अहल्याश्रम

Author : Acharya Pranesh   Updated: June 15, 2020   2 Minutes Read   19,190

वाल्मीकि रामायण के बाल काण्ड श्लोक वा. रा. 48 में अहल्याश्रम का वर्णन मिलता है।

'मिथिलोपवने तत्र आश्रमं दृश्य राघव: पुराणं निर्जनं रम्यं पप्रच्छ मुनिपुंगवम्'।[2]

इस श्लोक से ज्ञात होता है कि ऋषि गौतम के शाप के कारण देवी अहल्या इसी निर्जन स्थान में रह कर तपस्या के रूप में अपने पाप का प्रायश्चित कर रही थी।

तपस्या पूर्ण होने पर रामचन्द्रजी ने उनका अभिनन्दन किया और उन्हें ऋषि गौतम के शाप से निवृत्ति दिलाई।

रघुवंश 11, 33 में कालिदास ने भी मिथिला के निकट ही इस आश्रम का उल्लेख किया है-

'ते: शिवेषु वसतिर्गताध्वभि: सायमाश्रमतरुष्व गृह्यत येषु दीर्घतपस: परिग्रहोवासव क्षणकलत्रतां ययौ।'

कालिदास ने अहल्या को शिलामयी कहा है। (रघुवंश 11, 34)

बिहार के दरभंगा जिले के अंतर्गत अहियारी नाम का एक गाँव है, जो अहिल्या स्थान के नाम से विख्यात है। इस गाँव तक कमतौल रेलवे स्टेशन पर उतरकर पहुंचा जा सकता है। यह स्थान सीता माता की जन्मस्थली सीतामढ़ी से लगभग 40 कि॰मी॰ पूर्व में स्थित है।

ऐसा माना जाता है कि ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा से इसी स्थान पर भगवान राम ने अहिल्या का उद्धार किया था।

ऐसा मान्यता है की ऋषि विश्वामित्र के मार्गदर्शन में भगवान राम अहिल्या आश्रम आये थे और अहिल्या का उद्धार किया था। ये भी प्रमाणित है की अहिल्या आश्रम मिथिला प्रदेश में ही अवस्थित थी।

भोजपुर में भगवान राम ने ताड़का नाम की आसुरी का बध किया था, उसके बाद वे विश्वामित्र जी के आश्रम पहुंच कर अपने अनुज लक्ष्मण जी के साथ उनके यज्ञ की रक्षा की थी और अनेक आसुरी शक्तियों का दमन किया था।

मिथिला राज्य में प्रवेश करने से पहले ही अहिल्या का उद्धार किया, और तत्पश्चात वहाँ से उत्तर दिशा में चलकर वे ऋषि विश्वामित्र के साथ विदेह नगरी जनकपुर पहुंचे थे।


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