मगध प्राचीन भारत के महाजनपद में से एक था । बौद्ध काल तथा परवर्तीकाल में उत्तरी भारत का सबसे अधिक शक्तिशाली जनपद था। इसकी स्थिति स्थूल रूप से दक्षिण बिहार के प्रदेश में थी। मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद 5,22,14 में है- 'गंधारिम्भ्यों मूजवद्भ्योडगेभ्योमगधेभ्य: प्रैष्यन् जनमिव शेवधिं तक्मानं परिदद्मसि'। इससे सूचित होता है कि प्राय: उत्तर वैदिक काल तक मगध, आर्य सभ्यता के प्रभाव क्षेत्र के बाहर था।
विष्णुपुराण (4,24,61) से सूचित होता है कि विश्वस्फटिक नामक राजा ने मगध में प्रथम बार वर्णों की परंपरा प्रचलित करके आर्य सभ्यता का प्रचार किया था। 'मगधायां तु विश्वस्फटिकसंज्ञोऽन्यान्वणनि परिष्यति'। वाजसेनीय संहिता (30,5) में मागधों या मगध के चारणों का उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण (बाल0 32,8-9) में मगध के गिरिव्रज का नाम वसुमती कहा गया है और सुमागधी नदी को इस नगर के निकट बहती हुई बताया गया है- 'एषा वसुमती नाम वसोस्तस्य महात्मन:, एते शैलवरा: पंच प्रकाशन्ते सतंतत:, सुमा गधीनदी रम्या मागधान्विश्रुताऽऽययौ, पंचानां शैलमुख्यानां मध्ये मानेव शौभते'.
महाभारत के समय में मगध में जरासंध का राज्य था जिसकी राजधानी गिरिव्रज में थी। जरासंध के वध के लिए श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम के साथ मगध देश में स्थित इसी नगर में आए थे-'गोरथं गिरिमासाद्य ददृशुर्मागधं पुरम्'- महा0 सभा0 20,30। जरासंध के वध के पश्चात् भीम ने जब पूर्व दिशा की दिग्विजय की तो उन्होंने जरासंध के पुत्र सहदेव को, अपने संरक्षण में ले लिया और उससे कर ग्रहण किया 'तत: सुह्मान् प्रसुह्मांश्च सपक्षानतिवीर्यवान्त्रिजित्य युधकौंतेयां मागधानभ्यधाद्बली' 'जारासंधि सान्त्वयित्वा करे च विनिवेश्य ह' सभा0 30,16-17
गौतम बुद्ध के समय में मगध में बिंबिसार और तत्पश्चात् उसके पुत्र अजातशत्रु का राज था। इस समय मगध की कोसल जनपद से बड़ी अनबन थी यद्यपि कोसल-नरेश प्रसेनजित की कन्या का विवाह बिंबिसार से हुआ था। इस विवाह के फलस्वरूप काशी का जनपद मगधराज को दहेज के रूप में मिला था। यह मगध के उत्कर्ष का समय था और परवर्ती शतियों में इस जनपद की शक्ति बराबर बढ़ती रही।
चौथी शती ई.पू. में मगध के शासक नव नंद थे। इनके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक के राज्यकाल में मगध के प्रभावशाली राज्य की शक्ति अपने उच्चतम गौरव के शिखर पर पहुंची हुई थी और मगध की राजधानी पाटलिपुत्र भारत भर की राजनीतिक सत्ता का केंद्र बिंदु थी। मगध का महत्त्व इसके पश्चात् भी कई शतियों तक बना रहा और गुप्त काल के प्रारंभ में काफ़ी समय तक गुप्त साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र ही में रही। जान पड़ता है कि कालिदास के समय (संभवत: 5वीं शती ई.) में भी मगध की प्रतिष्ठा पूर्ववत् थी क्योंकि रघुवंश 6,21 में इंदुमती के स्वयंवर के प्रसंग में मगधनरेश परंतप का भारत के सब राजाओं में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है। इसी प्रसंग में मगध-नरेश की राजधानी को कालिदास ने पुष्पपुर में बताया है।-- 'प्रासादवा तायन संश्रितानां नेत्रोत्सवं पुष्पपुरांगनानाम्' रघुवंश 6,24.
गुप्त साम्राज्य की अवनति के साथ-साथ ही मगध की प्रतिष्ठा भी कम हो चली और छठी-सातवीं शतियों के पश्चात् मगध भारत का एक छोटा सा प्रांत मात्र रह गया। मध्यकाल में यह बिहार नामक प्रांत में विलीन हो गया और मगध का पूर्व गौरव इतिहास का विषय बन गया। जैन साहित्य में अनेक स्थलों पर मगध तथा उसकी राजधानी राजगृह (प्राकृत रायगिह) का उल्लेख है।
आधुनिक पटना तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे । इसकी राजधानी गिरिव्रज थी । भगवान बुद्ध के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे । महाभारत के समय में मगध में जरासंध का राज्य था जिसकी राजधानी गिरिव्रज में थी। जरासंध के वध के लिए श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम के साथ मगध देश में स्थित इसी नगर में आए थे-'गोरथं गिरिमासाद्य ददृशुर्मागधं पुरम्'- महा0 सभा0 20,30। जरासंध के वध के पश्चात् भीम ने जब पूर्व दिशा की दिग्विजय की तो उन्होंने जरासंध के पुत्र सहदेव को, अपने संरक्षण में ले लिया और उससे कर ग्रहण किया 'तत: सुह्मान् प्रसुह्मांश्च सपक्षानतिवीर्यवान्त्रिजित्य युधकौंतेयां मागधानभ्यधाद्बली' 'जारासंधि सान्त्वयित्वा करे च विनिवेश्य ह' सभा0 30,16-17 अभी इस नाम से बिहार में एक प्रंमडल है - मगध प्रमंडल.
अभियान चिन्तामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है । मगध बुद्धकालीन समय में एक शक्तिनशाली राजतन्त्रों में एक था । यह दक्षिणी बिहार में स्थित था जो कालान्तर में उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तितशाली महाजनपद बन गया । यह गौरवमयी इतिहास और राजनीतिक एवं धार्मिकता का विश्व केन्द्र बन गया ।
मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक, पूर्व में चम्पा से पश्चिहम में सोन नदी तक विस्तृत थीं । मगध राज्य का विस्तार उत्तर में गंगा, पश्चिमम में सोन तथा दक्षिण में जगंलाच्छादित पठारी प्रदेश तक था । पटना और गया ज़िला का क्षेत्र प्राचीनकाल में मगध के नाम से जाना जाता था । मगध प्राचीनकाल से ही राजनीतिक उत्थान, पतन एवं सामाजिक-धार्मिक जागृति का केन्द्र बिन्दु रहा है । मगध बुद्ध के समकालीन एक शक्तिवकाली व संगठित राजतन्त्रि था ।
मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह थी । यह पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था । कालान्तर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई । मगध राज्य में तत्कालीन शक्ति्शाली राज्य कौशल, वत्स व अवन्ति को अपने जनपद में मिला लिया । इस प्रकार मगध का विस्तार अखण्ड भारत के रूप में हो गया और प्राचीन मगध का इतिहास ही भारत का इतिहास बना ।
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