए।
इस मिलावट के बारे में यह कहा जाता है कि मनुस्मृति के नाम से प्रचलित इसकी मौजूदा प्रतियां भारुचि, मेधातिथि, गोविंदराज एवं कूल्लूक भट्ट इत्यादि द्वारा अलग-अलग समय पर (7वीं से 13वीं सदी के बीच) किए गए संकलनों और भाष्यों पर आधारित हैं।
इन साक्ष्यों के आधार पर ये स्पष्ट है कि महर्षि मनु के 680 श्लोक में कोई कमी नहीं है और जितने भी विरोधाभाषी श्लोक है वो भारुचि, मेधातिथि, गोविंदराज एवं कूल्लूक भट्ट इत्यादि द्वारा अलग-अलग समय पर मिलाये गए है ।
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