मन्दिर निर्माण की कला

Author : Acharya Pranesh   Updated: February 05, 2020   2 Minutes Read   18,870

हिन्दू शास्त्रों में मन्दिरों को देवालय भी कहते है। देवालय शब्द दो शब्दों के मेल से बना है - देव + आलय। आलय का अर्थ होता है निवास स्थान। इस प्रकार देवालय अर्थात जहा ईश्वर के निवास हो। 

इस प्रकार  देवालय वो स्थान है जहाँ पर मनुष्य किसी भी डर या रुकावट के बिना ईश्वर के चरणों में, उनकी शरण में जा सकता है और आत्मिक समाधान प्राप्त कर सकता है। 

मन्दिर निर्माण की कला एक विशेष स्थापत्य कला शैली का उदाहरण है जो एक विशेष शिल्प मन्त्र पर आधारित है। मंदिर निर्माण का शिल्प मन्त्र इस प्रकार है -

शिखरम शीर्षमिथ्याहूह गर्भगेहमगलम तथा.मंटमपम कुकक्षिरिथ्याहूह प्रकाराम जानुजंघ्याहोह. गोपुरम पादमिथ्याहूह ध्वजों जीवाससमुच्याते।। 

अर्थात

ऐसा कहा जाता है कि "शिखर" देवता का सर है, अभयारण्य उसकी गर्दन है, मंडप पेट है, प्रकार अपने पैरों का गठन करता है, गोपुरम अपने पैरों का प्रतिनिधित्व करता है, और ध्वज अपने प्राण का आसन है।

मन्दिर को पवित्र क्षेत्र भी कहा जाता है और भागवत गीता में भगवान  श्री कृष्णा कहते भी है।

इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते। एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः॥ ।।13.2।। 

हे कौन्तेय यह शरीर क्षेत्र कहा जाता है और इसको जो जानता है, उसे तत्त्वज्ञ जन, क्षेत्रज्ञ कहते हैं।।

स्कन्दोपनिषद में भी इस तथ्य का उल्लेख वर्णित है 

देहो देवालया प्रोक्तो जीवा प्रोक्तो देवः सनातनः।

देह एक मंदिर है और उसके भीतर बसी आत्मा यह परमात्मा है। अगर हम मंदिर को ध्यान पूर्वक देखे  तो पाएंगे मंदिर निर्माण वस्तुतः देह रूप में ही है। 

शरीर के भागों को मंदिर के भागों के रूप में देखना और रख कर बनाना यह हिन्दू ज्ञान परंपरा का महान वैज्ञानिक हिस्सा है। यही नहीं बल्कि अंग्रेज़ी का शब्द temple भी शरीर रचना विज्ञान ( anatomy ) में नेत्र के पीछे मस्तिष्क के किनारे वाले भाग को कहते है, जो पुरे शरीर का सबसे संवेदनशील हिस्सा है और जहा से cosmic energy का प्रवाह होता है । इसी कारण मंदिर को अंग्रेजी में temple कहाँ जाता हैं। 

विदेशी इसे दूसरा भी नाम दे सकते थे लेकिन मंदिर को Temple ही कहा गया जिसके पीछे के कारन का कोई स्पष्ट प्रमाण तो नहीं है पर हो सकता है उन्होंने मंदिर निर्माण के पीछे के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझा होगा। 

देवालय दो शब्दों देव + आलय के संयोग से बना है , अगर आलय शब्द को देखें तो वो संकृत शब्द आलयम से आता है और उसे भी दो हिस्सों में बांटा जाता है।  आ + लयम (आत्मा+लयम), जहाँ आत्मा लीन हो जाती है, शरण में चली जाती है। 

देवालय को आलय, प्रसाद, कोइल (तमिल में) आदि नाम से भी जाना जाता है लेकिन स्थापत्यकला के प्राचीन ग्रंथों में जैसे शिल्प शास्त्र में आलय शब्द बहुतायता से इस्तेमाल किया गया है।

‘आ’ का एक मतलब अहम, अहंकार भी है, जिस वजह से जहाँ आप अपना अहंकार भूल कर इश्वर से एकाकार हो जाते हैं उस स्थान को आलय कह सकते हैं।

इस्लाम में इसी आलय शब्द से एक शब्द आलिम बना है जिसका अर्थ उस शब्दावली में विद्वान या ज्ञानी होता है ।
इसी से तालीम शब्द बना है जिसका अर्थ है शिक्षा।


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