सनातन शाश्त्रो में दस महाविद्याये मानी गई है। दस महाविद्या है - काली , तारा , त्रिपुर सुंदरी , भुवनेश्वरी ,भैरवी , छिन्नमस्तिका , धूमावती , बगलामुखी , मातंगी , एवं कमला । छिन्नमस्तिका माता दस महाविद्यायों में एक है।
पुरे देश में छिन्नमस्तिका माता के दो ही मंदिर है , पहला झारखण्ड के रजरप्पा में और दूसरा काँटी , मुजफ्फरपुर में। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में काँटी में स्थित छिन्नमस्तिका माता का मंदिर देश भर में एक सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है जो वाम व् अघोर साधना के लिए एक सिद्ध मंदिर माना जाता है ।
छिन्नमस्तिका माता के मंदिर में वैसे तो सालो भर श्रद्धालु माता के दर्शन को आते रहते है , पर नवरात्र के दिनों में मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है और देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते है।
मंदिर का भूमि पूजन 2000 में हुआ था और 2003 में मंदिर में माता की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। मंदिर में माता की प्राण प्रतिष्ठा रजरप्पा से लायी गई त्रिशूल से संपन्न की गई थी।
मंदिर में माता की प्रतिमा रजरप्पा के छिन्मस्तिका माता की ही तरह स्थापित है । माता दाहिने हाथ में खड्ग और बाये हाथ में अपना ही कटा हुआ मस्तक पकडे है।
इस मंदिर की विशेषता है इसका निर्माण जो पूर्णतः तंत्र विज्ञान पर आधारित है। मंदिर परिसर में देश के विभिन्न भाग से साधक तंत्र सिद्धि के लिए आते है और माता को प्रसन्न करके सिद्धि प्राप्त करते है।
मंदिर में माता की पूजा अर्चना पूर्णतः वैष्णव प्रक्रिया से की जाती है, एवं किसी प्रकार की बलि पूर्णतः वर्जित है ।
मंदिर में प्रत्येक अमावस्या को होनेवाली माता की विशेष पूजा अर्चना श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का मुख्य केंद्र है।
माता के भक्तों को अपने जीवन काल में एक बार माता के दर्शन को अवश्य आना चाहिए।
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