ये सर्व विदित तथ्य है कि त्रेता युग में भगवान राम को वनवास हुआ जब राजा दशरथ की रानी केकई ने उनसे वरदान में भगवान के लिए 14 वर्षों का वनवास मांग लिया था।
केकई वैसे तो भगवान से अत्यंत स्नेह करती थीं फिर भी भगवान के लिए उन्होंने ऐसा कठोर वरदान मांग लिया। इस विषय में अनेक विद्वान प्रायः एकमत है और इतिहास में केकई को ही भगवान के वनवास का दोषी माना गया है।
इतिहासकारों का मानना है कि केकई केकेय देश की राजकुमारी थीं जिनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था। विद्वानों के मत में केकई केकेय देश के राजा अश्वपति और शुभलक्षणा की पुत्री थीं।
केकेय देश अविभाजित पंजाब से उत्तर माना जाता है जिसका विस्तार गांधार के आस पास माना जाता है। कई दूसरे विद्वान केकय का विस्तार वर्तमान के रावलपिंडी के आस पास के क्षेत्र को मानते हैं जो अब पाकिस्तान में आता है।
देवासुर संग्राम में राजा दशरथ ने भी देवताओं की सहायता के लिए युद्ध किया था जिसमे राजा के रथ का सञ्चालन केकई ने किया था। युद्ध के दौरान ही राजा दशरथ के रथ के पहिये की धुरी निकल गई थी।
केकई ने अपनी ऊँगली की सहायता से रथ को नष्ट होने से बचाया था और राजा दशरथ की सहायता की थी।
इस घटना से राजा बहुत प्रसन्न हुए और केकई को दो वरदान मांगने को कहा, जिस पर केकई ने उचित समय पर मांगने की बात कही।
इस घटना के वर्षों बाद जब अयोध्या में भगवान राम का राज्याभिषेक हो रहा था , तब केकई ने दशरथ को वरदान की याद दिलाई और अपने दोनों वरदान मांगा।
एक वरदान में अपने पुत्र भरत के लिए राज्य मांगा और दूसरे वरदान में भगवान राम के लिए 14 वर्ष का वनवास।
इस प्रकार केकई के इतने कठोर वरदान मांगने के कारण इतिहास के पन्नों में केकई खलनायक की तरह चित्रित हुई।
केकई द्वारा ऐसे कठोर वरदान मांगने से एक और घटना भी जुड़ी है जिसमे राजा दशरथ को पुत्र वियोग का श्राप मिला था। राजा दशरथ को पुत्र वियोग का श्राप श्रवण कुमार के पिता ने दिया था।
श्रवण कुमार के पिता द्वारा दिए श्राप के कारण राजा दशरथ की मृत्यु पुत्र वियोग में होनी थी। राजा दशरथ को भगवान राम बहुत प्रिय थे।
केकई को इस श्राप की जानकारी थी और दशरथ के पुत्र स्नेह से भी केकई पूर्ण अवगत थी। अब अगर केकई राम जी का वनवास नहीं मांगती तो संभव है दशरथ की मृत्यु उनके प्रिय पुत्र की मृत्यु के समाचार से होती।
कुछ विद्वान केकई के इस कठोर वरदान मांगने के पीछे अपने पुत्रो के जीवन की रक्षा को ही मानते हैं।
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