राजा भोज परमार वंश के राजा थे जिनका राज्य वर्तमान के मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में था। उन्होंने लम्बे समय तक मालवा पे शासन किया जिनका शासनकाल 1010 से 1055 ईसवीं तक माना जाता है। राजा भोज प्रकांड विद्वान थे जिनके राज्य में विद्वानों व कवियों का बहुत सम्मान होता था।
राजा भोज की राजधानी धारानगरी थी जिसे वर्तमान में धार के नाम से जाना जाता है।
ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए राजा भोज ने एक महाविद्यालय की स्थापना की थी जो भोजशाला के नाम से विख्यात हुई। भोजशाला अपने समय में विद्या अध्ययन अध्यापन का प्रतिष्ठित केंद्र था। वस्तुतः भोजशाला के अध्ययन की प्रतिष्ठा नालंदा विश्व विद्यालय के समान ही थी।
राजा भोज को माता सरस्वती का वरद पुत्र भी माना जाता है जिनकी तपस्या और आराधना से प्रसन्न होकर माता सरस्वती धार में प्रकट हुई थीं। माता सरस्वती के दिव्य स्वरुप से अभिभूत होकर राजा भोज ने वाग्देवी की प्रतिमा को भोजशाला में स्थापित किया था।
इतिहासकारों का मानना है कि पुरातत्व खुदाई में माँ वाग्देवी की यह प्रतिमा भोजशाला के समीप मिली थी। बाद में 1880 में अंग्रेजी अधिकारी किनकेड माँ वाग्देवी की इस प्रतिमा को अपने साथ लंदन ले गया।
राजा भोज के समय भोजशाला ज्ञान - विज्ञान व दर्शन के अध्ययन का सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था। भोजशाला के अध्ययन अध्यापन की चर्चा सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध थी जहां लाखों की संख्या में विदेशी छात्र विद्या अध्ययन करने आते थे।
भोजशाला के प्रतिष्ठित आचार्यों में माघ, बाणभट्ट, कालिदास, भास्करभट्ट, धनपाल, समुन्द्र घोष आदि विश्व विख्यात हैं।
राजा भोज के बारे में कहा जाता था -
अद्य धारा सदाधारा सदालम्बा सरस्वती।
पण्डिता मण्डिताः सर्वे भोजराजे भुवि स्थिते॥
भावार्थ - जब भोजराज धरती पर स्थित हैं तो धारा नगरी सदाधारा (सुदृढ़ आधार वाली) है, सरस्वती का सदा आलम्ब मिला हुआ है, सभी पण्डित आदृत हैं।
भोजशाला में राजा भोज के पश्चात भी अध्यन अध्यापन का कार्य कई वर्षो तक निरन्तर चलता रहा।
बाद में विदेशी आक्रांताओं ने विद्या के इस प्रतिष्ठित केंद्र को भी नष्ट कर दिया। जैसे बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्व विद्यालय को नष्ट किया उसी प्रकार अलाउद्दीन खिलजी तथा दिलावर खां गौरी की सेना ने मालवा पे आक्रमण किया और अपनी सल्तनत को स्थापित किया।
धार पर विजय के पश्चात भोजशाला में खिलजी ने कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया।
आज भी धार की भोजशाला में शिलाओं पर अंकित साहित्य को देखा जा सकता है। इन शिलालेखों में अंकित ज्ञान के भंडार को यदि शिलांकित पुस्तकालय की संज्ञा दी जाये तो कदापि गलत नहीं होगा।
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