बढ़ती उम्र के साथ शरीर में अनेक बदलाव आते हैं। आमतौर पर बढ़ती उम्र से त्वचा सर्वाधिक प्रभावित होती है। इसके अतिरिक्त चेहरे पर झुर्रियां , शीघ्र थकान , बालों का सफ़ेद होना आदि सामान्य संकेत हैं।
शरीर पर उम्र का प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है जिसे बदला नहीं जा सकता पर योग व आयुर्वेद के प्रयोग से इस प्रभाव को कम अवश्य किया जा सकता है। कोशिकाओं की कार्य क्षमता उम्र के साथ कम होने लगती है , ये प्राकृतिक नियम है। लेकिन संतुलित देखभाल करके इसे कुछ हद तक कम अवश्य किया जा सकता है। बढ़ती उम्र में त्वचा को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है क्युकी त्वचा ही उम्र के साथ सर्वाधिक प्रभावित होती है।
आयुर्वेद में अनेक ऐसी औषधियां हैं जिनका प्रयोग करके त्वचा को लम्बे समय तक स्वस्थ बनाये रखा जा सकता है। बढ़ती उम्र में तो त्वचा को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिक शोधों में भी त्वचा की देखभाल में आयुर्वेद श्रेष्ठ सिद्ध हुआ है।
आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति में एक है जिसका प्रयोग पूर्णतः दुष्परिणामों से रहित है। त्वचा की देखभाल के लिए आयुर्वेद में एक पद्धति है जिसे " काया लेपम " के नाम से जाना जाता है। भारत में काया लेपम का प्रयोग केरल में सामान्य रूप से प्रचलित है।
काया लेपम एक प्रक्रिया है जिसमे त्वचा के ऊपर औषधियों के मिश्रण का विशेष लेप लगाया जाता है जो त्वचा का पोषण करती है और लम्बे समय तक नवीन बनाये रखती है।
वैसे तो काया लेपम एक प्राचीन तकनीक है जिसमें अनेक जड़ी बूटिओं के लेप का उपयोग किया जाता है , लेकिन घर में सामान्य रूप से उपलब्ध वस्तुओं का उपयोग करके भी काया लेप घर में भी तैयार किया जा सकता है।
काया लेप को चावल का सत्त , हर्बल पाउडर, नारियल और बादाम के दूध के मिश्रण से तैयार किया जाता है। यह लेप कोशिकाओं का नवीनीकरण करता है , रंग रूप निखारता है। त्वचा यदि ढीली पड़ गई हो तो त्वचा में कसाव लता है।
बाजार में बने बनाये काया लेप भी सामान्य रूप से उपलब्ध हैं , आप चाहें तो इस लेप को घर में तैयार कर सकते हैं।
त्वचा पर काया लेप का लेप लगाकर 1 घंटा छोड़ दें। फिर हल्के गुनगुने पानी से त्वचा को धो लें।
यदि संभव हो तो हफ्ते में कम से कम एक बार इस लेप का प्रयोग अवश्य करें।
त्वचा में कांति का अभाव अधिक हो या काले धब्बे हो गए हों तो काया लेप का प्रयोग हफ्ते में अधिक बार करना चाहिए।
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