कुंठित विचारधारा से प्रभावित विद्वान प्रायः सनातन संस्कृति में भेदभाव के बारे में लम्बे चौड़े व्याख्यान दिया करते हैं। उनके विचार में वेद अध्ययन का अधिकार आम जनों को नहीं था विशेषकर शूद्र को तो बिलकुल भी नहीं था। कई अवसर पर ऐसा भी सुनने को मिलता है जब कोई विद्वान कहते हैं सनातन धर्म में घोर असमानता है और समरस समाज की अवधारणा के विरुद्ध है।
ये सारी बातें कोरी मिथ्या भ्रम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। वेद पुराणों के अध्ययन से इन विद्वानों के तर्क आधारहीन ही प्रमाणित होते हैं , वस्तुतः इन्हे कुतर्क कहना ही श्रेष्ठ होगा।
वस्तुतः वेद ज्ञान का भंडार है। वेद में अनेक ऐसे श्लोक हैं जिनमे ईश्वर वेद में निहित ज्ञान को सबके लिए समान रूप से आवश्यक बताते हैं।
सबको वेद अध्ययन एवं उसके प्रचार का अधिकार
यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः।
ब्रह्मराजन्याभ्या शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च।
प्रियो देवानां दक्षिणायै दातुरिह भूयासमयं
मे कामः समृध्यतामुप मादो नमतु ॥2 ॥
( यजुर्वेद - अध्याय: 26 )
भावार्थ - हे मनुष्यो ! मैं (ईश्वर ) सबका कल्याण करने वाली वेदरूप वाणी का सब जनों के लिए उपदेश कर रहा हूँ, जैसे मैं इस वाणी का ब्राह्मण , क्षत्रियों, शूद्रों और वैश्यों के लिए जैसे मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिन्हें तुम अपना आत्मीय समझते हो , उन सबके लिए इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिसे पराया समझते हो, उसके लिए भी मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ, वैसे ही तुम भी आगे आगे सब लोगों के लिए इस वाणी के उपदेश का क्रम चलते रहो.
शूद्र के साथ समानता का व्यव्हार
रुचं नो धेहि ब्राह्मणेषु रुच राजसु नस्कृधि।
रुचं विश्येषु शूद्रेषु मयि धेहि रुचा रुचम् ॥48 ॥
(यजुर्वेद - अध्याय:18 )
भावार्थ - हे ईश्वर ! आप हमारी रुचि ब्राह्मणों के प्रति उत्पन्न कीजिए, क्षत्रियों के प्रति उत्पन्न कीजिए, वैश्यों के प्रति उत्पन्न कीजिए और शूद्रों के प्रति उत्पन्न कीजिए।
मंत्र का भाव यह है कि हे परमात्मन! आपकी कृपा से हमारा स्वभाव और मन ऐसा हो जाए कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी वर्णों के लोगों के प्रति हमारी रुचि हो। सभी वर्णों के लोग हमें अच्छे लगें। सभी वर्णों के लोगों के प्रति हमारा बर्ताव सदा प्रेम और प्रीति का रहे।
शुद्रो व अन्य वर्णों के पापों के लिए छमा याचना
यद ग्रामे यदरण्ये यत्सभायां यदिन्द्रिये। यच्छूद्रे यदर्ये
यदेनश्चकृमा वयं यदेकस्याधि धर्मणि तस्यावयजनमसि ॥17 ॥
(यजुर्वेद - अध्याय:20)
भावार्थ - हे विद्वन् ! हम लोग जो गाँव में , जो जङ्गल में , जो सभा में ,जो मन में , जो शूद्र में , जो स्वामी वा वैश्य में ब्राह्मण या क्षत्रिय में , जो एक के ऊपर धर्म में तथा जो और अपराध करते हैं व करनेवाले हैं उस सबका आप छुड़ाने के साधन हैं।
शुद्रो से प्रेमवत व्यवहार
