पाश्चात्य बुद्धिजीवियों के विचार में यूनान के दार्शनिक अरस्तु ( Aristotle ), सुकरात ( Sucrate ), अफलातून ( Plato ) आदि को ही आधुनिक ज्ञान विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है, पर ये प्रामाणिक तथ्यों से कही बहुत दूर है। भारत में वेदों, उपनिष्दों, दर्शन शास्त्रों, पुराणों तथा महाकाव्यों के आधार पर ज्ञान के पढने पढाने का प्रावधान वैदिक काल में ही पूर्णतः स्थापित हो चुके थे। जिस समय पृथ्वी के अन्य भागों में सभ्यता वनों से गाँवों की ओर जाने का केवल प्रयत्न मात्र ही कर रही थी , उस से कही बहुत पहले ही भारत के ऋषि मुनियों, अशविनों (वैज्ञानिको) तथा बुद्धिजीवियों ने धरती को माप लिया था।
यही नहीं उस से भी आगे उन्हों ने वर्ष को मासो, ऋतुओं, पखवाडों, दिवसों, पलों एवम विपलों ( nano second ) में बाँट लिया था और आज का विज्ञान उन्हीं खोजों की पुष्टि मात्र ही कर रहा है। वेद ज्ञान केवल अध्यात्मिक मोक्ष प्राप्ति का ज्ञान ही नहीं है बल्कि विज्ञान के सभी विषयों का ज्ञान वेदों में निहित है। ऋगवेद के अनुसार विज्ञान के ज्ञान तथा उस के प्रत्यक्ष क्रियात्मिक प्रयोग के बिना दारिद्रता को समृद्धी में बदलना असम्भव है।
आज से तीन सौ वर्ष पूर्व ऐलोपैथी नाम की विज्ञान की कोई विधा विश्व में नहीं थी , परन्तु आयुर्वेद पद्धति से जटिल से जटिल रोगों का भी सफल उपचार संभव था। जब विश्व की अन्य मानव जातियों को पृथ्वी के महादूीपों और महासागरों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और वह जानवरों की खाल पहन कर खोह और गुफाओं में रहते थे, केवल मांसाहार पर ही निर्भर हो कर dark age में जीवन व्यतीत कर रही थी , तब भी वैदिक ज्ञान की पूर्णतया वैज्ञिानिक धारणाओं के प्रमाण लिखित रूप में भारत के ऋषि मुनियों के पास उपलब्ध थे। उदाहरण स्वरूप -
सूर्य कभी उदय नहीं होता ना ही वह अस्त होता है। पृथ्वी सूर्य की परिकर्मा करती है जिस से सूर्योदय तथा सूर्यास्त का आभास होता है। (सामवेद 121)
सौर मण्डल के ग्रहों में आपसी ध्रुवाकर्षण के कारण पृथ्वी स्थिर रहती है (ऋगवेद 1-103-2,1-115-4, 5-81-2)
पृथ्वी की धुरी को कभी ज़ंग नहीं लगता जिस पर पृथ्वी सदा घूमती रहती है। (ऋगवेद 1-164 – 29)
ऋगवेद में समय की गति का कालचक्र दिया गया है तथा भौतिक ज्ञान, कृषि विज्ञान, खगोल शास्त्र, गणित और अंक गणित का पूर्ण प्रामाणिक विवरण उपलब्ध है।
भारत के प्राचीन ग्रन्थों में स्वर्ग, चौदह भुवनों, लोकों तथा छः महादूीपों, चार महासागरों का वर्णन मिलता है जो आज प्रत्य़क्ष रूप मे विद्मान हैं। भारत के खगोल शास्त्रियों ने सूर्य की परिकर्मा के मार्ग को पहचाना, अन्य गृहों की गति की विस्तरित तथा प्रमाणित जानकारी दी और उन के पृथ्वी पर पडने वाले प्रभावों का आंकलन कर के उस ज्ञान को मानव के दैनिक जीवन की क्रियाओं के साथ जोड दिया ताकि समस्त मानव जाती लाभान्वित हो सके।
प्रत्येक धार्मिक तथा सामाजिक अनुष्ठानों मे नव गृहों का आवाहन कर के उन को पूजित करना इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि प्राचीन खगोल शास्त्री हमारे सौर मण्डल के सभी गृहों की गति, दशा, मार्ग और उन के प्रभाव को ना केवल जानते थे बल्कि उन के दुष्प्रभाव को दूर करने के उपाय भी विभिन्न प्रकार के रत्नों व अनुष्ठानों द्वारा करने में सक्षम थे।
समस्त संसार में राशि चक्रों ( zodiac sign ) का जो चित्रण भारत की जन्त्ररियों में देखने को उपलब्द्ध है वही आँकडे ( data ) नासा ( NASA ) की स्टार अलामेनिक में भी आज छपते हैं।
भारत के विशेषज्ञ्यों ने पदार्थों की भौतिकता, पशु पक्षियों की पैत्रिक श्रंखला, और वनस्पतियों तथा उन के बीजों का भी पूर्ण आँकलन किया था।
वाल्मिकि रामायण में सभी जीवों की उत्पति तथा श्रंखला का पूर्ण विवरण दिया गया है जो पूर्णतया तर्क संगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित सिद्ध होता है, जो इशारा करता है कि संभवतया डारविन के विकाश के सिद्धांत पर भी पुनः शोध की आवश्यकता है।
विज्ञान, चिकित्सा, तथा गणित के क्षेत्र में प्राचीन भारत की देन अदिूतीय है। भाषा, व्याकरण, धातु ज्ञान, रसायन, तथा मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में भारत के अविश्मरणीय योगदान के लिए विश्व सदैव ही भारतवर्ष का ऋणी रहेगा
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