बिहार में बोधगया विश्व भर में ज्ञान स्थली के रूप में विख्यात है। बोधगया बौद्धिस्ट आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। बोधगया में ही सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ था और वे सिद्धार्थ से बुद्ध हुए थे।
सिद्धार्थ से बुद्ध बनने की प्रक्रिया में सुजाता नाम की महिला का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है । गौतम बुद्ध के दर्शन का मुख्य आधार मध्यम मार्ग है। इस मध्यम मार्ग का ज्ञान उन्हें सुजाता गढ़ में हुआ था जो बोधगया से पूर्व दिशा में बकरौर नाम के गांव के समीप स्थित है।
युवराज सिद्धार्थ से बुद्ध की यात्रा में एक रोचक कथा आती है।
ऐसा माना जाता है कि सिद्धार्थ बकरौर नाम के गांव के समीप एक वट वृक्ष के नीचे गहन तपस्या में लीन थे , उनकी कठोर तपस्या से उनका शरीर बिल्कुल क्षीण पड़ चूका था।
बकरौर गांव में रहने वाली सुजाता नाम की एक महिला जिसके कोई संतान नहीं थी , उसने वट वृक्ष से संतान हेतु मनौती मानी थी। वैशाखी पूर्णिमा को सुजाता को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। अपनी मनौती पूरा करने सुजाता वट वृक्ष को गाय के दूध का खीर बनाकर अर्पित करने जा रही थी।
उसने वट वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को तपस्या में लीन देखा। सिद्धार्थ में इतना तेज था कि सुजाता को लगा मानो वृक्ष देवता ही ध्यानस्थ हैं और उसने बड़े आदर के साथ खीर सिद्धार्थ को अर्पित कर दिया। सुजाता के आदर भाव को सिद्धार्थ ने स्वीकार किया और उसी रात ध्यान की अवस्था में उन्हें मध्यम मार्ग का बोध हुआ।
तत्पश्चात सिद्धार्थ बोधगया आये जहा बोधि वृक्ष के नीचे उन्होंने गहन साधना आरम्भ की। लगभग 4 सप्ताह की गहन साधना के बाद सिद्धार्थ को शाश्वत ज्ञान प्राप्त हुआ और और बाद में सिद्धार्थ बोधिसत्त्व कहलाए।
जिस स्थान पर सुजाता ने सिद्धार्थ को खीर अर्पित किया था उसे सुजाता गढ़ के नाम से जाना जाता है। सुजाता गढ़ में एक बौद्ध स्तूप भी है जिसे सुजाता स्तूप कहा जाता है। पुरातत्व विशेषज्ञों की माने तो सुजाता स्तूप दूसरी शताब्दी का निर्मित है।
पिछले कुछ वर्षो में प्रशाशन व सरकार ने इस क्षेत्र के विकास की दिशा में काफी कदम उठाये हैं और सुजाता गढ़ को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।
सिर्फ देश ही नहीं विदेश से भी बोधगया आने वाले पर्यटक सुजाता गढ़ जरूर आते हैं।
सुजाता गढ़ का शांत वातावरण किसी के भी मन को मोहित कर लेता है। इस स्थान पर आंखे बंद करके बैठने पर असीमित शांति का अनुभव होता है।
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