प्रियं मा दर्भ कृणु ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्या॑य च।
यस्मै च कामयामहे॒ सर्वस्मै च विपश्यते ॥ 8 ॥
(अथर्ववेद - काण्ड:19)
भावार्थ - हे शत्रु विदारक परमेश्वर मुझको ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शुद्र के लिए और जिसके लिए हम चाह सकते हैं प्रत्येक विविध प्रकार देखने वाले पुरुष के लिए प्रिय कर दे।
शूद्र यज्ञ कर सकता है
अग्नेस्तनूरसि वाचो विसर्जनं देववीतये त्वा गृह्णामि बृहद् ग्रावासि वानस्पत्यः
सऽइदं देवेभ्यो हविः शमीष्व सुशमि शमीष्व। हविष्कृदेहि हविष्कृदेहि ॥15॥
(यजुर्वेद - अध्याय:1)
भावार्थ - मैं सब जनों के सहित और काष्ठ के मूसल आदि पदार्थ विद्वान् व दिव्यगुणों के लिये उस यज्ञ को श्रेष्ठ विद्वान् वा विविध भोगों की प्राप्ति के लिये ग्रहण करता हूं। हे विद्वान् मनुष्य! तुम विद्वानों के सुख के लिये अच्छे प्रकार दुःख शान्त करने वाले यज्ञ करने योग्य पदार्थ को अत्यन्त शुद्ध करो। जो मनुष्य वेद आदि शास्त्रों को प्रीतिपूर्वक पढ़ते वा पढ़ाते हैं, उन्हीं को यह होम में चढ़ाने योग्य पदार्थों का विधान करने वाली जो कि यज्ञ को करने के लिये ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों की शुद्ध सुशिक्षित और प्रसिद्ध वाणी वेद के पढ़ने से है .
शुद्रो को नमन एवं सत्कार करना
नमस्तक्षभ्यो रथकारेभ्यश्च वो नमो नमः कुलालेभ्यः कर्मारेभ्यश्च वो नमो नमो
निषादेभ्यः पुञ्जिष्ठेभ्यश्च वो नमो नमः श्वनिभ्यो मृगयुभ्यश्च वो नमः ॥ 27 ॥
(यजुर्वेद - अध्याय:16)
भावार्थ - हे मनुष्यो ! जैसे राजा परिश्रम करने वालों को धन देके सत्कार करते है उसी तरह मट्टी के पात्र बनानेवालों को को नमन है अन्नादि पदार्थ और खड्ग, बन्दूक और तोप आदि शस्त्र बनानेवाले तुम लोगों का सत्कार व नमन करते हैं वन और पर्वतादि में रह कर अन्नादि देते , कुत्तों को शिक्षा करने ( कुत्तों को पालतू बनाना) तुम को अन्नादि देते और अपने आत्मा से वन के हरिण आदि पशुओं को चाहने वाले तुम लोगों का सत्कार करते हैं, वैसे तुम लोग भी करो।
ईश्वर की दृष्टि में सभी एक सामान है
अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।
(ऋग्वेद - मंडल 5 - सूक्त 60 - मंत्र 5)
भावार्थ - ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा।तुम सब भाई-भाई हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो।
ईश्वर का आदेश मानिये और भेदभाव को त्याग दीजिए
मनुर्भव - (ऋग्वेद)
भावार्थ - ईश्वर कहता है, "मनुष्य बनो" ।
वेद के इन श्लोकों से स्पष्ट है कि वेद में किसी भी वर्ण के लोगों के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है। बल्कि वेद की शिक्षा सबके प्रति प्रेम , विश्वाश और सबको अपना मानने को प्रेरित करती है चाहे वो ब्राह्मण ,क्षत्रिय , वैश्य या शूद्र वर्ण का हो।
जो भी विद्वान समय के साथ समाज में आई कुरीति को वेद से जोड़कर देखते हैं , उन्हें पहले वेद का अध्ययन करना चाहिए और अपने कुतर्कों को ज्ञान की कसौटी पे कस लेना चाहिए।
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