आर्यावर्त के गुरुकुल के ऋषिकुल में क्या पढ़ाई होती थी ये जान लेना आवश्यक है।
भारतीय ज्ञान परम्परा में विद्या-विधा ज्ञान देने की परम्परा थी , जिससे की विद्यार्थी को जीवन में कही भी कष्ट नहीं उठाना पड़े और उसकी शुरुआत वैज्ञानिक तरीके से लेकर समाजिक तरीके के हर एक पहलू पर ध्यान दिया जाता था। लेकिन आज के समय इन पाश्चत्य सभ्यता के अति भोगवादी महात्माओ ने भारतीय गुरुकुल-ज्ञान परम्परा को नष्ट कर दिया उसे अज्ञानता बता कर लेकिन समस्य की फिर से मांग है। इसे आमजन तक पहुचाया जाये ताकि भारत को फिर से विश्व का सिरमौर बनाया जा सके। आप भी अपने बच्चे को गुरुकुल शिक्षण प्रणाली नहीं भेज सकते लेकिन ज्ञान तो दे ही सकते है तो, हम शुरू करते है गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के विभाग के बारे में ये निम्लिखित इस प्रकार है :-
वैज्ञानिक विद्या
1 अग्नि विद्या , 2 वायु विद्या, 3 जल विद्या , 4 अंतरिक्ष विद्या, 5 पृथ्वी विद्या, 6 सूर्य विद्या, 7 चन्द्र व लोक विद्या , 8 मेघ विद्या , 9 पदार्थ विद्युत विद्या , 10 सौर ऊर्जा विद्या , 11 दिन रात्रि विद्या , 12 सृष्टि विद्या , 13 खगोल विद्या , 14 भूगोल विद्या , 15 काल विद्या , 16 भूगर्भ विद्या , 17 रत्न व धातु विद्या , 18 आकर्षण विद्या , 19 प्रकाश विद्या , 20 तार विद्या , 21 विमान विद्या , 22 जलयान विद्या , 23 अग्नेय अस्त्र विद्या , 24 जीव जंतु विज्ञान विद्या , 25 यज्ञ विद्या
ये तो रही वैज्ञानिक विद्या अब हम बात करेंगे व्यावसायिक और तकनीकी विद्या की जो सबसे जयादा महत्वपूर्ण था
1 वाणिज्य , 2 कृषि , 3 पशुपालन , 4 पक्षिपलन , 5 पशु प्रशिक्षण , 6 यान यन्त्रकार , 7 रथकार , 8 रतन्कार , 9 सुवर्णकार , 10 वस्त्रकार , 11 कुम्भकार , 12 लोहकार , 13 तक्षक , 14 रंगसाज , 15 खटवाकर , 16 रज्जुकर , 17 वास्तुकार , 18 पाकविद्या , 19 सारथ्य , 20 नदी प्रबन्धक
21 सुचिकार , 22 गोशाला प्रबन्धक , 23 उद्यान पाल , 24 वन पाल , 25 नापित
यह सब विद्या गुरुकुल में सिखाई जाती थी पर समय के साथ गुरुकुल लुप्त हुए तो यह विद्या भी लुप्त होती गयी।
आज मैकाले पद्धति से हमारे देश के भविष्य और कालजीवी संस्कृतिक धरोहर नष्ट हो रहे, तब ऐसे समय में गुरुकुल के पुनः उद्धार की आवश्यकता है |
We continue to improve, Share your views what you think and what you like to read. Let us know which will help us to improve. Send us an email at support@gayajidham.com
Send me the Gayajidham newsletter. I agree to receive the newsletter from Gayajidham, and understand that I can easily unsubscribe at any time.