आगम (हिन्दू)

Author : Acharya Pranesh   Updated: June 12, 2022   2 Minutes Read   9,440

आगम परम्परा से आये हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। ये वेद के सम्पूरक हैं। इनके वक्ता प्रायः शिवजी होते हैं। यह शास्त्र साधारणतया 'तंत्रशास्त्र' के नाम से प्रसिद्ध है।

निगमागममूलक भारतीय संस्कृति का आधार जिस प्रकार निगम (=वेद) है, उसी प्रकार आगम (=तंत्र) भी है। दोनों स्वतंत्र होते हुए भी एक दूसरे के पोषक हैं। निगम कर्म, ज्ञान तथा उपासना का स्वरूप बतलाता है तथा आगम इनके उपायभूत साधनों का वर्णन करता है। इसीलिए वाचस्पति मिश्र ने 'तत्ववैशारदी' (योगभाष्य की व्याख्या) में 'आगम' को व्युत्पत्ति इस प्रकार की है : आगच्छन्ति बुद्धिमारोहन्ति अभ्युदयनि:श्रेयसोपाया यस्मात्‌, स आगम:।

आगम का मुख्य लक्ष्य 'क्रिया' के ऊपर है, तथापि ज्ञान का भी विवरण यहाँ कम नहीं है। 'वाराहीतंत्र' के अनुसार आगम इन सात लक्षणों से समवित होता है :

सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म, (=शांति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) साधन तथा ध्यानयोग।

'महानिर्वाण तंत्र' के अनुसार कलियुग में प्राणी मेध्य (पवित्र) तथा अमेध्य (अपवित्र) के विचारों से बहुधा हीन होते हैं और इन्हीं के कल्याणार्थ महादेव ने आगमों का उपदेश पार्वती को स्वयं दिया। इसीलिए कलियुग में आगम की पूजापद्धति विशेष उपयोगी तथा लाभदायक मानी जाती है- कलौ आगमसम्मत:।

वैदिक धर्म में उपास्य देवता की भिन्नता के कारण इसके तीन प्रकार है:

  • वैष्णव आगम (पंचरात्र तथा वैखानस आगम),
  • शैव आगम (पाशुपत, शैवसिद्धान्त, त्रिक आदि) , तथा
  • शाक्त आगम

द्वैत, द्वैताद्वैत तथा अद्वैत की दृष्टि से भी इनमें तीन भेद माने जाते हैं। अनेक आगम वेदमूलक हैं, परंतु कतिपय तंत्रों के ऊपर बाहरी प्रभाव भी लक्षित होता है। विशेषत: शाक्तागम के कौलाचार के ऊपर चीन या तिब्बत का प्रभाव पुराणों में स्वीकृत किया गया है। आगमिक पूजा विशुद्ध तथा पवित्र भारतीय है। 'पञ्च मकार' के रहस्य का अज्ञान भी इसके विषय में अनेक भ्रमों का उत्पादक है।

शैवागम

शैवागम २८ हैं-

  • (क) शिवागम

१ कामिक, २ योगज, ३ चिन्त्य, ४ कारण, ५ अजित, ६ दीप्त, ७ सूक्ष्म, ८ सहस्र, ९ अंशुमान, १० सुप्रभेद,

  • (ख) रुद्रागम

११ विजय, १२ निश्वास, १३ स्वायंभूव, १४ अनल , १५ वीर ,१६ रौरव, १७ मकुट, १८ विमल, १९ चंद्रज्ञान, २० बिंब,

२१ प्रोद्गीत्, २२ ललित, २३ सिद्ध, २४ संतान, २५ शर्वोक्त, २६ पारमेश्वर, २७ किरण , २८ वातुल

इन २८ आगमों के २०४ उपागम है।

प्रत्येक आगम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें 'पाद' कहते हैं - क्रियापाद, चर्यापाद, योगपाद और ज्ञानपाद । क्रियापाद में देवालय की स्थापना, मूर्ति-निर्माण व प्रतिष्ठापना का प्रतिपादन हुआ है। चर्यापाद में मूरि की पूजा, उत्सवादि विषयों का निरुपण हुआ है। योगपाद में अष्टांगयोग साधना का तथा ज्ञानपाद में दार्शनिक विषय वर्णित हैं।

चर्यापाद -- प्रायश्चित विधि, पवित्र विधि, शिवलिङ्गलक्षणम्,जापमाला योगपट्त लक्षणम

क्रियापाद -- उद्धरण, सन्ध्यावन्दन, पूजा, जाप, होम, समय विशेष, निर्वाण, आचार्याभिषेक

योगपाद -- ३६ तत्त्व , तत्त्वेश्वर, यम, नियम, आसन, समाधि

ज्ञानपाद या विद्यापाद --


Disclaimer! Views expressed here are of the Author's own view. Gayajidham doesn't take responsibility of the views expressed.

We continue to improve, Share your views what you think and what you like to read. Let us know which will help us to improve. Send us an email at support@gayajidham.com


Get the best of Gayajidham Newsletter delivered to your inbox

Send me the Gayajidham newsletter. I agree to receive the newsletter from Gayajidham, and understand that I can easily unsubscribe at any time.

x
We use cookies to enhance your experience. By continuing to visit you agree to use of cookies. I agree with Cookies