हिन्दू धर्म में प्रकृति को कई प्रकार से महत्त्व दिया गया है। इन्ही में एक है वृक्ष परिक्रमा। परिक्रमा का सामान्य अर्थ होता है किसी स्थान ,व्यक्ति या वस्तु के चारों तरफ घूमना। परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है। शास्त्रों में प्रदक्षिणा को षोडशोपचार पूजा का एक महत्वपूर्ण विधान माना गया है।
प्रदक्षिणा करने का विधान एक अति प्राचीन प्रथा है। आमतौर पे जब हम किसी मंदिर में जाते हैं तो मंदिर की परिक्रमा अवश्य करते हैं। स्त्रियां वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं जो वट सावित्री पूजा का एक महत्वपूर्ण भाग है।
हिन्दू धर्म में केवल मंदिर ही नहीं अपितु तीर्थ क्षेत्र , ग्राम देवता, नदी, वृक्ष आदि की परिक्रमा लगाने का भी विधान है जिसका अलग अलग महत्त्व है।
ऐसी ही एक परिक्रमा है पीपल वृक्ष की परिक्रमा। भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में पीपल परिक्रमा की प्रथा है। शास्त्रों , पुराणों तथा ज्योतिष ग्रंथों में भी पीपल परिक्रमा के अनगिनत लाभ बताये गए हैं।
हमारे पूर्वजों को अवश्य ही इस आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य का ज्ञान रहा होगा , इसीलिए पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमा करने का विधान है।
संभव हो तो हर किसी को स्वस्थ जीवन के लिए प्रतिदिन पीपल वृक्ष की परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।
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