शिखा या चोटी रखना सनातन संस्कृति का द्योतक होने के साथ ही पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भी है। यह तथ्य अनेक वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध हो चूका है। मानव शरीर पर शिखा के महत्त्व व् उसके प्रभाव को आधुनिक विज्ञान की शरीर विज्ञान शाखा पूर्णतः प्रमाणित कर चुकी है।
हम शिखा के वैज्ञानिक पहलु से तो परिचित है पर इसके आध्यात्मिक पहलुओं से शायद हममे से कई लोग अनभिज्ञ हो।
शिखा के आध्यात्मिक पहलु -
• हिन्दू धर्म के साथ शिखा का अटूट संबंध होने के कारण चोटी रखने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। शिखा का महत्व सनातन संस्कृति में अंकुश के समान है। यह हमारे ऊपर आदर्श और सिद्धांतों का अंकुश है। इससे मस्तिक में पवित्र भाव उत्पन्न होते हैं।
• पूजा-पाठ के समय शिखा में गाँठ लगाकर रखने से मस्तिक में संकलित ऊर्जा तरंगें बाहर नहीं निकल पाती हैं और इससे ऊर्जा का क्षय नहीं होता । इनके अंतर्मुख हो जाने से मानसिक शक्तियों का पोषण, सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति, वासना की कमी, आत्मशक्ति में बढ़ोत्तरी, शारीरिक शक्ति का संचार, अवसाद से बचाव, अनिष्टकर प्रभावों से रक्षा, सुरक्षित नेत्र ज्योति, कार्यों में सफलता तथा सद्गति जैसे लाभ भी मिलते हैं।
• मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से निकलती है। ये द्वार है - दो आँख ,दो कान ,दो नासिका छिद्र , दो निचे के द्वार , एक मुंह और दसवा द्वार है सहस्रार चक्र जिस स्थान पर शिखा होती है ।
• यजुर्वेद में शिखा को इंद्रयोनि कहा गया है। कर्म, ज्ञान और इच्छा प्रवर्तक ऊर्जा, ब्रह्मरंध्र के माध्यम से इंद्रियों को प्राप्त होती है। दूसरे शब्दों में शिखा मनुष्य का एंटेना है। जिस तरह दूरदर्शन या आकाशवाणी में प्रक्षेपित तरंगों को पकडऩे के लिए एंटेना का उपयोग किया जाता है, उसी प्रकार ब्रह्मांडीय ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए शिखा का प्रयोग करते हैं।
• मानव उत्क्रांति का सर्वोच्च पड़ाव आत्म साक्षात्कार है। यह साक्षात्कार सुषुम्ना के माध्यम से होता है। सुषुम्ना नाड़ी अपान मार्ग से होती हुई मस्तक के जरिए ब्रह्मरंध्र में विलीन हो जाती है। ब्रह्मरंध्र ज्ञान, क्रिया और इच्छा इन तीनों शक्तियों की त्रिवेणी है। मस्तक के अन्य भागों की अपेक्षा ब्रह्मंध्र को अधिक ठंडापन स्पर्श करता है। इसलिए उतने भाग में केश होना बहुत आवश्यक है। बाहर ठंडी हवा होने पर भी यही केशराशि ब्रह्मरंध्र में पर्याप्त ऊष्णता बनाए रखती है।
• मानव शरीर में एक विशेष ग्रंथि होती है जिसे अंग्रेजी भाषा में "पिनिअल ग्लेंड" कहा जाता है। इस ग्रंथि का सही स्थान ब्रह्मरंध के पास रहता है यह ग्रंथि जितनी ज्यादा संवेदनशील होती है, मानव का विकास उतना ही अधिक होता है।
मन्त्र पुरुश्चरण और अनुष्ठान के समय शिखा को गांठ लगानी चाहिए जिससे मन्त्र स्पंदन द्वारा उत्पन्न होने वाली उर्जा शारीर में एकत्रित होती रहे और व्यर्थ न जाये । शिखा की वजह से यह उर्जा बहार जाने से रुक जाती है। इस प्रकार हमें मन्त्र और जप का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।
शिखा बाँधने का मन्त्र है :-
चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे ।
We continue to improve, Share your views what you think and what you like to read. Let us know which will help us to improve. Send us an email at support@gayajidham.com
Send me the Gayajidham newsletter. I agree to receive the newsletter from Gayajidham, and understand that I can easily unsubscribe at any time.