भारत के पांच ऐसे शिव मंदिर जो केदारनाथ से रामेश्वरम के बीच स्थित हैं, ईन्हे अगर हम गौर से देखें तो पाएंगे की ये मिलकर एक सीधी रेखा बनाते है। उत्तराखंड का केदारनाथ 79.0669 डिग्री लांगिट्यूड , तेलंगाना का कालेश्वरम 79.9067° E, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती 79.7067° E, तमिलनाडू का एकंबरेश्वर 79.7003° E, चिदंबरम 79.6911° E और अंततः रामेश्वरम 79.3129° E . इन्हे यदि मानचित्र पे देखा जाये तो ये एक सीध में बने हुए है। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक थी जिससे इतना सटीक भौगोलिक गणना की जा सकी , ये शोध का विषय है।
यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों की लिंग रूप में अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंच भूत कहते है। पंच भूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्ही पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिव लिंगों को स्थापित किया गया है। जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, अग्नि का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, वायु का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है और अतं में अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है!
आधुनिक विज्ञान से परे ये शिव मंदिर वस्तुतः वास्तु - विज्ञान - वेद के अद्भुत समागम को दर्शाते हैं। भौगॊलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। इन पांच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था, और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इस के पीछे निश्चित ही कॊई समृद्ध विज्ञान रहा होगा। इन मंदिरों का निर्माण लगभग चार हज़ार वर्ष पूर्व किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह या आज जैसी आधुनिक तकनीक उपलब्ध ही नहीं थी । तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को स्थापित किया गया था ? इसका उत्तर आधुनिक विज्ञान या स्थापत्य शैली के पास शायद नहीं है।
केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच लगभग 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में स्थित है। आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयॊग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है यह आज तक एक रहस्य ही है और शायद भविष्य में भी रहस्य ही रहे । श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है। तिरूवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। कंचिपुरम के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान के निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।
अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करनेवाले पांच लिंगो को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही स्थापित किया गया है। हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसा विज्ञान और तकनीक था जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होगें जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते है। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है। संभवतः यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यान में रखते हुए बनाया गया हो जो 81.3119° E में पड़ता है!
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