लौरियानंदनगढ़

Author : Acharya Pranesh   Updated: July 12, 2020   2 Minutes Read   22,050

पश्चिम चम्पारण जिले में नरकटियागंज शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दुरी पर लौरियानंदनगढ़ स्थित है। कुछ इतिहासकारो के अनुसार ऐसा माना जाता है की लौरियानंदनगढ़ कभी बौद्ध काल में वृज्जियों की राजधानी रही थी । यह छोटा सा ग्रामनुमा शहर बूढी गंडक नदी के किनारे बसा हुआ है जहा कई ऐतिहासिक स्थल आज भी अस्तित्व में है।

यहाँ एक शिलालेख भी स्थित है जो अशोक के काल का माना जाता है और साथ ही एक विशाल टीला नुमा आकृति भी मिलती है। पुरातत्व विभाग की खुदाई में ये टीला मिला था जिसको लेकर इतिहासकार एक मत नहीं है। कुछ का मानना है की ये एक किला रहा हो तो वही कुछ इसे बौद्ध स्तूप ही मानते है।

नंदनगढ़ की खोज कनिंघम ने 1880 में की थी और खुदाई में इस विशाल टीले की खोज हुई थी जिसकी संरचना वृताकार है। ज्यादातर लोगो का मानना है कि किला इतने छोटे से क्षेत्र में नहीं हो सकता , इसलिए इसे बौद्ध स्तूप ही माना जाता है। 

इतिहासकार मजूमदार के नेतृत्व में 1935 में इस जगह की पुनः खुदाई कराइ गई और यहां दो स्तूपों में खुदाई के दौरान राख और अस्थियां भी पाई गई जो जली अवस्था में थी। इस खुदाई में एक देवी की मूर्ति भी मिली जिसे सोने के पत्तर पर बनाया गया था। ये ठीक वैसे ही मूर्ति थी जैसी बस्ती जिले के पिपरवा के बौद्ध स्तूप से मिली थी।

अभी इस बारे में बहुत ज्यादा तथ्य प्राप्त नहीं है। इतिहासकार मजूमदार इसे बौद्ध स्तूप ही मानते है। इस खुदाई में मिला यह स्तूप नुमा टीला बहुकोणीय है और पांच वेदिकाओं के ऊपर स्थित है। इन पांच वेदिकाओं में तीन वेदियों पर परिक्रमा करने योग्य रास्ता बना हुआ है पर बाकि दो की परिक्रमा करना कठिन है । इस स्तूप के ऊपर चढ़ने की मनाही है।

इस स्तूप की दीवारों पर शिल्पकला का अच्छा काम किया हुआ है। इतिहास में रूचि रखनेवालों को नंदनगढ़ का ये किला या स्तूप अवश्य ही देखना चाहिए।


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