इतिहास की पुस्तकों में ये पढ़ाया जाता है कि भारत की खोज समुद्री यात्री वास्कोडिगामा ने की थी। पर क्या वास्कोडिगामा के भारत आने से पहले भारत का अस्तित्व ही नहीं था ? या फिर भारत की संस्कृति भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सिमित थी ? ये कुछ ऐसे भ्र्म हैं जिनका निवारण स्वयं वास्कोडिगामा के यात्रा वृतांत से किया जा सकता है।
भारत की खोज वास्कोडिगामा ने की , संभवतः ये आबरा - का - डाबरा जैसा ही है। पढाई जानेवाली पुस्तकों की माने तो शायद वास्कोडिगामा ने कोई जादू की छड़ी घुमाई और एक भौगोलिक देश अस्तित्व में आया जिसका नाम भारत हुआ। कितना हास्यास्पद लगता है।
कई इतिहासकारों व लेखकों का मानना है कि अपनी यात्रा वृतांत में वास्कोडिगामा ने स्वयं लिखा है कि अफ्रीका के जंजीबार के समीप उसकी मुलाकात एक अति समृद्ध भारतीय व्यापारी से हुई थी।
उस भारतीय व्यापारी का जहाज वास्कोडिगामा के जहाज से लगभग तीन गुना अधिक बड़ा था जो मसालों और सागवान की कीमती लकड़ियों से भरा था।
उस भारतीय व्यापारी का रहन - सहन , वस्त्र , आभूषण इत्यादि इतने कीमती थे कि वास्कोडिगामा उस व्यापारी को देखकर हतप्रभ रह गया। वास्कोडिगामा उससे इतना प्रभावित हुआ कि दुभाषिये की मदद से उसने उस व्यापारी से संपर्क किया और उसके देश भारत आने की इक्षा प्रकट की।
वास्कोडिगामा की इस इक्षा को उस व्यापारी ने स्वीकार किया और वास्कोडिगामा भारतीय व्यापारी का पीछा करते हुए भारत पंहुचा।
ये ऐसे तथ्य हैं जिनका वर्णन स्वयं वास्कोडिगामा के यात्रा वृतांत में मिलता है।
ये सत्य है कि वास्कोडिगामा ने भारत का परिचय पाश्चात्य जगत से कराया जिसका परिणाम हुआ कि भारतीय समृद्धता से आकर्षित होकर अंग्रेजों के कदम भारत में पड़े और शेष इतिहास है।
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