'सिन्ध' संस्कृत के शब्द 'सिन्धु' से बना है जिसका अर्थ है समुद्र। सिंधु नाम से एक नदी भी है जो इस प्रदेश के लगभग बीचोंबीच बहती है। सिन्ध देश के नाम पर ही सिन्धु सागर है जिसे आज के समय अरब सागर कहते है |
सिन्ध का नाम 'सप्त सैन्धव' था जहां सिन्धु सहित शतद्रु, विपाशा, चन्द्रभागा, वितस्ता, परुष्णी और सरस्वती बहती थीं। सिन्धु के तीन अर्थ हैं- सिन्धु नदी, समुद्र और सामान्य नदियां। ऋग्वेद कहता है मधुवाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। कालान्तर में इस भूभाग से सप्त सिन्धव लुप्त होकर सिन्ध रह गया है, जो खण्डित भारत यानी पाकिस्तान का सिन्ध प्रदेश है।
रघुवंश 15,87 में सिंध नामक देश का राजा रामचंद्रजी द्वारा भरत को दिए जाने का उल्लेख है,
'युधाजितश्च संदेशात्स देश सिंधुनामकम् ददौ दत्तप्रभावाय भरताय भृतप्रजः'।
इस प्रसंग में यह भी वर्णित है कि युधाजित् (भरत का मामा) ने केकय नरेश से संदेश मिलने पर उन्होंने यह कार्य सम्पन्न किया था। संभव है कि सिंधु देश उस समय केकय देश के अधीन रहा हो। सिंधु पर अधिकार करने के लिए भरत ने गंधर्वों को हराया था-
'भरतस्तत्र गंधर्वान्युधि निजिंत्य केवलम् आतोद्यग्राहयामास समत्याजयदायुधम्' रघुवंश 15,88.
अर्थात भरत ने युद्ध में (सिंधु देश के) गंधर्वों को हराकर उन्हें शस्त्र त्याग कर वीणाग्रहण करने पर विवश किया। वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड 100-101 में भी यही प्रसंग सविस्तर वर्णित है।
'सिंधोरुभयतः पार्श्वेदेशः परमशोभनं तं च रक्षन्ति गंधर्वाः सांयुधा युद्धकोविदाः' उत्तर 100,11.
इससे सूचित होता है कि सिंधु नदी के दोनों ओर के प्रदेश को ही सिंधु-देश कहा जाता था। इसमें गंधार या गंधर्वों का प्रदेश भी सम्मिलित रहा होगा। यह तथ्य इस प्रकार भी सिद्ध होता है कि भरत ने इस देश को जीतकर अपने पुत्रों को तक्षशिला और पुष्कलावती (गंधार देश में स्थित नगर) का शासक नियुक्त किया था। तक्षशिला सिंधु नदी के पूर्व में और पुष्कलावती पश्चिम में स्थित थी। ये दोनों नगर इन दोनों भागों की राजधानी रहे होंगे। सिंध के निवासियों को विष्णु पुराण 2,3,17 में सैंधवाः कहा गया है।
'सौवीरा सैंधवाहणाः शाल्वाः कोसलवासिन।'
. सिंधु देश में उत्पन्न लवण (सैंधव) का उल्लेख कालिदास ने इस प्रकार किया है-
'वक्त्रोष्मणा पुरोगतानि, लेह्मानि सैंधवशिलाशकलानि वाहाः' रघुवंश 5,73
अर्थात सामने रखे हुए सैंधव लवण के लेह्म शिलाखंडों को घोड़े अपने मुख की भाप से धुंधला कर रहे हैं। 'सौवीर' सिंधु देश का ही एक भाग था।
महरौली (दिल्ली) में स्थित चंद्र के लौहस्तंभ के अभिलेख में चंद्र द्वारा सिंधु नदी के सप्तमुखों को जीते जाने का उल्लेख है-
'तीर्वर्ता सप्तमुखानि येन समरे सिंधोर्जिता वाह्लिकाः'
तथा इस प्रदेश में वाह्लिकों की स्थिति बताई है।
ईसा के 3300 साल पहसे से ईसापूर्व 1900 तक यहां सिंधु घाटी सभ्यता फली-फूली। सिंधु घाटी सभ्यता अपने समकालीन मिस्र और मेसोपोटामिया के साथ व्यापार करती थी। मिस्र में कपास के लिए 'सिन्ध' शब्द का प्रयोग होता था जिससे अनुमान लगता है कि वहां कपास यहीं से आयात किया जाता था। ईसा के 1900 साल पहसे सिंधु घाटी सभ्यता अनिर्णीत कारणों से समाप्त हो गई। इसकी लिपि को भी अब तक पढ़ा नहीं जा सका जिससे इसके मूल निवासियों के बारे में अधिक पता नहीं चल पाया है।
700 ईस्वी में हिन्दू राजा दाहर सैन सिन्ध के शासक थे। उनके स्वर्णयुग राजा दाहर ने समुद्र से व्यापार करने वाले अरबियों को लूट-पाट करने की सजा दी और सिन्ध के लोगो एक शांति वाली जिन्दगी दी अन्य लोगों से लूट करते थे उन्हें रोका । धीरे-धीरे खलीफा की ओर से मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में सिन्ध में अरबी सैनिकों ने मोर्चा खोला। उनसे युद्ध करते हुए राजा दाहर को खत्म किया और अपने फंसे कैदियों को छुड़ाया । सिन्ध में अरब घुस आया। दाहर की रानी वीर बाला ने अधूरे युद्ध को हवा दी। युद्ध छिड़ गया। रानी ने अरबों के खिलाफ प्रक्षेपास्त्र का प्रयोग किया। रानी जीत गई। इसके बाद सिन्ध में इस्लाम की घुसपैठ शुरू हो गई।
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