बिहार के गया जिले में गुरुआ प्रखंड के अंतर्गत प्रखंड मुख्यालय से लगभग चार किलोमीटर की दुरी पर स्थित बैजूधाम शिव भक्तों के बीच एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। गया शहर से बैजूधाम की दुरी लगभग 25 किलोमीटर की है। चेरकी से बैजूधाम की दुरी लगभग 8 किलोमीटर की है। सावन के महीने में यहाँ एक विशाल मेला का आयोजन भी होता है जो स्थानीय लोगो के बीच काफी प्रसिद्ध है।
बैजूधाम आनेवाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के बीच यहाँ की प्राकृतिक छटा आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। बैजूधाम मोरहर नदी के तट पर स्थित है और चारो ओर मरहक पहाड़ियों और मनोरम जंगलो से घिरा हुआ है जो पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है और प्रत्येक वर्ष यहाँ काफी संख्या में पर्यटक आते रहते है।
एक स्थानीय प्रचलित कथा के अनुसार वर्ष 2000 मे इस क्षेत्र में भीषण बाढ़ आयी थी और सारे चरवाहे मरहक पहाड़ी पर चढ़ गए थे। एक स्थानीय चरवाहा जिनका नाम कामेश्वर बताया जाता है , वे एक डंडे से जमीन खोद रहे थे , तभी एक अद्भुत काले रंग का पत्थर मिला।
ग्रामीणों के सहयोग से और खुदाई करने पर इस स्थान से काले रंग का एक विशाल शिवलिंग मिला जो बैजूधाम में आज प्रतिष्ठित है। स्थानीय क्षेत्र में यह खबर तुरत ही प्रचलित हो गई और तभी से ऐसा माना जाने लगा कि बाबा बैजनाथ , देवघर के झारखण्ड में चले जाने के बाद शंकर भगवान बिहार में मरहक पहाड़ी पर प्रकट हुए।
तभी से इसका नाम बैजनाथ धाम , देवघर की तर्ज पर बैजूधाम हो गया।
वैसे तो बैजूधाम को कोई विशेष महत्त्व नहीं मिल पाया है पर पिछले कुछ वर्षो में इस क्षेत्र का तेजी से विकास हुआ है। राज्य सरकार बैजूधाम को भी राजगीर , नालंदा , बोधगया इत्यादि पर्यटक क्षेत्र की तरह विकसित करने का प्रयास कर रही है।
शिव भक्तो के अतिरिक्त गया आनेवाले पर्यटकों को भी बैजूधाम की प्राकृतिक छटा काफी आकर्षित करती है। सिर्फ देश के ही नहीं बल्कि बोधगया आनेवाले विदेशी पर्यटक भी अपने गया प्रवास के दौरान बैजूधाम अवश्य ही आते है।
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