आइन्स्टीन के समय (Time) तथा स्थान (Space) के सातत्य (Continuity) के सिद्धांतों ने वैज्ञानिकों के सामने सोचने के नए आयाम खड़े कर दिए जिसके फलस्वरूप विश्व में ऐसे विद्वानों का अभ्युदय हुआ जो ये मानने लगे कि अतीत में भी इस धरती पर परग्रही और बुद्धिमान प्राणी, धरती वासियों के सहायता के लिए, समय समय पर आते रहें हैं जिन्हें हमारे पूर्वज शायद देवता या भगवान मानते थे।
लेकिन ये परग्रही बुद्धिमान प्राणी आखिर ब्रह्माण्ड के किस कोने से हमारे ग्रह में आते थे या कहीं ऐसा तो नहीं कि ये किसी और ब्रह्माण्ड के प्राणी थे। देखा जाय तो आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में दिया गया बिग बैंग थ्योरी (Big Bang Theory) का सिद्धांत अपूर्ण है, अभी इसमें महत्वपूर्ण संशोधन होने बचे हैं लेकिन फिर भी इसने प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक ग्रंथों में आये रहस्यमय शब्द ‘महत्तत्व’ को फिर से जीवित किया है |
बिग बैंग थ्योरी हमें बताती है कि सबसे पहले जब कुछ नहीं था तब केवल एक चीज थी ‘The Great Grand Matter’ इस द्रव्य का घनत्व (Density) 10 95 Kg/Cm 3 था। इसी महान द्रव्य में एक अज्ञात रहस्यमय कारण से भयंकर विस्फोट होता है और उसका समय तथा स्थान में विस्तार आरम्भ हो जाता है।
सबसे पहले उससे गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) अलग होता है, ये प्रक्रिया 10 -43 सेकंड में पूरी होती है , फिर उससे सबल नाभिकीय बल (Strong Nuclear Force) अलग होता है और ये प्रक्रिया पूरी होती है 10 -35 सेकंड में। सबल नाभिकीय बल, किसी परमाणु की नाभिक में स्थित न्यूट्रॉन और प्रोटोन के बीच लगने वाला बल होता है।
इसके बाद इससे विदुत-चुम्बकीय बल (Electro-Magnetic Force) अलग होता है जिसमे लगभग 10 -23 सेकंड लगते है। और इसके बाद इससे अलग होता है दुर्बल नाभिकीय बल (Weak Nuclear Force) लगभग 10 -14 सेकंड। दुर्बल नाभिकीय बल किसी परमाणु में स्थित इलेक्ट्रान और उसकी नाभिक में स्थित प्रोटोन के बीच लगने वाला बल होता है।
इस प्रकार से सभी बलों के अलग हो जाने के बाद कुछ काल में परमाणुओं का निर्माण प्रारंभ हो जाता है और फिर आकाशगंगा, ग्रह तथा तारों का निर्माण भी। लेकिन ये सिद्धांत अपूर्ण है। इस सिद्धांत में इसका मूल प्रश्न ही अनुत्तरित है कि उस महान द्रव्य में विस्फोट किस ‘कारण’ से होता है। साथ ही ये ब्रह्माण्ड में स्थित विभिन्न आयामीय मंडलों (Dimensional Planes) के अस्तित्व की भी समुचित व्याख्या नहीं करता।
लेकिन वैज्ञानिक उस The Great Grand Matter से होते हुए प्राचीन भारतीय ग्रंथों में वर्णित ‘महत्तत्व’ तक पहुँच गए हैं और उस पर शोधकार्य जारी है। भारतीय मनीषियों का दृष्टिकोण अलग था , वे आशावादी थे। उन्होंने किसी प्रश्न को अनुत्तरित नहीं छोड़ा वो हर रहस्य के तह तक गए और उन्होंने ‘अन्तिम सत्य’ (Ultimate Truth) को भी परिभाषित किया।
आज आवश्यकता है तो उनके द्वारा किये गए खोज कार्यों पर दोबारा शोध करने की। जिस ब्रह्माण्ड में हम रहते हैं- “यह प्रकृत से उत्पन्न रमणीय ब्रह्माण्ड चौदह लोकों में व्याप्त है।
ब्रह्माण्ड के उपरी हिस्से (Upper Half) में सात लोक जिनके नाम हैं- भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपलोक, ब्रह्मलोक, सत्यलोक तथा ब्रह्माण्ड के निचले हिस्से (Lower Half) में सात लोक जिनके नाम हैं अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल , इनके मध्य में हमारा लोक यानि भूलोक है। समस्त भूमंडल, सप्त महाद्वीपों सप्त महासागरों तथा चार प्रकार के प्राणियों (स्वेदज, अंडज, जरायुज तथा उद्भिज) से युक्त है। इस प्रकार से हम समझ सकते हैं कि हमारी पृथ्वी के अलावा इस ब्रह्माण्ड में चौदह अलग-अलग आयामीय मंडल (Dimensional Plane) मौजूद हैं। हमारे सनातन ग्रंथो में इन तथ्यों की पूर्ण व्याख्या मिलती है और ऐसा माना जाता है कि जिस प्रकार से वस्त्र की परतें होती हैं उसी प्रकार से ये ब्रह्माण्ड दस उत्तरोत्तर विशाल आवरणों से घिरा हुआ है।
ये दस विशाल आवरण वास्तव में इस ब्रह्माण्ड का दस आयामों (Dimensions) को परिलक्षित करता है। भगवान ब्रह्मा जी ने प्रकृति की सहायता से इस ब्रह्माण्ड को ग्यारह आयामों (Dimensions) में रचा है। ग्यारहवें आयाम, जिसमे स्वयं ब्रह्मा जी स्थित हैं, में बाकी दसो आयाम का विस्तार है। यहाँ आयामों (Dimensions) को आयामीय मंडल (Dimensional Plane) नहीं समझना चाहिए।
आयामीय मंडल (Dimensional Plane) को एक पृथक लोक समझ सकते हैं जो बाकी लोकों से भिन्न होगा जबकि ब्रह्माण्ड का प्रत्येक आयाम (Dimensions) अपने से नीचे वाले आयाम (Dimensions) की तुलना में, समय तथा स्थान में अधिक विस्तार लिए हुए होगा। विचित्र बात ये है कि ब्रह्माण्ड के एक ही आयाम (ग्यारहवें आयाम) में बाकी दसों आयामों का विस्तार हुआ है।
मृत्यु के बाद, चेतना का जितना विस्तार होता है, उसी के अनुसार उसकी आयामों में गति होती है। पुराणों में वर्णित है कि ये प्राकृत ब्रह्माण्ड साठ करोड़ योजन ऊंचा और पचास करोड़ योजन विस्तार वाला है (पूरी तरह गोल नहीं है ये ब्रह्माण्ड)। यह अंड अपने इर्द-गिर्द तथा ऊपर-निचे रखे हुए कड़ाहे के समान कठोर भाग से उसी तरह से सब ओर घिरा हुआ है जैसे अनाज का बीज कड़ी भूसी से घिरा रहता है।
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