विश्व इतिहास में सबसे पहला शौचालय ईसा पूर्व 2000 बी.सी. में भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र (इसमें वर्तमान पाकिस्तान भी शामिल है) में सिंधु घाटी सभ्यता में पाए जाते है जहां सीवर तंत्र के अवशेष पाए गए। इन शौचालयों में मल को पानी द्वारा बहा दिया जाने की व्यवस्था थी जिन्हें ढंकी हुई नालियों से जोड़ा गया था। इस कालखंड में विश्व में और कहीं भी ऐसे शौचालयों का कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं मिलता।
1200 ईसा में मिश्र में शौचालय मिलते हैं, परंतु उनमें मिट्टी के पात्रों का प्रयोग होता था और पात्रो में शौच के बाद दासों द्वारा खाली कराया जाता था। रोमन सभ्यता में ईस्वी सन के पहली शताब्दी में शौचालय के विवरण मिलते हैं। इस काल में अवश्य शौचालय की अच्छी व्यवस्था पाई जाती है। समझा जाता है कि शौचालय का ज्ञान ग्रीस में भारत से ही पहुंचा था जिसकी व्यावहारिक परिणति रोमन सभ्यता में पाई जाती है। इन साक्ष्यों से स्पष्ट होता है की रोम में शौचालय की व्यवस्था कही न कही भारत की ही देन है।
रोमन सभ्यता के पतन के बाद लंबे समय तक यूरोप में शौचालयों की व्यवस्था का नितांत अभाव रहा। स्थिति इतनी विकट थी कि ग्यारहवीं शताब्दी तक लोग सड़कों पर ही मल फेंक दिया करते थे जिससे आने-जाने वालों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ता था। इस काल में लोग कहीं भी मूत्रात्याग कर देते थे। सड़कों के किनारे से लेकर बेडरूम तक में।
यूरोप में छठी शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक का काल अंधकार का काल माना जाता था जहां सर्वत्रा अज्ञान और अंधविश्वास का बोलबाला था। इस पूरे कालखंड में मनुष्य के मल के निस्तारण की कोई उपयुक्त व्यवस्था पूरे यूरोप में कहीं भी नहीं पायी जाती थी।
भारतीय सभ्यता में प्रारंभ से ही शौचालयों की बजाय खुले में शौच जाने को प्राथमिकता दी जाती रही है। यदि राजपरिवारों में शौचालय बनाए भी गए तो उसका एक खास प्रारूप विकसित किया गया था। इसमें जमीन में गहरा गड्ढा करके उसमें एक के ऊपर एक करके 8-10 मिट्टी के घड़ों की श्रृंखला बनाई जाती थी। प्रत्येक घड़े के तल में छेद होता था। इस प्रक्रिया में पानी और मिट्टी की अभिक्रिया द्वारा मल पूरी तरह मिट्टी में ही मिल जाता था। उसे बाहर फेंकने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।
मुस्लिमों के आक्रमण के बाद अवश्य शौचालय बनाए जाने लगे। मुस्लिम बादशाहों ने अपनी बेगमों को परदे में रखने के लिए महलों के अंदर ही शौचालय बनावाए, परंतु उन्हें शौचालय बनाने की कला ज्ञात नहीं थी। साथ ही वे इस्लाम न स्वीकार करने वाले हिंदू स्वाभिमानियों का मानभंग भी करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने ऐसे शौचालय बनावाए, जिनमें मल के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं होती थी। उन शौचालयों में से मल को मनुष्यों द्वारा ही उठाकर फेंकवाया जाता था। इस घृणित कार्य में मुस्लिम बादशाहों ने उन्हीं स्वाभिमानी हिन्दुओं को लगाया जो किसी भी हालत में इस्लाम स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। उन लोगों को भंगी कहा गया जो कालांतर में अछूत कहलाए।
मुस्लिम बादशाहों से यह गलत परंपरा उनके हिंदू दरबारियों में पहुंची और इस प्रकार हिंदू लोगों में भी घरों में शौचालय और उनका मल उठाने के लिए मनुष्यों को नियुक्त करने की गलत परंपरा की शुरुआत हुई।
इस प्रकार शौचालयों की व्यवस्थित विज्ञान का ज्ञान रखने वाले भारत में मनुष्य द्वारा ही मनुष्य का मल उठाने की घृणित प्रथा की शुरूआत हुई। इस कुप्रथा अंत बाद में अंग्रेजों ने किया परंतु उन्होंने इसे भारतीय समाज के दोष के रूप में ही देखा और प्रचारित किया । उन्होंने इसके पीछे के इतिहास को जानने और समझने की कभी कोशिश भी नहीं की। उलटे उन्होंने इसके बहाने समाज में फूट पैदा करने की कोशिश की जिसमे वे काफी हद तक सफल भी रहे।
आज भी दलित आंदोलन अछूत-समस्या के मूल को समझे बिना चलाया जा रहा है। दुखद यह है कि, जिन कट्टरपंथी और साम्राज्यवादी मुसलमान शासकों ने इसकी शुरूआत की, आज का दलित आंदोलन उसी मानसिकता के मुस्लिम राजनीति के साथ मिलने की कोशिशों में भी जुटा हुआ है।
शौचालय का इतिहास यदि पढ़ा जाए तो इस समस्या का भी समाधान सरलता से निकाला जा सकता है।
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